"उपदंश": अवतरणों में अंतर

improving intro with reference
No edit summary
पंक्ति 4:
इसकी उत्पत्ति के कारणों के मुख्य रूप से आघात, अशौच तथा प्रदुष्ट योनिवाली स्त्री के साथ संसर्ग बताया गया है। यह एक संक्रामक रोग है जो जो इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति के साथ संपर्क करने वाले के यौनांग में एक सप्ताह से चार सप्ताह के बीच प्रकट हो जाता है<ref>http://www.biovatica.com/updansh.htm</ref>. इस प्रकार यह एक [[औपसर्गिक व्याधि]] है जिसमें [[शिश्न]] पर [[ब्रण]] (sore) पाए जाते हैं। दोषभेद से इनके लक्षणों में भेद मिलता है। उचित चिकित्सा न करने पर संपूर्ण लिंग सड़-गलकर गिर सकता है और बिना शिश्न के [[अंडकोष]] रह जाते हैं।
 
आयुर्वेदिक ग्रंथों में सिर्फ "भाव प्रकाश " में उपदंश रोग का विवरण पढ़ने को मिलता है . यह रोग ज्यादातर तो इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति के साथ यौन-संपर्क करने पर ही होता है, वंशानुगत भी हो सकता है, जो की बहुत कम होता है, या फिर अनुचित तरीकों से यौन क्रीड़ा करने पर होता है. आयुर्वेद के अनुसार, उपदंशग्रस्त स्त्री से सहवास करने पर पुरुष को और उपदंशग्रस्त पुरुष से सहवास करने पर स्त्री को यह दारुण रोग हो जाता है. आयुर्वेद के भावप्रकाश ग्रन्थ के अनुसार हाथ का आघात लगने (हस्तमैथुन) से, नाख़ून या दांत से घाव (क्षत ) होने से, सहवास के बाद गुप्तिन्द्रिय को न धोने से, अति सहवास करने से , यौनांग में दोष होने से तथा अन्य प्रकार की गलत यौन-क्रीड़ाएं करने से पांच प्रकार का उपदंश रोग होता है<ref>http://www.biovatica.com/updansh.htm</ref>.[[आयर्वेद]] में उपदंश के पाँच भेद बताए गए हैं जिन्हें क्रमश:, वात, पित्त, कफ, त्रिदोष एवं रक्त की विकृति के कारण होना बताया गया है। वातज उपदंश में सूई चुभने या शस्त्रभेदन सरीखी पीड़ा होती है। पैत्तिक उपदंश में शीघ्र ही पीला पूय पड़ जाता है और उसमें क्लेद, दाह एवं लालिमा रहती है। कफज उपदंश में खुजली होती है पर पीड़ा और पाक का सर्वथा अभाव रहता है। यह सफेद, घन तथा जलीय स्रावयुक्त होता है। त्रिदोषज में नाना प्रकार की व्यथा होती है और मिश्रित लक्षण मिलते हैं। रक्तज उपदंश में व्रण से रक्तस्राव बहुत अधिक होता रहता है और रोगी बहुत दुर्बल हो जाता है। इसमें पैत्तिक लक्षण भी मिलते हैं। इस प्रकार आयुर्वेद में उपदंश शिश्न की अनेक व्याधियों का समूह मालूम पड़ता है जिसमें सिफ़िलिस, सॉफ्ट शैंकर (soft chanchre) एवं शिश्न के कैंसर सभी सम्मिलित हैं।
 
एक विशेष प्रकार का उपदंश जो फिरंग देश में बहुत अधिक प्रचलित था और जब भारतवर्ष में वे लोग आए तो उनके संपर्क से यहाँ भी गंध के समान वह फैलने लगा तो उस समय के वैद्यों ने, जिनमें भाव मिश्र प्रधान हैं, उसका नाम 'फिरंग रोग' रखा दिया। इसे आगंतुज व्याधि बताया गया अर्थात् इसका कारण हेतु जीवाणु बाहर से प्रवेश करता है। निदान में कहा गया है कि फिरंग देश के मनुष्यों के संसर्ग से तथा विशेषकर फिरंग देश की स्त्रियों के साथ प्रसंग करने से यह रोग उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार का होता है एक बाह्य एवं दूसरा अभ्यंतर। बाह्य में शिश्न पर और कालांतर में त्वचा पर विस्फोट होता है। आभ्यंतर में संधियों, अस्थियों तथा अन्य अवयवों में विकृति हो जाती है। जब यह बीमारी बढ़ जाती है तो दौर्बल्य, नासाभंग, अग्निमांद्य, अस्थिशोष एवं अस्थिवक्रता आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। वस्तुत: फिरंग रोग उपदंश से भिन्न व्याधि नहीं है बल्कि उसी का एक भेद मात्र है। बहुत लोग इसे पर्याय भी मानने लगे हैं।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/उपदंश" से प्राप्त