"केसरी नाथ त्रिपाठी": अवतरणों में अंतर

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पश्चिम बंगाल के महामहिम राज्यपाल ,प्रख्यात कवि एवं चिन्तक ,विचारक पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी अपने पिता की सात संतानों में चार पुत्रियों तथा तीन पुत्रों में सबसे छोटे हैं। त्रिपाठी जी का जन्म कार्तिक शुक्ल चतुर्थी, दिन शनिवार, दिनांक 10 नवम्बर, सन् 1934 को इलाहाबाद में हुआ। घर में इन्हें “भईया”के नाम से संबोधित किया जाता है।
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 '''हिंदी के प्रतिष्ठित''' कवि केशरीनाथ त्रिपाठी के पूर्वज मूल निवासी ग्राम पीड़ी (पिण्डी) , तहसील सलेमपुर के थे, जो पहले गोरखपुर जनपद का अंग था तथा बाद में देवरिया जनपद का अंग हो गया। कालान्तर में वहाँ से जनपद इलाहाबाद में आकर परिवार के कुछ लोग ग्राम नीवाँ में बस गए, जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पश्चिम में थोड़ी दूर पर स्थित है। सन् 1850 ई. के लगभग पितामह पं. मथुरा प्रसाद त्रिपाठी, ग्राम नीवाँ से इलाहाबाद शहर चले आए। उनके पिता का नाम पं. बाल गोविन्द त्रिपाठी था। उस समय तथा उसके पश्चात् भी बहुत समय तक इलाहाबाद का सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस अंग्रेज ही हुआ करता था, जिसे यहाँ की भाषा का ज्ञान बहुत कम होता था। शहर में आने पर पं. मथुरा प्रसाद त्रिपाठी, जो भी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस वहाँ नियुक्त होता था, उसे हिन्दी, संस्कृत, उर्दू तथा फारसी भाषायें पढ़ाया करते थे तथा सन् 1876 में उच्च न्यायालय के यहाँ आने पर वे उसमें कार्यरत हो गए। उच्च न्यायालय में कार्यरत रहने की अवधि में तथा वहाँ से अवकाश प्राप्ति के पश्चात् भी वे सामाजिक कार्यों में रुचि रखते थे तथा उन्होंने एक संस्कृत पाठशाला की स्थापना भी की जो स्थानीय लोहिया पाण्डेय का हाता,बहादुर गंज , इलाहाबाद में आज भी चल रहा है। उनका देहान्त सन् 1920 ई. में हो गया।
 
पं. केशरीनाथ त्रिपाठी के पिता स्वर्गीय पं. हरिश्चन्द्र त्रिपाठी जिन्हें लोग हरी महाराज के नाम से पुकारते व  उक्त नाम से जाना जाता था , इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सन् 1913-1914 में कार्यरत हुए। वहाँ विभिन्न पदों पर कार्य करने के पश्चात् सन् 1949 में सेवा-निवृत्त हुए। अपने पिता की तरह पं. हरिश्चन्द्र त्रिपाठी जी भी सामाजिक कार्यों में लगे रहते थे। अपनी बिरादरी के अन्य सहयोगियों के साथ उन्होंने सरयूपारीण स्कूल नामक संस्था की स्थापना की जो आजकल सर्वाय इण्टर कालेज के रूप में विद्यमान है। वह अनेक वर्षों तक उसके प्रबन्धक रहे। सन् 1980 में पंडित हरिश्चन्द्र त्रिपाठी का देहान्त हो गया। आकाशधर्मा पिता पंडित हरिश्चंद्र त्रिपाठी एक धर्मनिष्ठ और विचारवान व्यक्ति थे | जैसा उनका व्यक्तित्व था वैसा उनका कर्तृत्व | कद काठी वैसी ही जैसे पंडित जी की | केशरी नाथ त्रिपाठी के जीवन पर पिता का बहुत प्रभाव है |
 
'''मातृभक्त''' पं. केशरी नाथ त्रिपाठी जी की माता का नाम श्रीमती शिवा देवी था जिन्हें घर –परिवार व नाते रिश्तेदारी में जिज्जी के नाम से पुकारा जाता था। वह इलाहाबाद शहर के ख्याति-प्राप्त वैद्य परिवार की थीं। वह कुशाग्र बुद्धि की महिला थीं। उनके पिता पं. वैद्यनाथ शर्मा तथा पिता के बड़े भ्राता पं. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा, इलाहाबाद के नामी-गिरामी वैद्य थे जिनकी औषधियाँ इलाहाबाद शहर के अतिरिक्त बाहर भी प्रचुर मात्रा में पेास्ट-पार्सल द्वारा जाया करती थीं। पंडित जी की माता जी का सन् 1977 में देहांत हो गया।त्रिपाठी जी पर माताजी का प्रभाव काफी है।
 
केशरीनाथ त्रिपाठी की प्रारम्भिक शिक्षा सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल(कक्षा-1तक1940) , सरयूपारीण स्कूल, इलाहाबाद (कक्षा-2 से 8 तक 1941 से 1947 तक) , में हुई जो इस समय सर्वाय इण्टर कालेज के नाम से ज्ञात है। अग्रवाल इण्टर कालेज, इलाहाबाद से हाईस्कूल(1949) तथा इण्टरमीडिएट(1951) की शिक्षा प्राप्त की। उसके पश्चात् इलाहाबाद विश्व विद्यालय से उन्होंने बी. ए. (1953) तथा एल. एल. बी. (1555) की डिग्री प्राप्त की। विद्याध्ययन में उनकी बहुत रुचि थी तथा वे बराबर पुस्तकों के अध्ययन में लगे रहते थे। बाद में मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा डी. लिट्. तथा उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय,इलाहाबाद  द्वारा एल.एल.डी. की मानद उपाधि प्रदान की गयी। एक अध्येता के रूप में भी त्रिपाठी जी की पहचान है |
 
सन् 1958 में केशरीनाथ त्रिपाठी का विवाह वाराणसी के प्रतिष्ठित मिश्र परिवार में स्वर्गीया श्रीमती सुधा त्रिपाठी से हुआ। त्रिपाठी जी के एक पुत्र नीरज त्रिपाठी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ–साथ उत्तर प्रदेश के अपर महाधिवक्ता हैं तथा दो पुत्रियाँ हैं और एक प्रपौत्री है जिनमें से एक पुत्री केन्द्रीय प्रशासनिक सेवा में वरिष्ठ अधिकारी है । प्रपौत्री अध्ययनरत है |
 
केशरीनाथ त्रिपाठी का कार्य क्षेत्र हमेशा से  साहित्य, कला ,संस्कृति ,समाज सेवा, राजनीति, विधि और न्याय तथा शिक्षा रहा है । उन्होंने अपने जीवन में  कार्य क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित किया है। केशरी नाथ त्रिपाठी जी के व्यक्तित्व के कई पक्ष हैं, यथा -एक प्रतिष्ठित कानून-वेत्ता, एक सफल संचालक (विधान सभा के अध्यक्ष के रूप में) एवं एक अत्यन्त उच्च कोटि के संवेदनशील एवं अभिव्यक्ति समर्थ साहित्यकार आदि । केशरीनाथ त्रिपाठी जी जहाँ एक ओर अत्यन्त उच्च कोटि के विद्वान हैं और अनेकानेक विषयों पर उनकी गहरी पकड़ व पैठ है, वहीं वे एक अत्यन्त सुसंस्कृत मृदुभाषी और सहृदय व्यक्ति भी हैं। साथ ही एक और महान गुण भी उनके अन्दर हैं कि उनके मानवीय सद्गुण उनके कर्तव्य पालन के मार्ग में कभी बाधा या व्यवधान बनकर नहीं खड़े होते हैं। वे बड़े ही शालीन ढंग से किन्तु अत्यन्त दृष्ढ़तापूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करते हैं तथा अपनी स्थापनाओं और मान्यताओं पर अडिग रहते हुए लगभग असम्भव से समझे जाने वाले कार्यों को भी सम्भव करके दिखा देते हैं। यह उनके सार्वजनिक जीवन में कई बार सिद्ध हो चुका है और उनका लिया हुआ निर्णय ही बाद में सर्वमान्य और सर्वस्वीकृत होता है, अन्तिम विजय उसी की होती है। जैसा कि सर्वविदित है ,त्रिपाठी जी के व्यक्तित्व के कई आयाम हैं। इनमें से उनके व्यक्तित्व के किस पक्ष की चर्चा पहले की जाए यह मेरे लिये कठिन कार्य है, फिर भी चूँकि मुझे साहित्य का स्थान अन्य विषयों से ऊँचा प्रतीत होता है। अतः मैं उनकी साहित्यिक प्रतिभा के बारे में कुछ शब्द कहना चाहती हूँ। साहित्य-सृजन के क्षेत्र में उन्हें उसकी गद्य एवं पद्य दोनेां विधाओं पर समान रूप से अधिकार प्राप्त है। जब वे काव्य-पाठ करते हैं तो स्वयं भाव-विभोर होकर वे उसमें खो ही जाते हैं साथ में श्रोताओं के समक्ष भी वर्णित विषय का ऐसा सजीव चित्र प्रस्तुत कर देते हैं जो उनके (श्रोताओं) हृदयों में उतरकर सदा-सदा के लिए स्थान बना लेता है। उनकी वक्तृत्व शक्ति बड़ी अद्भुत और विलक्षण है। जिन्होंने उनके भाषण सुने हैं वे बता सकते हैं कि उनके भाषण कितने सारगर्भित, विद्वतापूर्ण और प्रभावशाली होते हैं। त्रिपाठी जी सम्मोहक वक्ता के लिए प्रख्यात हैं |
 
उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष पद पर आसीन रहते हुए पं. केशरीनाथ त्रिपाठी ने उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष के दायित्व का भी पदेन निष्ठापूर्वक निर्वहन किया। उन्होंने हिन्दी-संस्कृत के उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में सक्रिय रहते हुए उसके कार्य कलापों में अभिवृद्धि की तथा अनेक नवोदित, उदीयमान, स्थापित एवं प्रतिष्ठित साहित्यकारों को प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की विभिन्न योजनाओं को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने की ओर उन्होंने अपना विशेष ध्यान दिया।
 
सृजन, प्रकाशन, प्रोत्साहन और सम्मेलन के माध्यम से उन्होंने हिन्दी को अधिकाधिक ग्राह्य बनाने की दिशा में जो अभियान चलाया वह सर्वथा स्तुत्य है। उन्होंने हिंदीतर भाषा-भाषी क्षेत्रों के साहित्यकारों को सौहार्द सम्मान से समलंकृत कर उनका समर्थन और सहयोग हिन्दी के लिए प्राप्त किया। विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के साहित्यकारों की साहित्य साधना का अवलोकन कर उनकी प्रतिभा का समुचित मूल्यांकन किया। उन्होंने स्वदेश और विदेश के विभिन्न भागों में भ्रमण कर हिन्दी की ज्योति प्रज्ज्वलित करने का अनवरत प्रयास किया और अनेक विद्वानों की सहभागिता उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के साथ सुनिश्चित करने में वांछित सफलता प्राप्त की। भारत के बाहर जिन देशों का त्रिपाठी जी ने  हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु अन्यथा भ्रमण किया। उनमें प्रमुख हैं— अमेरिका, यू. के., फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रिया, स्विट्जरलैण्ड, ग्रीस, इटली, रूस, कनाडा, जापान, आस्ट्रेलिया, चीन, न्यूजीलैण्ड, बैंकाक, सिंगापुर, मारिशस, माल्टा, नीदरलैण्ड, हांग-कांग, नेपाल आदि। सन् 1999 ई. में छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन में उनका प्रतिनिधित्व उपयोगी सार्थक एवं लाभप्रद रहा है। वहाँ उन्होंने हिन्दी का पक्ष अत्यंत दृष्ढ़ता से प्रस्तुत किया। सन् 2003 ई. में सूरीनाम में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में भी उन्होंने भाग लिया और अपनी विद्वता का पूरा परिचय दिया। त्रिपाठी जी ने अब तक 30 से अधिक देशों की यात्राएं संपन्न कर चुके  हैं।
 
उत्तर प्रदेश की अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में भाग लेकर उन्होंने लोगों का उत्साह वर्धन किया और अपने बहुमूल्य, प्रेरक और ओजस्वी उद्बोधन से हिन्दी प्रेमियों में नवचेतना का संचार करने में अद्वितीय सफलता अर्जित की। विभिन्न साहित्यकारों की श्रेष्ठ कृतियों का लोकार्पण कर त्रिपाठी जी ने रचनाकारों के मनोबल को ऊँचा उठाया और उन्हें नित नये सृजन के लिए प्रेरणा प्रदान की। त्रिपाठी जी ने उत्तर प्रदेश के उन रचनाकारों को उनकी पुस्तक प्रकाशन के लिए अनुदान स्वीकृत कर उन्हें अपनी रचनाओं को मुद्रित एवं प्रकाशित कराने की सुविधा उपलब्ध कराई जो असहाय और आर्थिक रूप से कमजोर हैं । साहित्यकार कल्याण कोष से धनराशि स्वीकृत कर उन्होंने उनकी सहायता कर पुनीत कार्य तो किया ही अपने कर्तव्य एवं दायित्व का निर्वहन निष्ठापूर्वक किया। साहित्यिक समारोहों के आयोजन में सम्मिलित होकर उन्होंने अपनी सम्मोहक वाणी से श्रोताओं को प्रभावित किया तथा अपने हिन्दी प्रेम का प्रमाण प्रस्तुत किया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा आयोजित समारोहों में तो उनका मार्गदर्शन एवं प्रदर्शन उल्लेखनीय है ही अन्य साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा आयोजित समारोहों को संबोधित कर अपना आशीर्वाद प्रदान किया जिससे हिन्दी की प्रगति की गति को तीव्रता प्राप्त हुई।
 
एक वर्ष का अनिवार्य प्रशिक्षण लेने के उपरान्त सन् 1956 में उनका पंजीयन इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में हुआ।  तभी से त्रिपाठी जी ने वकालत करनी आरम्भ की। एक वर्ष की ट्रेनिंग उन्होंने बाबू जगदीश स्वरूप, एडवोकेट से ली। जनपद इलाहाबाद की कार्य पद्धति का ज्ञान उन्होंने अपने बड़े भाई श्री काशीनाथ त्रिपाठी से प्राप्त किया। उच्च न्यायालय में वे अनेक वर्षों तक श्री जगदीश स्वरूप के जूनियर थे। केशरीनाथ त्रिपाठी आरम्भ से ही कुशाग्र बुद्धि के थे तथा थोड़े ही समय में उन्होंने हाईकोर्ट में उच्च श्रेणी के अधिवक्ताओं में अपनी पहचान बनी ली। वर्ष 1965 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एशोसिएसन के पुस्तकालय सचिव तथा वर्ष 1987-88 एवं1988-89 में इसके अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वर्ष 1980 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश का पद स्वीकार करने का प्रस्ताव आया जिसे त्रिपाठी जी ने अस्वीकार कर दिया।वर्ष 1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा केशरीनाथ त्रिपाठी को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नाम निर्दिष्ट किया। त्रिपाठी जी चुनाव के मामलों में विशेषज्ञ माने जाते हैं। उन्होंने उक्त विषय पर एक पुस्तक भी लिखी है। वर्ष 1992-93 में माननीय अध्यक्ष लोकसभा द्वारा नियुक्त विधायिका, न्यायपालिका सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध रखने वाली  समिति का सदस्य नामित किया। त्रिपाठी जी को सिविल, सविंधान तथा चुनाव विधि की विशेषज्ञता भी हासिल है।
 
केशरीनाथ त्रिपाठी का राजनीतिक जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा है। उनका रुझान आरम्भ से ही अपने राष्ट्र, धर्म, संस्कृति और सभ्यता के प्रति रहा है। अतः स्वाभाविक है कि वह सन 1946 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। तत्पश्चात 1952 में जनसंघ की स्थापना काल से सदस्य के रूप में जुड़े रहे। सन 1953 में जनसंघ द्वारा चलाए गये कश्मीर आन्दोलन में त्रिपाठी जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया और इसी सिलसिले में वे केन्द्रीय कारागार नैनी, इलाहाबाद में राजनैतिक कैदी के रूप में बंद भी रहे।
 
त्रिपाठी जी वर्ष 1977 में  जनता पार्टी के टिकट पर झूँसी विधान सभा, इलाहाबाद से पहली बार विधायक चुने गये और 1977 में ही पहली बार वित्त तथा बिक्रीकर मंत्री बने जिस पद पर वे अप्रैल 1979 तक आसीन रहे। मंत्री के रूप में उनके द्वारा किये गए कार्यों की सर्वत्र प्रशंसा आज भी होती है। बिक्री कर के विषय में अनेक सुधार किये तथा उसकी प्रक्रिया का सरलीकरण भी किया। त्रिपाठी जी चुनाव सम्बन्धी मामलों के जानकार माने जाते हैं। उक्त विषय पर इनकी अंग्रेजी में एक पुस्तक भी है।
 
मंत्री पद छोड़ने के बाद उन्होंने पुनः हाईकोर्ट में वकालत प्रारम्भ की। पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर वर्ष 1989, 1991, 1993, 1996 तथा 2002 में   शहर दक्षिणी विधानसभा, इलाहाबाद से उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गये।कुल मिलाकर छह बार विधान सभा के सदस्य रहे | 30 जुलाई 1991 से 15 दिसंबर 1993 तक, 27 मार्च 1997 से मार्च 2002 तक तथा मार्च 2002 से 19 मई 2004 तक केशरीनाथ त्रिपाठी उत्तर प्रदेश विधानसभा के तीन बार अध्यक्ष भी रहे। विधानसभा अध्यक्ष के दौरान त्रिपाठी जी ने अनेकों देश की यात्राएं भी की। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कुशलतापूर्वक विधान सभा का संचालन किया तथा अनेक कठिन परिस्थितियों में उन्हें निर्णय लेने पड़े। केशरीनाथ त्रिपाठी  विधान सभा के अध्यक्ष के रूप में कामनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन की उत्तर प्रदेश शाखा के अध्यक्ष भी रहे। इसी के साथ त्रिपाठी ने अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में सक्रिय भागीदारी भी की। केशरीनाथ त्रिपाठी की कार्य कुशलता को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 14 जुलाई सन 2014 को पश्चिम बंगाल का बीसवां राज्यपाल नियुक्त किया। तत्पश्चात त्रिपाठी जी को 27 नवम्बर 2014 को बिहार, 06 जनवरी 2015 को मेघालय व बाद में मिजोरम व त्रिपुरा तथा पुनः बिहार के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया। त्रिपाठी जी के मार्गदर्शन में पश्चिम बंगाल और बिहार निरंतर प्रगति कर कर रहा है |
 
केशरीनाथ त्रिपाठी को अबतक अनेकों पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। इन्हें भारत गौरव सम्मान, विश्व भारती सम्मान, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान, हिंदी गरिमा सम्मान, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान, साहित्य वाचस्पति सम्मान, अभिषेकश्री सम्मान, बागीश्वरी सम्मान, चाणक्य सम्मान (कनाडा में) , काव्य कौस्तुभ सम्मान आदि अनेक सम्मानों से विभूषित किया गया है।
 
     अपने उत्कृष्ट काव्य कृतियों के सृजन के माध्यम से श्री केशरीनाथ त्रिपाठी ने हिन्दी भाषा एवं साहित्य की अभिनन्दनीय एवं वन्दनीय सेवा की है। केशरीनाथ त्रिपाठी के अब तक सात  कविता संग्रह तथा एक दोहा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके प्रमुख प्रकाशित काव्य संग्रहों में '''‘मनोनुकृति’, ‘आयु पंख’, ‘चिरंतन’, ‘उन्मुक्त’ ,‘मौन और शून्य’, ज़ख्मों पर सबाब ,''' '''ख़यालों का सफ़र''' हैं। एक दोहा संग्रह जो '''‘निर्मल दोहे’''' के नाम से प्रसिद्ध है। २०१५ में सभी काव्य संग्रहों को मिला कर डॉ. प्रकाश त्रिपाठी के सम्पादन में '''‘संचयिता : केशरीनाथ त्रिपाठी’''' का प्रकाशन हुआ है। त्रिपाठी के भाषणों की एक पुस्तक '''‘समय-समय पर’''' इलाहाबाद से प्रकाशित हुई है। बाद में द इमिजेज (मनोनुकृति का अंग्रेजी में अनुवाद ) , तथा मनोनुकृति काव्य संग्रह पर आलोचनात्मक कृति मनोनुकृति : रचना और आलोचना (स.प्रकाश त्रिपाठी ) पुस्तकें प्रकाशित हुईं |
 
'''‘मनोनुकृति’''' केशरीनाथ त्रिपाठी का पहला लोकप्रिय काव्य संग्रह है। इस काव्य संग्रह का प्रकाशन सन 1999 में हुआ। इसका प्रकाशन शान्ति प्रकाशन 84/1 पुराना बैरहना, इलाहाबाद द्वारा किया गया। इसमें कुल 53 कविताएं संग्रहीत हैं। मनोनुकृति की भूमिका में कवि श्री केशरीनाथ त्रिपाठी जी कहते है कि-“ '''मनोनुकृति आपके सामने है। सामान्य बोलचाल की भाषा में शब्दों का अर्पण। जैसे मनुष्य की आत्मा होती है वैसे कहीं कविता की। यह कभी एक शब्द में प्रकट होती है, कभी पंक्ति में। मेरी रचनाओं में कही आत्मा की ध्वनि गुंजित हो तो मैं उसे सार्थक मानूंगा।“''' इसी प्रकार प्रख्यात आलोचक डॉ. जगदीश गुप्त ने पुस्तक के बारे में लिखा है कि – मनोनुकृति के विषय में कवि के रूप में श्री केशरीनाथ त्रिपाठी ने अपने विकासक्रम को लक्षित किया है। भाषा के सन्दर्भ में त्रिपाठी जी की सजगता सराहनीय है। उनकी कविताओं को ध्यानपूर्वक पढ़ने पर अनेक कवितांश और अनेक पंक्तियाँ स्मरणीय सिद्ध हुई हैं। उनका व्यापक जीवनानुभव छोटी और बड़ी दोनों प्रकार की कविताओं में समाहित दिखाई देता है। मनोनुकृति शब्द मुझे असाधारण लगा किन्तु कवि की पहचान के रूप में मुझे स्वीकार्य है। मन से ऊपर उठकर अनुकृति का वृहत्तर रूप उनके काव्यानुभव को अधिक गरिमा प्रदान करे, यही मेरी आकांक्षा है। इस प्रकार विभिन्न प्रकार की विशेषताओं को समेटे हुए केशरीनाथ त्रिपाठी की कविताएं रविन्द्रनाथ टैगोर से आगे और अलग प्रतीत होती हैं।
 
केशरीनाथ त्रिपाठी का दूसरा काव्य-संग्रह '''आयुपंख''' 51 कविताओं का संग्रह है। इसका पहला संस्करण 2001 में नई दिल्ली '''ग्रन्थ अकादमी''' ने प्रकाशित किया तथा दूसरा संस्करण  2014 में शान्ति प्रकाशन, इलाहाबाद ने किया। आयुपंख के बारे में कविवर त्रिपाठी कहते हैं कि-“जीवन की बहुरंगी यात्रा में घटनाएँ, पड़ाव मात्र है। स्नेह ,प्रेम, श्रद्धा - इन शब्दों का संबंधों के संदर्भ में ,अथवा आयु की दृष्टि से, तुलनात्मक अर्थ तो हो सकता है, पर इन सब के मूल में बस एक मंत्र है— लगाव, जो सृष्टि के किसी भी सर्जन से हो सकता है। पशु, पक्षी, वृक्ष पर्वत, मानव, देव, दानव, प्रकृति या किसी से भी | अभी  भी स्वार्थ ,स्नेह , प्रेम व श्रद्धा को अपनी बेड़ियों में पूरी से तरह नहीं जकड़ सका है, जकड़ भी नहीं सकता ।”आगे त्रिपाठी जी लिखते हैं कि “इस संग्रह की चार-पांच कविताओं को छोड़कर शेष सभी रचनाएं विगत दो वर्षों के भीतर की हैं। इनमें से कुछ में विभिन्न आयु के आयामों के चित्र हैं। शब्द जैसे निकले उन्हें वैसे ही रख दिया है। उन्हें परिष्कृत करने की चिंता मैंने नहीं की। स्वाभाविक है कि कहीं मात्रा दोष और व्याकरण दोष होगा।” इस प्रकार पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी का दूसरा काव्य संग्रह आयुपंख अपनी पूरी महत्ता को समेटे हुए है।
 
केशरीनाथ त्रिपाठी का तीसरा काव्य संग्रह '''उन्मुक्त''' है। इसका प्रकाशन सन 2006 में शान्ति प्रकाशन इलाहाबाद द्वारा हुआ। इस संग्रह में कुल 52 कविताएं संग्रहित हैं। ये कविताएं कवि के उन्मुक्त मन के विचार हैं जो अपने में विभिन्न क्षेत्रों को समेटे हुए है। इस संग्रह में त्रिपाठी जी के अनुसार-“रचनाओं का सकारात्मक तथा परिमार्जक दृष्टिकोण समाज को सार्थक व सद्गुणी कर्म के लिए प्रेरित करता है। इस संग्रह की कुछ रचनाओं में इस सन्देश की झलक है।” इस प्रकार उन्मुक्त की कविताएं केशरीनाथ त्रिपाठी के उन्मुक्त मन की देन हैं। उनकी सम्पूर्ण कविताएं कोई न कोई सन्देश देती हैं। साथ ही सभी वादों से मुक्त होकर ‘प्रीति और समर्पण’ के गीत भी सुनाती हैं। बातचीत की शैली में भाषा बिलकुल कबीर की तरह बहता नीर है।
 
केशरीनाथ त्रिपाठी का चौथा काव्य संग्रह '''चिरंतन''' है। इसका प्रकाशन 2014 में शान्ति प्रकाशन ने ही किया। इस संग्रह में कुल 45 कवितायें तथा 40 क्षणिकाएं संग्रहीत हैं। संग्रह के बारे में कवि का कहना है कि — “भौतिकता की चकाचौंध व भूमंडलीकरण ने समाज और साहित्य को पर्याप्त प्रभावित किया है। अध्यात्म के प्रति उदासीनता, राष्ट्रीयता के भाव का शनैः शनैः क्षरण, आत्म विस्मृति की बढती प्रवृत्ति, विरोधाभासी जीवन, मूल्यहीनता, अर्थ के समक्ष आदर्शों, सुसंस्कारों, सद्वृत्तियों का गौड़ हो जाना आदि इसी के परिणाम हैं। यह सब रचनाकार की चिंता के विषय हैं। स्वाभाविक है कि कविता इन सब से अछूती नहीं रहेगी।”
 
त्रिपाठी जी का पांचवां काव्य संग्रह '''मौन और शून्य''' है। इस संग्रह का प्रकाशन सन 2011में हुआ। इसमें कुल 53 कविताएं संकलित है। ये कविताएं उनके विचारों के विभिन्न पड़ाव हैं। जिस समय जो समझा कवि ने लिख दिया। त्रिपाठी जी लिखते हैं कि- “मैं कवि नहीं हूँ। कविता लिखने के लिए नियमित बैठता भी नहीं। जब कभी मन में किसी बात को सुनकर या कुछ देखकर कोई प्रतिक्रिया हुई, या कोई भाव आया तो उसे उतार लेता हूँ।” इस प्रकार कवि अपने अनंत विचारों में चिंतन मनन करते हुए समादृत हो जाता है। मौन और शून्य में संगृहीत रचनाएँ त्रिपाठी जी ने बहुत बाद में लिखीं हैं। इससे उनके कविताओं के विकासक्रम को समझा जा सकता है।
 
      केशरीनाथ त्रिपाठी का छठा काव्य संग्रह '''‘जख्मों पर सबाब’''' पुस्तक हिंदी से  राजस्थानी तथा उर्दू में अनुदित पहला प्रकाशित काव्य-संग्रह है | इस संग्रह का हिंदी से राजस्थानी में डॉ.जेबा रशीद ने तथा हिंदी से उर्दू में डॉ. जरीना जरीन  ने किया है | हिंदी से उर्दू में अनुदित काव्य-संग्रह में 140 कवितायें संग्रहीत हैं | संग्रह का प्रकाशन भारती परिषद् ,प्रयाग ने किया है | जबकि हिंदी से राजस्थानी में अनुदित कविता संग्रह 139 कवितायें हैं |इस संग्रह का प्रकाशन अनामिका प्रकाशन ,इलाहाबाद ने किया है |
 
 ‘ख़यालों का सफ़र’ केशरीनाथ त्रिपाठी का उर्दू में प्रकाशित पहला  ग़जल  संग्रह है | उक्त संग्रह का अनुवाद राजस्थानी भाषा में डॉ.जेबा रशीद ने किया है | इस संग्रह में छोटी – बड़ी कुल 92 गजलें संग्रहीत हैं | पुस्तक का प्रकाशन सन 2017 में वचन पब्लिकेशन्स इलाहाबाद ने किया है | गजलों  में त्रिपाठी जी के जीवनानुभव तो हैं ही उसमें जीवन जीने की कला भी समाहित है  | संग्रह में लगभग सभी गजलें गीतात्मकता से परिपूर्ण हैं |
 
     केशरीनाथ त्रिपाठी केवल कवि ही नहीं हैं अपितु उन्होंने  समय समय पर महत्वपूर्ण दोहे भी लिखे हैं। उनका पहला दोहा संग्रह है जो '''निर्मल दोहे''' के नाम से प्रकाशित है | पुस्तक में  कुल 186 दोहे संग्रहीत हैं। इसका प्रकाशन सन 2006 में हुआ। ये दोहे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर लिखे गये हैं। जैसे कि– आचरण-व्यवहार (25) , अहंकार (10) , इच्छा (5) , कर्म (5) , क्रोध (5) , करुणा (5) , जीवन, ईश्वर (10) झूठ (5) , दुःख, पीड़ा (15) , धर्म (5) , प्रेम (10) , सत्य-असत्य (27) , सद्कर्म (5) , क्षमा (5) , ज्ञान-अज्ञान (7) , ऋण (5) तथा विविध (27) दोहे आदि।
 
केशरीनाथ त्रिपाठी की लगभग सम्पूर्ण कविताओं को एक जगह संकलित कर संपादित करने का श्रेय डॉ.प्रकाश त्रिपाठी को है | पुस्तक का नाम  है  ‘संचयिता :  केशरीनाथ त्रिपाठी’ | इसका प्रकाशन वचन पब्लिकेशन्स, इलाहाबाद द्वारा सन 2015 में किया गया। इस पुस्तक में आलोचना सहित त्रिपाठी जी के पांच  कविता संग्रहों एवं एक दोहा संग्रह का संकलन है । संकलन मैं कुल 254 कविताएं, 40 क्षणिकाएं, एवं 186 दोहे संकलित हैं। सम्पादक ने त्रिपाठी जी की रचनाओं को कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर से अलग और आगे बताया है |  इसी प्रकार  '''समय-समय पर''' पुस्तक केशरीनाथ त्रिपाठी के दिए हुए भाषणों का विचार संग्रह है। इसमें कुल चौदह अध्याय हैं जिनमे त्रिपाठी जी द्वारा समय-समय पर दिए गये भाषण हैं। इसका प्रकाशन किताब महल, इलाहाबाद द्वारा सन 2015 में किया गया। सम्पादन डा. यास्मीन सुल्ताना नकवी ने किया है | 
 
केशरीनाथ त्रिपाठी ने अपने लोकप्रिय कविता संग्रह ‘मनोनुकृति’  का ‘द इमिजेज’ नाम से हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है | इस संग्रह में कुल 53 कवितायें संग्रहीत हैं | संग्रह का प्रथम प्रकाशन 2002 में रूपा एंड कंपनी नई दिल्ली ने किया था | जिसका दूसरा संस्करण सन 2017 में वचन पब्लिकेशन्स इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है | केशरी नाथ त्रिपाठी के आधिकारिक विद्वान् डॉ.प्रकाश त्रिपाठी ने त्रिपाठी जी का लोकप्रिय काव्य –संग्रह '''मनोनुकृति''' पर  '''‘मनोनुकृति : रचना और आलोचना’''' नामक आलोचनात्मक पुस्तक का सम्पादन किया है | इसमें विभिन्न विद्वानों के कुल 54 आलोचनात्मक लेख संकलित हैं | पुस्तक का प्रकाशन वचन पब्लिकेशन्स ,इलाहाबाद ने किया है |  
 
इस प्रकार हम देखते हैं कि  पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी का कृति- व्यक्तित्व बहुत विस्तृत है | उनकी भाषा ,उनकी शैली ,उनका सा आचरण ,उनका व्यवहार सबको भाता है ,इसीलिए तो वे लोकप्रिय हैं | प्रभु से प्रार्थना है कि उन्हें निरंतर स्वस्थ एवं प्रसन्न दीर्घजीवी बनाये रखें जिससे वे  साहित्य,राजनीति और समाज की निरंतर सेवा करते रहें,हम सबको उनका आशीर्वाद और प्रेरणा मिलती रहे | त्रिपाठी जी का पूरा जीवन और साहित्य हम सबका प्रेरणास्रोत है |
 
''' (लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा के क्षेत्रीय केंद्र इलाहाबाद में सहायक क्षेत्रीय निदेशक व वचन पत्रिका के सम्पादक,बहुवचन  के पूर्व सह-सम्पादक  तथा केशरी नाथ त्रिपाठी की रचनाओं के आधिकारिक विद्वान् हैं )'''{{Infobox Indian politician
| name = '''केसरी नाथ त्रिपाठी'''
| image = Keshari Nath Tripathi - Kolkata 2016-07-01 5591.JPG
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==बाहरी कड़ियाँ==
{{भारतीय राज्यों के वर्तमान राज्यपाल}}
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