"अज्ञेयवाद": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
[[यूरोपीय दर्शन]] में जहाँ संशयवाद का जन्म [[यूनान]] में ही हो चुका था, वहाँ अज्ञेयवाद आधुनिक युग की विशेषता है। अज्ञेयवादियों में पहला नाम जर्मन दार्शनिक [[इमानुएल कांट|कांट]] (1724-1804) का है। कांट की मान्यता है कि जहाँ व्यवहार जगत् (फिनामिनल वर्ल्ड) बुद्धि या प्रज्ञा की धारणाओं (कैटेगीरीज ऑव अंडरस्टैंडिंग) द्वारा निर्धार्य, अतएव ज्ञेय नहीं है। तत्व दर्शन द्वारा अतींद्रिय पदार्थों का ज्ञान संभव नहीं है। फ्रेंच विचारक कास्ट (1798-1857) का भी, जिसने [[भाववाद]] (पाजिटिविज्म) का प्रवर्तन किया, यह मत है कि मानव ज्ञान का विषय केवल गोचर जगत् है, अतींद्रिय पदार्थ नहीं। सर [[विलियम हैमिल्टन]] (1788-1856) तथा उनके शिष्य हेनरी लांग्यविल मैंसेल (1820-1871) का मत है कि हम केवल सकारण अर्थात् कारणों द्वारा उत्पादित अथवा सीमित एवं सापेक्ष पदार्थों को ही जान सकते हैं, असीम, निरपेक्ष एवं कारणहीन (अन्कंडिशंड) तत्वों को नहीं। तात्पर्य यह कि हमारा ज्ञान सापेक्ष है, मानवीय अनुभव द्वारा सीमित है और इसीलिए निरपेक्ष असीम को पकड़ने में असमर्थ है। ऐसा ही मंतव्य [[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-1903) ने भी प्रतिपादित किया है। सब प्रकार का ज्ञान संबंधमूलक अथवा सापेक्ष होता है; ज्ञान का विषय भी संबंधों वाली वस्तुएँ हैं। किसी पदार्थ को जानने का अर्थ है उसे दूसरी वस्तुओं से तथा अपने से संबंधित करना, अथवा उन स्थितियों का निर्देश करना जो उसमें परिवर्तन पैदा करती है। ज्ञान सीमित वस्तुओं का ही हो सकता है। चूँकि असीम तत्व संबंधहीन एवं निरपेक्ष है, इसलिए वह अज्ञेय है। तथापि स्पेंसर का एक ऐसी असीम शक्ति में विश्वास है जो गोचर जगत् को हमारे सामने उत्क्षिप्त करती है। सीमा की चेतना ही असीम की सत्ता का प्रमाण है। यद्यपि स्पेंसर असीम तत्व को अज्ञेय घोषित करता है, फिर भी उसे उसकी सत्ता में कोई संदेह नहीं है। वह यहाँ तक कहता है कि बाह्य वस्तुओं के रूप में कोई अज्ञात सत्ता हमारे सम्मुख अपनी शक्ति की अभिव्यंजना कर रही है।
 
== इन्हें भी देखें ==