"निरुक्त": अवतरणों में अंतर

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== निरुक्त की टीकाएँ ==
 
[[File:Nirukt adhyay11 paad2.jpg ‎| thumb|right|500px| निरुक्त के अंतिम भाग, दैवत कांड के ११वें अध्याय में अथर्वण-अङ्गिरस शब्द की उत्पत्ति बताने वाले दो अलग-अलग भाष्य ]]
वर्तमान उपलब्ध निरुक्त, [[निघंटु]] की व्याख्या (commentary) है और वह यास्क रचित है। यास्क का योगदान इतना महान है कि उन्हें '''निरुक्तकार''' या '''निरुक्तकृत''' ("Maker of Nirukta") एवं '''निरुक्तवत''' ("Author of Nirukta") भी कहा जाता है। यास्क ने अपने निरुक्त में पूर्ववर्ती निरुक्तकार के रूप में औपमन्यव, औटुंबरायण, वाष्र्यामणि; गार्ग्य, आग्रायण, शाकपूणि, और्णनाभ, तेटीकि, गालव, स्थौलाष्ठीवि, कौंष्टुकि और कात्थक्य के नाम उद्धृत किए हैं ( तथापि उनके ग्रंथ अब प्राप्त नहीं है)। इससे सिद्ध है कि 12 निरुक्तकारों को यास्क जानते थे। 13वें निरुक्तकार स्वयं यास्क हैं। 14वाँ निरुक्तकार अथर्वपरिशिष्टों में से 48वें परिशिष्ट का रचयिता है। यह परिशिष्ट निरुक्त निघंटु स्वरूप है।