"प्लेटो": अवतरणों में अंतर

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== जीवनी ==
प्लेटो का जन्म एथेंसअथेंस के समीपवर्ती ईजिना नामक द्वीप में हुआ था। उसका परिवार सामन्त वर्ग से था। उसके पिता 'अरिस्टोनअरिस्तोन' तथा माता 'पेरिक्टोनपेरिक्तोन' इतिहास प्रसिद्ध कुलीन नागरिक थे। 404 ई. पू. में प्लेटोप्लातो सुकरात का शिष्य बना तथा सुकरात के जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका शिष्य बना रहा। सुकरात की मृत्यु के बाद प्रजातंत्र के प्रति प्लेटो को घृणा हो गई। उसने मेगोरा, मिस्र, साएरीन, इटलीइतली और सिसली आदि देशों की यात्रा की तथा अन्त में एथेन्सअथेन्स लौट कर अकादमी की स्थापना की। प्लेटोप्लातोन इस अकादमी का अन्त तक प्रधान आचार्य बना रहा।[1]
सुव्यवस्थित धर्म की स्थापना
 
पाश्चात्य जगत में सर्वप्रथम सुव्यवस्थित धर्म को जन्म देने वाला प्लेटोप्लातोन ही है। प्लेटोप्लातोन ने अपने पूर्ववर्ती सभी दार्शनिकों के विचार का अध्ययन कर सभी में से उत्तम विचारों का पर्याप्त संचय किया, उदाहरणार्थ- 'माइलेशियन का द्रव्य', 'पाइथागोरस का स्वरूप', 'हेरेक्लाइटस का परिणाम', 'पार्मेनाइडीज का परम सत्य', 'जेनो का द्वन्द्वात्मक तर्क' तथा 'सुकरात के प्रत्ययवाद' आदि उसके दर्शन के प्रमुख स्रोत थे।
प्लेटो का मत
 
प्‍लेटोपलातोन् के समय में कवि को समाज में आदरणीय स्‍थान प्राप्‍त था। उसके समय में कवि को उपदेशक, मार्गदर्शक तथा संस्कृति का रक्षक माना जाता था। प्‍लेटोपलातोन् के शिष्‍य का नाम अरस्तू था। प्‍लेटोपलातोन् का जीवनकाल 428 ई.पू. से 347 ई.पू. माना जाता है। उसका मत था कि "कविता जगत की अनुकृति है, जगत स्वयं अनुकृति है; अतः कविता सत्य से दोगुनी दूर है। वह भावों को उद्वेलित कर व्यक्ति को कुमार्गगामी बनाती है। अत: कविता अनुपयोगी है एवं कवि का महत्त्व एक मोची से भी कम है।"
रचनाएँ
 
प्लेटोप्लातोन की प्रमुख कृतियों में उसके संवाद का नाम विशेष उल्लेखनीय है। प्लेटो ने 35 संवादों की रचना की है। उसके संवादों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
 
*सुकरात कालीन संवाद - इसमें सुकरात की मृत्यु से लेकर मेगारा पहुंचने तक की रचनाएं हैं। इनमें प्रमुख हैं- हिप्पीयस माइनर, ऐपोलॉजी, क्रीटोक्रीतो, प्रोटागोरसप्रोतागोरस आदि।
*यात्रीकालीन संवाद - इन संवादों पर सुकरात के साथ-साथ 'इलियाई मत' का भी कुछ प्रभाव है। इस काल के संवाद हैं- क्लाइसिस, क्रेटिलसक्रेतिलस, जॉजियस इत्यादि।
*प्रौढ़कालीन संवाद - इस काल के संवादों में विज्ञानवाद की स्थापना मुख्य विषय है। इस काल के संवाद हैं- सिम्पेासियान, फिलेबु्रस, ट्रिमेर्यासत्रिमेर्यास, रिपब्लिक और फीडो आदि।[1]
 
प्‍लेटोपलातोन् की रचनाओं में 'द रिपब्लिक', 'द स्टैट्समैन', 'द लाग', 'इयोन', 'सिम्पोजियम' आदि प्रमुख हैं।
काव्य के महत्त्व की स्वीकार्यता
 
प्लेटोपलातोन् काव्य के महत्व को उसी सीमा तक स्वीकार करता है, जहां तक वह गणराज्य के नागरिकों में सत्य, सदाचार की भावना को प्रतिष्ठित करने में सहायक हो। प्लेटोपलातोन् के अनुसार "मानव के व्यक्तित्व के तीन आंतरिक तत्त्व होते हैं-
 
*बौद्धिक
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*सतृष्ण
 
काव्य विरोधी होने के बावजूद प्लेटोपलातोन् ने वीर पुरुषों के गुणों को उभारकर प्रस्तुत किए जाने वाले तथा देवताओं के स्तोत्र वाले काव्य को महत्त्वपूर्ण एवं उचित माना है।
प्लेटोपलातोन् के काव्य विचार
 
==सन्दर्भ==