"मैसूर": अवतरणों में अंतर
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'''मैसूर''' [[भारत]] के [[कर्नाटक]] [[प्रान्त]] का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह प्रदेश की राजधानी [[बंगलोर]] से लगभग
== इतिहास ==
मैसूर का प्रामाणिक इतिहास भारत पर [[सिकंदर]] के आक्रमण (327 ई0 पू0) के बाद से प्राप्त होता है। उस तूफान के पश्चात् ही मैसूर के उत्तरी भाग पर [[सातवाहन वंश]] का अधिकार हुआ था और यह अधिकार द्वितीय शती ईसवी तक चला। मैसूर के ये राजा 'सातकर्णी' कहलाते थे। इसके बाद उत्तर कशचमी क्षेत्र पर [[कदंब वंश]] का और उतर पूर्वी भाग पर [[पल्लव राजवंश|पल्लवों]] का शासन हुआ। कदंबों की राजधनी वनवासी में तथा पल्लवों की कांची में थी। इसी बीच उतर से [[इक्ष्वाकु वंश]] के सातवें राजा दुर्विनीत ने पल्लवों से कुछ क्षेत्र छीनकर अपने अधिकार में कर लिए। आठवें शासक श्रीपुरूष ने पल्लवों को हारकर "परमनदि" की उपाधि धारण की, जो [[गंग वंश]] के परवर्ती शासकों की भी उपाधि कायम रही।
उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पर पांचवी शती में [[चालुक्य राजवंश|चालुक्यों]] ने आक्रमण किया। छठी शती में चालुक्य नरेश [[पुलिकैशिन]] ने पल्लवों से वातादि (वादामी) छीन लिया ओर वहीं राजधानी स्थापित की। आठवीं शती के अंत में राष्ट्रकूट वंश के ध्रूव या धारावर्ष नामक राजा ने पल्लव नरेश से कर वसूल किया और गंग वंश के राजा को भी कैेद कर लिया। बाद में गंग राजा मुक्त कर दिया
मैसूर के शेष भाग याने उत्तर तथा पशिचमी क्षेत्र पर पश्चिमी चालुक्यों का अधिकार रहा। इनमें विक्रमादित्य बहुत प्रसिद्ध था, जिसने 1076 से 1126 तक शासन किया। 1155 में चालुक्यों का स्थान [[कलचुरी राजवंश|कलचूरियों]] ने ले लिया। इनकी सत्ता 1153 तक ही कायम रही।
गंग वंश की समाप्ति पर पोयसल या होयसाल वंश का अधिकार स्थापित हो गया। ये अपने को यादव या चंद्रवंशी कहते थे। इनमें बिट्टिदेव अधिक प्रसिद्ध था जिसने 1104 से 1141 तक शासन किया। 1116 में तलकाद पर कब्जा करने के बाद उसने मैसूर से चोलों को निकाल बाहर किया। सन् 1343 में इस वंश का प्रमुख समाप्त हो गया।
सन् 1336 में
18वीं शती में मैसूर पर मुसलमान शासक [[हैदर अली]] की पताका फहराई। सन् 1782 में उसकी मृत्यु के बाद 1799 तक उसका पुत्र [[टीपू सुल्तान]] शासक रहा। इन दोनों ने अंग्रेजों से अनेक लड़ाईयाँ लड़ी। [[श्रीरंगपत्तनम का युद्ध|श्रीरंगपट्टम् के युद्ध]] में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् मैसूर के भाग्यनिर्णय का अधिकार अंग्रेजों ने अपने हाथ में ले लिया। किंतु राजनीतिक स्थिति निरंतर उलझी हुई बनी रही, इसलिये 1831 में हिंदु राजा को गद्दी से उतारकर वहाँ अंग्रेज कमिश्नर नियुक्त हुआ। 1881 में हिंदु राजा [[चामराजेंद्र]] गद्दी पर बैठे। 1894 में
== पर्यटन ==
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=== मैसूर महल ===
[[चित्र:Mysore Palace Front view.jpg|thumb|मैसूर का महाराजा
{{main|महाराजा पैलेस, मैसूर}}
यह महल मैसूर में आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है। मिर्जा रोड पर स्थित यह महल भारत के सबसे बड़े महलों में से एक है। इसमें मैसूर राज्य के वुडेयार महाराज रहते थे। जब लकड़ी का महल जल गया था, तब इस महल का निर्माण कराया गया। 1912 में बने इस महल का नक्शा ब्रिटिश आर्किटैक्ट हेनरी इर्विन ने बनाया था। कल्याण मंडप की कांच से बनी छत, दीवारों पर लगी तस्वीरें और स्वर्णिम सिंहासन इस महल की खासियत है। बहुमूल्य रत्नों से सजे इस सिंहासन को दशहरे के दौरान जनता के देखने के लिए रखा जाता है। इस महल की देखरख अब पुरातत्व विभाग करता है।
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