"शिया इस्लाम": अवतरणों में अंतर

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सन् ६३२ में मुहम्म्द साहब ने अपने आखिरी हज में [[ख़ुम्म सरोवर]] के निकट अपने साथियों को संबोधित किया था। शिया विश्वास के अनुसार इस ख़िताब में उन्होंने अपने दामाद अली को अपना वारिस बनाया था। सुन्नी इस घटना को अली (अल्०) की प्रशंसा मात्र मानते है और विश्वास रखते हैं कि उन्होंने हज़रत अली को ख़लीफ़ा नियुक्त नहीं किया। इसी बात को लेकर दोनो पक्षों में मतभेद शुरु होता है।
 
हज के बाद मुहम्मद साहब (स्०) बीमार रहने लगे। उन्होंने सभी बड़े [[सहाबा|सहाबियों]] को बुला कर कहा कि मुझे कलम दावात दे दो कि मे तुमको एसा नविश्ता लिख दूँ कि तुम भटको नही तो [[उमर]] ने कहा कि ये हिजयान कह रहे हे और नहीं देने दिया (देखे बुखारी, मुस्लिम)। आपके हुक्म के खिलाफ़ ये लोग लडाई पर नहीं गये रस्ते मे रुके रहे।
शिया इतिहास के अनुसार जब पैग़म्बर साहब की मृत्यु का समाचार मिला तो भी ये वापस न आकर सकिफा में सभा करने लगे कि अब क्या करना चाहिये। जिस समय हज़रत मुहम्मद (स्०) की मृत्यु हुई, अली और उनके कुछ और मित्र मुहम्मद साहब (स्०) को दफ़नाने में लगे थे, [[अबु बक़र]] मदीना में जाकर ख़िलाफ़त के लिए विमर्श कर रहे थे। मदीना के कई लोग (मुख्यत: बनी ओमैया, बनी असद इत्यादि कबीले) अबु बकर को खलीफा बनाने प‍र सहमत हो गये। ध्यानशिया रहेमान्यताओं किके अनुसार मोहम्मद साहेब एवम अली के कबीले वाले यानि [[बनी हाशिम]] अली को ही खलीफा बनाना चाहते थे। पर इस्लाम के अब तक के सबसे बड़े साम्राज्य (उस समय तक संपूर्ण अरबी प्रायद्वीप में फैला) के वारिस के लिए मुसलमानों में एकजुटता नहीं रही। कई लोगों के अनुसार अली, जो मुहम्मद साहब के चचेरे भाई थे और दामाद भी (क्योंकि उन्होंने मुहम्मद साहब की संतान [[फ़ातिमा]] से शादी की थी) ही मुहम्मद साहब के असली वारिस थे। परन्तु अबु बक़र पहले खलीफा बनाये गये और उनके मरने के बाद उमर को ख़लीफ़ा बनाया गया। इससे अली (अल्०) के समर्थक लोगों में और भी रोष फैला परन्तु अली मुसलमानों की भलाई के लिये चुप रहे।
=== उस्मान की ख़िलाफ़त ===
उमर के बाद तीसरे खलीफ़ा [[उसमान बिन अफ़्फ़ान|उस्मान]] बने। प‍रन्तु इनके समय मे शिया राफज़ी बाग़ियों लोगों ने मिस्र तथा इराक़ व अन्य स्थानो से आकर मदीना में आकर उस्मान के घर को घेर लिया ४० दिन तक उस्मान के घर को घेराव किया अन्त मे उस्मान को शहीद कर डाला।उस्मान बिन अफ्फान को जब शहीद किया गया तब उनकी उम्र ७९(79) थी, उन्हें सर में बार बार वार कर के मारा गया उनकी पत्नी उनको बचाने बीच आयी इससे उनकी ऊँगली कट गयी, बाघी उनके घर में पीछे की तरफ से अन्दर आये ,सामने के तरफ हज़रत अली के दोनों बेटे हुसैन इब्ने अली और हसन इब्ने अली ,रखवाली कर रहे थे !