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[[चित्र:Odysseus Polyphemos Cdm Paris 190.jpg|200px|thumb|right|ओडेसी का प्राचीन ज़ूनानी निदर्श चित्र]]
'''ओदिसी''' ([[प्राचीन यूनानी भाषा]] : Ὀδυσσεία ''Odusseia'') , [[होमर]]कृत दो प्रख्यात यूनानी [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] में से एक है। [[ईलियद]] में होमर ने [[ट्राजन युद्ध]] तथा उसके बाद की घटनाओं का वर्णन किया है जबकि ओदिसी में ट्राय के पतन के बाद ईथाका के राजा ओदिसियस की, जिसे यूलिसीज़ नाम से भी जाना जाता है, उस रोमांचक यात्रा का वर्णन है जिसमें वह अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए, 10 वर्ष बाद अपने घर पहुँचता है।
ओडेसी ई.पू. आठवीं शताब्दी में लिखी गयी है। यह कहाँ लिखी गई इस संबंध में माना जाता है कि यह इस समय के यूनान अधिकृत में सागर तट आयोनिया में लिखी गई जो अब टर्की का भाग है।<ref>{{cite book |last=Rieu |first=D.C.H. |title= ''The Odyssey''|year=२००३|publisher=पेंगुइन|location=|id= |page=''xi'' |accessday= |accessmonth= मई|accessyear=}}</ref>
 
==कथानक==
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== सामग्री ==
[[File:Beginning Odyssey.svg|thumbnail|right|300px|ओडेसी का प्रथम अनुच्छेद [[ग्रीक]] मे]]
यह कथा चौबीस सर्गो मेमें बताई गयी है, जिनमे सर्ग एक मेमें ट्राय युद्ध के बाद दस वर्षों तक योद्धा ओडेसियस वरुण के क्रोध के कारण कष्ट भोगता एवं भटकता रहा। इस कष्टमय काल के अन्तिम भाग में कथा प्रारम्भ होती है। सर्ग चार मेमें टेल्मेकस की मिनीलास एवं हेलेन से भेंट होती है। सर्ग नौ में, औडेसियन द्वारा सिकोनीजों के युद्ध की कहानी का वर्णन है।
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'''ओडेसियस ने कहा'''
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सर्ग तेरह मेमें आतिथेय राजा द्वारा ओडेसियन की यात्रा के प्रबन्धन का वर्णन है। सर्ग एक्कीस मेमें एथनी द्वारा पिनीलोपी को स्वयंवर का सुझाव की कथा है। सर्ग 24 दुष्ट कुमारी की आत्माएँ अध यमलोक में वा उनके सम्बन्धियों द्वारा युद्ध की योजना और युद्ध प्रारम्भ होने वा अन्त में शान्ति एवं सन्धि की कथा है।
 
===संगठन===
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पाँचवें अनुवाक् में पुन: देवताओं की सभा का दृश्य है जिसमें एथीना एक बार फिर ओदिसियस की मुक्ति का प्रयत्न करती है। जीयस हरमीज को कैलिप्सो के पास भेजता है और उसके कहने से वह वृक्षों के लट्ठों का बेड़ा बनाकर ओदिसियस को ईथाका की ओर रवाना कर देती है। 17 दिन तक तारों की सहायता से यात्रा करने के बाद जैसे ही ओदिसियस फ़ियैशिया द्वीप के निकट पहुँचता है, समुद्र के देवता पोसीदोन के क्रोध के कारण उसका बेड़ा टूट जाता है और वह लहरों में डूबने उतराते लगता है। तभी समुद्र की अप्सरा लिउकोथिया उसे एक प्राणरक्षक रूमाल देती है जिसके सहारे वह अंतत: फ़ियैशिया पहुँचता है।
 
छठे अनुवाक् में फ़ियैशिया के राजा एलसिनस की बेटी नउसिकाआ स्वप्न में एथीना से आदेश पाकर अगली सुबह समुद्रतट पर अपने कपड़े धोने जाती है जहाँ उसकी भेंट नंगे ओदिसियस से होती है। सातवें अनुवाक् में वह उसे कपड़ा पहनाकर घर ले आती है। आठवें अनुवाक् में राजा एलसिनस दरबार में ओदिसियस का स्वागत करता है। इस अवसर पर भाट ट्राजन-युद्ध-संबंधी गीत गाता है तो ओदिसियस विचलित होकर रोने लगता है। राजा उससे रोने का कारण पूछता है तो ओदिसियस को अपना वास्तविक परिचय देना पड़ता है। अगले तीन अनुवाकों में ओदिसियसट्राय के पतन के बाद की अपनी 10 वर्ष की रोमांचक यात्रा का विवरण सबको सुनाता है। 12वें अनुवाक में ओदिसियमस फ़ियैशिया के जादुई जहाज पर ईथाका पहुँचता है जहाँ एथीना एक गड़ेरिए के रूप में उससे मिलती है और उसे भिखारी के रूप में परिवर्तित कर देती है ताकि उसकी पत्नी के पाणिग्रहणार्थी उसे पहचानकर कोई हानि न पहुँचा सकें। 13वें अनुवाक् में एथीना ओदिसियस को उसके शूकरपाल के यहाँ भेजकर स्वयं स्पार्टा जाती है और टेलेमैकस को शीघ्रता से ईथाका लौटने का आदेश देती है। 14वें अनुवाक् में ओदिसियस तथा शूकरपाल की बातचीत है।
 
15वें अनुवाक् में टेलेमैकस अपनी माँ के पाणिग्रहणार्थियों के षड्यंत्र से बचकर सुरक्षित घर लौट आता है। 16वें अनुवाक् में टेलेमैकस शूकरपाल के घर में अपने पिता को पहचान लेता है। पश्चात् पितापुत्र पिनलोपी के पाणिग्रहणार्थियों से छुटकारा पाने की योजना बनाते हैं। 17वें तथा 18वें अनुवाक् में भिक्षुकवेशी ओदिसियस अपने प्रासाद में पहुँचता है जहाँ उसका पुराना कुत्ता एरगस उसे पहचानकर खुशी के मारे दम तोड़ देता है। इसी समय ओदिसियस प्रासाद में उपस्थित पिनलोपी के पाणिग्रहणार्थियों का औद्धत्य देखता है जिससे आगे चलकर उन्हें मारने के उसके भयंकर कृत्य की उचित भूमिका भी बन जाती है। 19वें अनुवाक् में ओदिसिय तथा पिनलोपी की आमने सामने बातचीत होती है परंतु पिनलोपी अपने पति को पहचान नहीं पाती, जबकि उसकी पुरानी धाय यूरीक्लिया उसके पैर में बचपन में बने क्षतचिह्न को देखकर उसे पहचान जाती है। 20 वें अनुवाक् में ओदिसियस गुस्से के कारण रात भर जागकर अनेक बातें सोचता रहता है।
 
21 वें अनुवाक् में पिनलोपी अपने पाणिग्रहणार्थियों को चुनौती देती है कि वे सब पारी पारी ओदिसियस के धनुष का चिल्ला चढ़ाकर इस तरह तीर चलाएँ कि वह विशाल वृक्ष में टँगे 12 छल्लों के बीच से निकल जाए। सब असफल होते हैं किंतु भिक्षुकवेशी ओदिसियस छल्लों के बीच से तीर निकाल देता है। 22 वें अनुवाक् में महाकाव्य का चरमोत्कर्ष है। ओदिसियस पिनलोपी के सारे पाणिग्रहणार्थियों को तीरों से बेधकर मार देता है। कोई भी एक, बचकर निकल नहीं पाता, क्योंकि विशाल कक्ष के सभी दरवाजें पहले ही बंद कर दिए गए थे 23वें अनुवाक् में पिनलोपी अपने पति को पहचानती है और दोनों के मिलन का हृदयग्राही एवं मर्मस्पर्शी दृश्य सामने आता है। महा काव्य के अंतिम अथवा 24वें अध्याय में, जिसे कुछ आलोचक प्रक्षिप्त मानते हैं, देवदूत मरकरी पिनलोपी के सभी पाणिग्रहणार्थियों की आत्माओं को नरक के निचले एवं निकृष्ट प्रदेशों में ले जाता है जहाँ उन्हें विभिन्न प्रकार के त्रासमय दंड दिए जाते हैं। इसी बीच ओदिसियस नगर के बाहर खेतों में जाकर अपने पिता लैरटीज़ से मिलता है। अंत में ओदिसियस के घर लौट आने के उपलक्ष में शानदार दावत होती है और इथाका में सुखशांति स्थापित होने की सूचना के साथ ग्रंथ का समापन हो जाता है।
 
== कथा कौशल ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ओदिसी" से प्राप्त