"आलवार सन्त": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
छो 220.227.97.99 (Talk) के संपादनों को हटाकर Sanjeev bot के आखिरी अवतरण को पूर्ववत कि... |
ऑटोमेटिक वर्तनी सु, replaced: → |
||
पंक्ति 1:
'''आलवार''' ([[तमिल]] : ஆழ்வார்கள்) ([aːɻʋaːr] ; अर्थ : ‘भगवान में डुबा हुआ' <ref>[http://www.ramanuja.org/sv/alvars/ "Meaning of Alvar"] ramanuja.org. Retrieved 2007-07-02.</ref>) [[तमिल]] कवि एवं सन्त थे। इनका काल ६ठी से ९वीं शताब्दी के बीच रहा। उनके पदों का संग्रह "''[[
[[विष्णु]] या [[नारायण]] की उपासना करनेवाले भक्त 'आलवार' कहलाते हैं। इनकी संख्या 12 हैं। उनके नाम इस प्रकार है -
:(1) पोरगे आलवार
पंक्ति 23:
== परिचय ==
जब-जब भारत में विदेशियों के प्रभाव से धर्म के लिए खतरा उत्पन्न हुआ, तब-तब अनेक संतों की जमात ने लोक मानस में धर्म की पवित्र धारा बहाकर, उसकी रक्षा की। दक्षिण के आलवार संतों की भी यही भूमिका रही है। ‘आलवार’ का अर्थ है ‘जिसने अध्यात्म ज्ञान रूपी समुद्र में गोता लगाया हो।’ आलवार संत गीता की सजीव मूर्ति थे। वे उपनिषदों के उपदेश के जीते जागते नमूने थे।
आलवार संतों की संख्या बारह मानी गई है। उन्होंने भगवान नारायण, राम, कृष्ण आदि के गुणों का वर्णन करने वाले हजारों पद रचे। इन पदों को सुन-गाकर आज भी लोग भक्ति रस में डुबकी लगाते हैं। आलवार संत प्रचार और लोकप्रियता से दूर रहे। ये इतने सरल और सीधे स्वभाव के संत थे कि न तो किसी को दुख पहुंचाते न ही किसी से कुछ अपेक्षा करते।
उन्होंने स्वयं कभी नहीं चाहा, न ही इसका प्रयास किया कि लोग उनके पदों को जानें। ये आलवार संत भिन्न-भिन्न जातियों में पैदा हुए थे, परंतु संत होने के कारण उन सबका समान रूप से आदर है। क्योंकि इन्हीं के कथनानुसार संतों का एक अपना ही कुटुम्ब होता है, जो सदा भगवान में स्थित रहकर उन्हीं के नामों का कीर्तन करता रहता है। वास्तव में नीच वही है, जो भगवान नारायण की प्रेम सहित पूजा नहीं करते।
|