"क्रान्ति": अवतरणों में अंतर

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दूसरी पीढ़ी की अलोचाना के कारण सिद्धांतों की तीसरी पीढ़ी का जन्म हुआ, जिसमे थेडा स्कौकपॉल, बैरिन्ग्टन मूर, जैफ्री पेज और अन्य लेखक शामिल थे जोकि प्राचीन [[मार्क्सवाद|मार्क्सवादी]] वर्ग संघर्ष माध्यम के आधार पर विस्तार कर रहे थे, वह अपना ध्यान ग्रामीण कृषि राज्य संघर्ष, उच्चवर्गीय लोगों के साथ होने वाले राज्य संघर्ष और अंतर्राजीय आर्थिक व सैन्य प्रतिस्पर्धा द्वारा घरेलू राजनीतिक परिवर्तन पर पड़ने वाले प्रभाव की ओर केन्द्रित कर रहे थे। विशेषतः स्कौकपॉल की ''स्टेट्स एंड सोशल रिवौल्युशंस'' तीसरी पीढ़ी की सर्वाधिक प्रचलित कृतियों में से एक हो गयी; स्कौकपॉल ने क्रान्ति की व्याख्या करते हुए कहा "यह समाज के राज्यों और वर्ग संरचना का तीव्र, मौलिक रूपांतरण है।..जोकि निम्न स्तर के वर्ग आधारित विद्रोहों के द्वारा समर्थित व स्वीकृत होता है" और उन्होंने क्रान्तियों को राज्य, उच्चवर्ग और निम्न वर्ग से सम्बंधित विभिन्न संघर्षों के लिए उत्तरदायी ठहराया.<ref name="Goldstonet4"/>
 
[[चित्र:Thefalloftheberlinwall1989West and East Germans at the Brandenburg Gate in 1989.JPGjpg|thumb|left|बर्लिन वॉल के फौल और यूरोप में ऑटम ऑफ़ नेशन के सबसे अधिक इवेंट्स, 1989, अचानक और शांतिपूर्ण रहे थे।]]
1980 के दशक के अंतिम वर्षों से विद्वत्तापूर्ण कार्यों के एक नए निकाय ने तीसरी पीढ़ी के सिद्धांतों की प्रभावकारिता पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिए। पुराने सिद्धांतों को भी नयी क्रन्तिकारी घटनाओं के द्वारा खासा आघात लगा जो उनके द्वारा सरलता से व्यक्त नहीं किया जा सका। 1979 में [[ईरान की इस्लामिक क्रान्ति|इरानी]] और र्निक्रगुआन क्रान्तियां, [[१९८६|1986]] में [[फ़िलीपीन्स|फिलिपिन्स]] में जनशक्ति क्रान्ति और 1989 में यूरोप में ऑटम ऑफ नेशंस इस बात के गवाह बने कि अहिंसक क्रान्तियों में प्रसिद्द प्रदर्शन एवं [[हड़ताल|जन हड़ताल]] में कई शक्तिशाली प्रतीत होने वाले शासनों को बहु वर्ग संयोग ने ध्वस्त कर दिया।