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'''दारुल उलूम देवबन्द''' भारत का एक इस्लामी स्कूल है।
 
[[देवबन्द]] भारत के राज्य [[उत्तर प्रदेश]] के ज़िला [[सहारनपुर]] का एक क़स्बा है जो सहारनपुर और [[मुज़फ़्फ़रनगर]] के बीच स्थित है। देवबंद से सहारनपुर लगभग 52 किलोमीटर और मुज़फ़्फ़रनगर 24 किलोमीटर दूर स्थित है।
 
यह माना जाता है कि यह एशिया का सबसे बडाबड़ा मदरसा है।{{cn}}
 
 
यह माना जाता है कि यह एशिया का सबसे बडा मदरसा है।{{cn}}
 
== दारुल उलूम देवबंद और भारत का स्वतंत्रता आंदोलन ==
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आज देवबन्द इस्लामी शिक्षा व दर्शन के प्रचार के व प्रसार के लिए संपूर्ण संसार में प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति व इस्लामी शिक्षा एवं संस्कृति में जो समन्वय आज हिन्दुस्तान में देखने को मिलता है उसका सीधा-साधा श्रेय देवबन्द दारुल उलूम को जाता है। यह मदरसा मुख्य रूप से उच्च अरबी व इस्लामी शिक्षा का केंद्र बिन्दु है। दारुल उलूम ने न केवल इस्लामिक शोध व सहित्य के संबंध में विशेष भूमिका निभाई है, बल्कि भारतीय समाज व पर्यावरण में इस्लामिक सोच व संस्कृति को नवीन आयाम तथा अनुकूलन दिया है।
 
दारुल उलूम देवबन्द की आधारशिला 30 मई 1866 में हाजी आबिद हुसैन व मौलाना क़ासिम नानौतवी द्वारा रखी गयी थी। वह समय भारत के इतिहास में राजनैतिक उथल-पुथल व तनाव का समय था, उस समय अंग्रेज़ों के विरूद्ध लड़े गये प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857 ई.) की असफलता के बादल छंट भी न पाये थे और अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति दमनचक्र तेज़ कर दिया गया था, चारों ओर हा-हा-कार मची थी। अंग्रेजों ने अपनी संपूर्ण शक्ति से स्वतंत्रता आंदोलन (1857) को कुचल कर रख दिया था। अधिकांश आंदोलनकारी शहीद कर दिये गये थे, (देवबन्द जैसी छोटी बस्ती में 44 लोगों को फांसी पर लटका दिया गया था) और शेष को गिरफ्तार कर लिया गया था, ऐसे सुलगते माहौल में देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानियों पर निराशाओं के प्रहार होने लगे थे। चारो ओर खलबली मची हुई थी। एक प्रश्न चिन्ह सामने था कि किस प्रकार भारत के बिखरे हुए समुदायों को एकजुट किया जाये, किस प्रकार भारतीय संस्कृति और शिक्षा जो टूटती और बिखरती जा रही थी, की सुरक्षा की जाये। उस समय के नेतृत्व में यह अहसास जागा कि भारतीय जीर्ण व खंडित समाज उस समय तक विशाल एवं ज़ालिम ब्रिटिश साम्राज्य के मुक़ाबले नहीं टिक सकता, जब तक सभी वर्गों, धर्मों व समुदायों के लोगों को देश प्रेम और देश भक्त के जल में स्नान कराकर एक सूत्र में न पिरो दिया जाये। इस कार्य के लिए न केवल कुशल व देशभक्त नेतृत्व की आवश्यकता थी, बल्कि उन लोगों व संस्थाओं की आवश्यकता थी जो धर्म व जाति से उपरऊपर उठकर देश के लिए बलिदान कर सकें।
 
इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जिन महान स्वतंत्रता सेनानियों व संस्थानों ने धर्मनिरपेक्षता व देशभक्ति का पाठ पढ़ाया उनमें दारुल उलूम देवबन्द के कार्यों व सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता। स्वर्गीये मौलाना महमूद हसन (विख्यात अध्यापक व संरक्षक दारुल उलूम देवबन्द) उन सैनानियों में से एक थे जिनके क़लम, ज्ञान, आचार व व्यवहार से एक बड़ा समुदाय प्रभावित था, इन्हीं विशेषताओं के कारण इन्हें शैखुल हिन्द (भारतीय विद्वान) की उपाधि से विभूषित किया गया था, उन्हों नेउन्होंने न केवल भारत में वरन विदेशों (अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, तुर्की, सऊदी अरब व मिश्र) में जाकर भारत व ब्रिटिश साम्राज्य की भत्र्सना की और भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों के विरूद्ध जी खोलकर अंग्रेज़ी शासक वर्ग की मुख़ालफत की। बल्कि शेखुल हिन्द ने अफ़ग़ानिस्तान व इरान की हकूमतों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यक्रमों में सहयोग देने के लिए तैयार करने में एक विशेष भूमिका निभाई। उदाहरणतयः यह कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान व इरान को इस बात पर राज़ी कर लिया कि यदि तुर्की की सेना भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध लड़ने पर तैयार हो तो ज़मीन के रास्ते तुर्की की सेना को आक्रमण के लिए आने देंगे।
 
शेखुल हिन्द ने अपने सुप्रिम शिष्यों व प्रभावित व्यक्तियों के मध्यम से अंग्रेज़ के विरूद्ध प्रचार आरंभ किया और हजारों मुस्लिम आंदोलनकारियों को ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल कर दिया। इनके प्रमुख शिष्य मौलाना हुसैन अहमद मदनी, मौलाना उबैदुल्ला सिंधी थे जो जीवन पर्यन्त अपने गुरू की शिक्षाआंे पर चलते रहे और अपने देशप्रेमी भावनाओं व नीतियों के कारण ही भारत के मुसलमान स्वतंत्रता सेनानियों व आंदोलनकारियों में एक भारी स्तम्भ के रूप में जाने जाते हैं।
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दारुल उलूम देवबन्द में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा, भोजन, आवास व पुस्तकों की सुविधा दी जाती है। दारुल उलूम देवबन्द ने अपनी स्थापना से आज (हिजरी 1283 से 1424) सन 2002 तक लगभग 95 हजार महान विद्वान, लेखक आदि पैदा किये हैं। दारुल उलूम में इस्लामी दर्शन, अरबी, फारसी, उर्दू की शिक्षा के साथ साथ किताबत (हाथ से लिखने की कला) दर्जी का कार्य व किताबों पर जिल्दबन्दी, उर्दू, अरबी, अंग्रेज़ी, हिन्दी में कम्प्यूटर तथा उर्दू पत्रकारिता का कोर्स भी कराया जाता है। दारुल उलूम में प्रवेश के लिए लिखित परीक्षा व साक्षात्कार से गुज़रना पड़ता है। प्रवेश के बाद शिक्षा मुफ्त दी जाती है। दारुल उलूम देवबन्द ने अपने दार्शन व विचारधारा से मुसलमानों में एक नई चेतना पैदा की है जिस कारण देवबन्द स्कूल का प्रभाव भारतीय महादीप पर गहरा है।
 
[[श्रेणी:भारत में इस्लाम]]
[[श्रेणी:देवबन्दी]]