"उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन": अवतरणों में अंतर

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ऑटोमेटिक वर्तनी सु
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[[चित्र: NATO_flag.svg|thumb | नाटो गठबंधन का [[ध्वज]] ]]
 
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== स्थापना के कारण ==
*(१) [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेनाएँ हटाने से इंकार कर दिया और वहाँ साम्यवादी शासन की स्थापना का प्रयास किया। अमेरिका ने इसका लाभ उठाकर साम्यवाद विरोधी नारा दिया। और यूरोपीय देशों को साम्यवादी खतरे से सावधान किया। फलतः यूरोपीय देश एक ऐसे संगठन के निर्माण हेतु तैयार हो गए जो उनकी सुरक्षा करे।
 
*(२) द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पश्चिम यूरोपीय देशों ने अत्यधिक नुकसान उठाया था। अतः उनके आर्थिक पुननिर्माण के लिए अमेरिका एक बहुत बड़ी आशा थी ऐसे में अमेरिका द्वारा नाटों की स्थापना का उन्होंने समर्थन किया।
 
== उद्देश्य ==
*1. यूरोप पर आक्रमण के समय अवरोधक की भूमिका निभाना।
 
*2. सोवियत संघ के पश्चिम यूरोप में तथाकथित विस्तार को रोकना तथा युद्ध की स्थिति में लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना।
 
*3. सैन्य तथा आर्थिक विकास के लिए अपने कार्यक्रमों द्वारा यूरोपीय राष्ट्रों के लिए सुरक्षा छत्र प्रदान करना।
 
*4. पश्चिम यूरोप के देशों को एक सूत्र में संगठित करना।
 
*5. इस प्रकार नाटों का उद्देश्य "स्वतंत्र विश्व" की रक्षा के लिए साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए और यदि संभव हो तो साम्यवाद को पराजित करने के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता माना गया।
 
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1. नाटों के स्वरूप व उसकी भूमिका को उसके संधि प्रावधानों के आलोक में समझा जा सकता है। संधि के आरंभ में ही कहा गया हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र कि सदस्य देशों की स्वतंत्रता, ऐतिहासिक विरासत, वहाँ के लोगों की सभ्यता, लोकतांत्रिक मूल्यों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और कानून के शासन की रक्षा की जिम्मेदारी लेगे। एक दूसरे के साथ सहयोग करना इन राष्ट्रों का कर्तव्य होगा इस तरीके से यह संधि एक सहयोगात्मक संधि का स्वरूप लिए हुए थी।
 
2. संधि प्रावधानों के अनुच्छेद 5 में कहा गया कि संधि के किसी एक देश या एक से अधिक देशों पर आक्रमण की स्थिति में इसे सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों पर आक्रमण माना जाएगा और संधिकर्ता सभी राष्ट्र एकजुट होकर सैनिक कार्यवाही के माध्यम से एकजुट होकर इस स्थिति का मुकाबला करेगे।करेंगे। इस दृष्टि से उस संधि का स्वरूप सदस्य देशों को सुरक्षा छतरी प्रदान करने वाला है।
 
3. सोवियत संघ ने नाटो को साम्राज्यवादी और आक्रामक देशों के सैनिक संगठन की संज्ञा दी और उसे साम्यवाद विरोधी स्वरूप वाला घोषित किया।
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*(क) 1991 में [[खाड़ी युद्ध]] के दौरान [[अल्बानिया]] को नोटो द्वारा नागरिक एवं सैन्य सहायता प्रदान की गई।
 
*(ख) सामूहिक सुरक्षा के संदर्भ में भी नाटो की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इसमें अंतर्राष्ट्रीय आंतकवाद से निपटने तथा मानवता के लिए खतरा बने “दुष्ट राज्यों” से सुरक्षा की बात की गई। 2002 के प्राग शिखर सम्मेलन में नाटों के अंतर्गत त्वरित कार्यवाही बल (Rapid Response Force) के गठन का प्रस्ताव लाया गया ताकि आतंकवादी हमले और दुष्ट राज्यों की प्रतिक्रियाओं को प्रतिसंतुलित किया जा सके।
 
*(ग) नाटो की सदस्यता में वैचारिक और पूर्व के प्रतिपक्षी गुटों में शामिल देशों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया। 1991 के मिसौरी सम्मेलन में तीन नए राष्ट्रों पोलैण्ड, हंगरी और चेक गण्राज्य को सदस्यता प्रदान की गई। फलतः सदस्य संख्या 19 हो गई और ये तीनों ही शीतयुद्ध काल के एस्टोनिया, लिथुआनिया, लाटविया, स्लोवेनिया, और सदस्यों और सदस्यों की कुल संख्या बढ़कर 26 हो गई। इस तरह अब पूर्वी यूरोप के देश भी नाटोमें सम्मिलित हो गए और यूरोप के एकीकरण को बल मिला।
 
*(घ) यद्यपि आरंभ में रूस ने नाटों के विस्तार पर चिंता जताई थी लेकिन बदलती अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार नाटों सदस्य देशों के साथ पारस्परिक सहयोग हेतु रूस को भी इसके अंतर्गत लाने की बात की जा रही है। नाटो के महासचिव और संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव ने नाटों के विस्तार के सकारात्मक पक्षों पर बल दिया उनके अनुसार यह राजनीतिक-आर्थिक संबंधों को बल प्रदान कर पास्परिक सहयोग को बढ़ावा देगा। नाटो का विस्तार रूस के लिए खतरा नहीं है। नाटो को रूस की आवश्यकता एवं रूस को नाटों की आवश्यकता है।