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13:41, 19 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

मेन-त्से-खंग जहां नब्ज़ देख कर होता है इलाज 

नब्ज़ अर्थात नाड़ी देख कर किसी भी बीमारी या अन्य शरीरक समस्या का पता लगा लेना मेन-त्से-खंग में बाएं हाथ का खेल है। जब बड़े बड़े अस्पताल अनगिनत टेस्ट ले कर भी किसी बीमारी का अता पता नहीं बता पाते तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं लगता। वास्तव में यह तिब्बतीय चिक्तिसा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण आधार भी है। हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला से मेकलडगंज की तरफ जाते समय थोड़ा सा ऊपर जाते ही मेन-त्से-खंग का अस्पताल स्थित है। इसका सही पता पूछने के लिए कहना पड़ता है की हमें लाइब्रेरी जाना है। वहां बारी के हिसाब से एक टोकन मिलता है। अगर पहले से समय ले लिया गया हो तो लाईन में खड़े होने की ज़रूरत नहीं पड़ती। दलाईलामा को अपने भगवान की तरह मानने वाले ये लोग अक्सर काम के दौरान भी ध्यान करते मिल जायेंगे। एक हाथ में माला, होठों पर किसी मंत्र का जाप और कदमों में तेज़ रफ्तार। इनके चेहरे की चमक  बताती है कि यह तन और मन दोनों से ही कितने तंदरुस्त हैं। यहां से दवा लेने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। हालांकि बहुत से अन्य विशेषज्ञ तिब्बतीय डाक्टरों ने भी अपने अपने व्यक्तिगत क्लिनिक और अस्पताल जगह जगह खोल रखे हैं लेकिन फिर भी इस मुख्य अस्पताल की मान्यता लगातार बनी हुयी है। हैरानी होती है जब कुछ मिनटों के नब्ज़ परीक्षण के बाद ही डाक्टर आपको आपके एक एक रहस्य से अवगत करवाता है।  मरीज़ से रोग की पुष्टि होते ही उसे दवा दी जाती है जो अक्सर बीमारी के हिसाब से एक-दो या छह महीने तक खानी होती है। इसी बीच सब कुछ ठीक होना शुरू हो जाता है। दूसरी तरफ एलोपैथी के डाक्टर इसे कभी गंभीरता से नहीं लेते लेकिन फिर भी इस सिस्टम की दवा लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसकी कीमत भी कुछ ज़्यादा नहीं होती। यूं तो दवा के हिसाब से कीमत बदल जाती है लेकिन एलोपैथी के हिसाब से बहुत ही सस्ता इलाज लगता है। इसके साथ ही यहाँ इसका अपना मेडिकल कालेज भी है जिसकी डिग्री को बाकयदा मान्यता प्राप्त है। हां यहां शिक्षा पाने के लिए तिब्बती भाषा का ज्ञान आवश्यक है। -रेक्टर कथूरिया