"शिवलिंग": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Aikya_Linga_in_Varanasi.jpg|thumb|200px|[[वाराणसी]] के मन्दिर में एक्यलिंग]]
'''शिवलिङ्ग''' (शिवलिंग), का अर्थ है भगवान [[शिव]] का आदि-अनादी स्वरुप। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। [[स्कन्द पुराण]] में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे ''लिंग'' कहा हैहै। |
वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्ष/धुरी (axis) ही लिंग है।
 
पुराणो में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग |
==उत्पत्ति ==
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान हैहै। |
हम जानते हैहैं कीकि सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते हैहैं
जैसे: सूत्र के - डोरी/धागा, गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदिआदि। |
अर्थ :- सम्पति, मतलब (मीनिंग),
उसी प्रकार यहाँ [[लिंग]] शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है, लिङ्ग का यही अर्थ [[वैशेषिक]] शास्त्र में [[कणाद]] मुनि ने भी प्रयोग किया।
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है।
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैहैं। |
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति हैहै। |
अब जरा [[आईंसटीन]] का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते हैहैं। |
e / c = m c {e=mc^2}
 
इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नहीनहीं एक ही है पर वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है। हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया थाथा। |
हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते हैहैं कि जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपरऊपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व निचे) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि।
 
स्रष्टि के आरम्भ में [[महाविस्फोट]] (bigbang) के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा की आप उपरोक्त चित्र में देख सकते है |हैं। जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शास्वत अंत न पा सके।
पुराणो में कहा गया है कीकि प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है।
[[चित्र:Siva_Lingam_at_Jambukesvara_temple_in_Srirangam.JPG|thumb|200px|[[लंबुकेश्वर मंदिर]], [[श्रीरंगम]] में शिवलिंग]]
 
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* [[अमरनाथ]]
* [[ज्योतिर्लिंग]]
==बाहरी कड़ियाँ==
* [http://archive.is/20130423070102/www.ancientindiajourney.blogspot.in/2013/03/om-bigbang-shivalingam-universe.html ॐकार, बिग-बेंग, शिवलिंग और स्रष्टि की उत्त्पति] वैदिक भारत पर
 
{{हिन्दू देवी देवता}}