"सीता": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
+ |
ऑटोमेटिक वर्तनी सु, replaced: है| → है। , मे → में (11), बडे → बड़े |
||
पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2012}}
{{पात्र ज्ञानसन्दूक}}
'''सीता''' [[रामायण]] और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे [[रामचरितमानस]], की मुख्य पात्र है। सीता [[मिथिला]] के [[राजा जनक
== जन्म व नाम ==
रामायण के अनुसार मिथिला के राजा जनक का खेतों में हल जोतते समय एक पेटी से अटका। इन्हें उस पेटी में पाया था। हल को मैथिली भाषामे 'सीत' कहने के कारण इनका नाम सीता पडा। राजा जनक और रानी [[सुनयना]] ने इनका परवरिश किया।
राजा जनक की पुत्री होने के कारण इन्हे ''जानकी'', ''जनकात्मजा'' अथवा ''जनकसुता'' भी कहते थे। मिथिला की राजकुमारी होने के कारण यें ''मैथिली'' नाम से भी प्रसिद्ध है। भूमि
== विवाह ==
ऋषि [[विश्वामित्र]] का यज्ञ राम व लक्ष्मण की रक्षा
इसी के साथ [[उर्मिला|ऊर्मिला]] का विवाह [[लक्ष्मण]] से, [[मांडवी]] का [[भरत]] से तथा [[श्रुतिकीर्ति|श्रुतिकीर्ती]] का [[शत्रुघ्न]] से निश्चय हुआ। कन्यादान के समय राजा जनक ने श्रीरामजी से कहा "हे कौशल्यानंदन राम! ये मेरी पुत्री सीता है। इसका पाणीग्रहण कर अपनी के पत्नी के रूप मे स्वीकर करो। यह सदा तुम्हारे साथ रहेगी।" इस तरह सीता व रामजी का विवाह अत्यंत वैभवपूर्ण संपन्न हुआ। विवाहोपरांत सीता अयोध्या आई और उनका दांपत्य जीवन सुखमय था।
पंक्ति 16:
राजा [[दशरथ]] अपनी पत्नी [[कैकेयी]] को दिये वचन के कारण श्रीरामजी को चौदह वर्ष का वनवास हुआ। श्रीरामजी व अन्य बडों की सलाह न मानकर अपने पति से कहा "मेरे पिता के वचन के अनुसार मुझे आप के साथ ही रहना होगा। मुझे आप के साथ वनगमन इस राजमहल के सभी सुखों से अधिक प्रिय हैं।" इस प्रकार राम व लक्ष्मण के साथ वनवास चली गयी।
वे [[चित्रकूट]] पर्वत स्थित [[मंदाकिनी]] तट पर अपना वनवास किया। इसी समय [[भरत (रामायण)|भरत]] अपने
== अपहरण ==
[[चित्र:Rawana approaches Sita in the garb of mendicant.jpg|thumb|Rawana approaches Sita in the garb of mendicant]]
पंचवटी
जब कोई सहायता नहीं मिली तो सीताजी ने अपने पल्लू से एक भाग निकालकर उसमें अपने आभूषणों को बांधकर नीचे डाल दिया। नीचे वनमे कुछ वानरों ने इसे अपने साथ ले गये।
रावण ने सीता को [[लंका|लंकानगरी]] के [[अशोकवाटिका]] में रखा और [[त्रिजटा]] के नेतृत्व
== हनुमानजी की भेंट ==
[[चित्र:Hanuman Encounters Sita in Ashokavana.jpg|thumb|left|Hanuman Encounters Sita in Ashokavana]]
सीताजी से बिछडकर रामजी दु:खी हुए और लक्ष्मण सहित उनकी वन-वन खोज करते जटायु तक पहुंचे। जटायु उन्हें सीताजी को रावण दक्षिण दिशा की ओर लिये जाने की सूचना देकर प्राण त्याग दिया। राम ने जटायु की अंतिम संस्कार कर लक्ष्मण सहित दक्षिण दिशा में चले। आगे चलते वे दोनों [[हनुमान]]जी से मिले जो उन्हें [[ऋष्यमूक|ऋष्यमुख]] पर्वत पर स्थित अपने राजा [[सुग्रीव]] से मिलाया। रामजी संग मैत्री के बाद सुग्रीव ने सीताजी के खोजमें चारों ओर [[वानरसेना]] की टुकडियाँ भेजी। वानर राजकुमार [[अंगद]] की नेतृत्व
हनुमानजी समुद्र लाँघकर लंका पहुँचे, [[लंकिणी]] को परास्त कर नगर में प्रवेश किया। वहाँ सभी भवन और अंतःपुर में सीता माता को न पाकर वे अत्यंत दुःखी हुए। अपने प्रभु श्रीरामजी को स्मरण व नमन कर अशोकवाटिका पहुंचे। वहाँ 'धुएँ के बीच चिंगारी' की तरह राक्षसियों के बीच एक तेजस्विनी स्वरूपा को देख सीताजी को पहचाना और हर्षित हुए।
उसी समय रावण वहाँ पहुँचा और सीता से विवाह का प्रस्ताव किया। सीता ने घास के एक टुकडे को अपने और रावण के बीच रखा और कहा "हे रावण! सूरज और किरण की तरह राम-सीता अभिन्न है। राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति मे मेरा अपहरण कर तुमने अपनी कायरता का परिचय और रक्षसजाती की विनाश को आमंत्रण दिया है। रघुवंशीयों की वीरता से अपरचित होकर तुमने ऐसा दुस्साहस किया है। तुम्हारे श्रीरामजी की शरण मे जाना इस विनाश से बचने का एक मात्र उपाय है। अन्यथा लंका विनाश निश्चित है।" इससे निराश रावण ने राम को लंका आकर सीता को मुक्त करने को दो माह की अवधी दी। इसके उपरांत रावण व सीता का विवाह निश्चिय है। रावण के लौटने पर सीताजी बहुत दु:खी हुई। त्रिजटा अपने सपने के बारे
उसके जाने के बाद हनुमान सीताजी के दर्शन कर अपने लंका आने का कारण बताते
हनुमानजी ने रावण को अपनी दुस्साहस के परिणाम की चेतावनी दी और लंका जलाया। माता सीता से चूडामणि व अपनी यात्रा की अनुमति लिए चले। सागरतट स्थित अंगद व वानरसेना लिए श्रीरामजी के पास पहुँचे। माता सीता की चूडामणि दिया और अपनी लंका यात्रा की सारी कहानी सुनई। इसके बाद राम व लक्ष्मण सहित सारी वानरसेना युद्ध के लिए तैयार हुआ।
|