"डीज़ल इंजन": अवतरणों में अंतर

टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
छो Reverted 2 edits by 2405:204:E081:F3C1:9707:CC6E:2E80:DBA8 (talk) identified as vandalism to last revision by चक्र...
पंक्ति 15:
सन्‌ 1900 में डीज़ल ने पैरिस कांग्रेस के संमुख यह घोषणा की कि काफी प्रयोग के बाद परिचालन चक्र का जो अंतिम रूप उसने ग्रहण किया, वह चार स्ट्रोक के किस्म का एक ही आघात के अनुक्रम से चूषण, दबाव, विस्तार और विकासवाला था। पहले के डीज़ल इंजन वायु-अंत:क्षेप इंजन थे और इंजन के सिलिंडर में ईंधन देने के लिए बहुत ही ऊँचा दबाव प्रयोग में लाया जाता था। सन्‌ 1910 में जेम्स मैक्केचनिक (James Mckechnic) ने ठोस इंजेक्शन प्रणाली का विकास किया, जिसमें सरल, ऊँचे दबाववाला ईंधन-तेल पंप इंजेक्शन के काम में प्रयुक्त हुआ।
 
== डीज़ल और गैसोलिन इंजन में भेद ==
स्फुलिंग-प्रज्वलन-गैसोलिन (Spark ignition gasoline) और संपीडन-प्रज्वलन-तेल (Compression ignition oil) इंजनों में अंतर ईंधन की प्रकृति में है। स्फुलिंग प्रज्वलन इंजन के [[कार्बूरेटर]] (Carburettor) में गैसोलिन और हवा बिल्कुल मिला दी जाती है और इंजन के सिलिंडर में, यह समरूप मिश्रण, भार चाहे जितना हो, दिए हुए अनुपात से पहुँचाया जाता है। हवा का ईंधन से अनुपात, जो वायु-ईंधन-अनुपात कहलाता है, गैसोलिन इंजन में 14.5 : 1 स्थिर रहता है। चूँकि डीज़ल में हवा और ईंधनवाले तेल के मिलाने का कोई अतिरिक्त कक्ष नहीं होता, इसलिए मिलाने का काम सिलिंडर में ही पूरा करना पड़ता है। डीज़ल सदैव हवा की निश्चित मात्रा को ही संपीड़ित करता है, पर बोझ के अनुसार अंत:क्षिप्त ईंधन की मात्रा में अंतर रह सकता है। यदि बोझ पूरा है तो वायुईंधन का अनुपात 22 : 1 रहता है। यदि इंजन कोई काम नहीं करता तो अनुपात 85 : 1 रहता है। डीज़ल इंजन को गैसोलिन इंजन की तुलना में अधिक मात्रा में हवा की आवश्यकता होती है। वायु-ईंधन-अनुपात के तथा संपीड़न के ऊँचा रहने से डीज़ल इंजन में कम ईंधन खर्च होता है। जितने ईंधन से गैसोलिन मोटर गाड़ी कोई काम करती है, उतने ही ईंधन में डीज़ल मोटर गाड़ी दुगुना काम करेगी। डीज़ल इंजन में एक अन्य लाभ यह है कि इसमें सस्ता ईंधन जल सकता है और ईंधन में आग लगने की संभावना कम रहती है।
 
पंक्ति 34:
(1) '''अंतर्ग्रहण''' - प्रवेश वाला वाल्व खुलता है और अवरोही पिस्टन सिलिंडर में नई हवा खींचता है।
 
(2) '''संपीड़न''' - प्रवेशवाला वाल्व बंद होता है और आरोही पिस्टन सिलिंडर में ही हवा को 500 पाउंड प्रति वर्ग इंच के दबाव से दबाता है। ओर कम्प्रेशर स्टोक के समय कम्बशचन
 
चैम्बर का तापमान 600 से 800 डिग्री सेन्ट्रिगेट होता है
(3) '''शक्ति''' - संपीड़न के आघात के अंत में ईधंन का अंत:क्षेप होता है। यह तुरंत स्वत: प्रज्वलित हो जाता है और तब फैलता है। फैलने से शक्ति उत्पन्न होकर पिस्टन को फैंक देती है।