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'''विलियम शेक्सपीयर''' (William Shakespeare ; 23 अप्रैल 1564 (बपतिस्मा हुआ) – 23 अप्रैल 1616) [[अंग्रेजी]] के कवि, काव्यात्मकता के विद्वान [[नाटक]]कार तथा अभिनेता थे। उनके नाटकों का लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में [[अनुवाद]] हुआ है।<ref>Craig 2003, 3.</ref>
शेक्सपियर में अत्यंत उच्च कोटि की सर्जनात्मक प्रतिभा थी और साथ ही उन्हें कला के नियमों का सहज ज्ञान भी था। प्रकृति से उन्हें मानो वरदान मिला था अत: उन्होंने जो कुछ छू दिया वह सोना हो गया। उनकी रचनाएँ न केवल अंग्रेज जाति के लिए गौरव की वस्तु हैं वरन् विश्ववाङ्मय की भी अमर विभूति हैं। शेक्सपियर की कल्पना जितनी प्रखर थी उतना ही गंभीर उनके जीवन का अनुभव भी था। अत: जहाँ एक ओर उनके नाटकों तथा उनकी कविताओं से आनंद की उपलब्धि होती है वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं से हमको गंभीर जीवनदर्शन भी प्राप्त होता है। विश्वसाहित्य के इतिहास में शेक्सपियर के समकक्ष रखे जानेवाले विरले ही कवि मिलते हैं।<ref>[[हिंदी विश्वकोश]], खंड-11, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1969, पृ०-298.</ref>
==परिचय==
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शेक्सपियर ने अपने नाटक मुख्यत: रंगमंच पर अभिनय के लिए लिखे थे, यद्यपि काव्यात्मक गुणों के कारण हम उनसे पठन द्वारा भी आनंद प्राप्त करते हैं। तत्कालीन रंगमंच की बनावट अभिनय की व्यवस्था, दर्शकों की लोकरुचि, इन सभी का प्रभाव शेक्सपियर के नाट्यनिर्माण पर पड़ा। दो एक उदाहरण ही पर्याप्त होंगे। उस समय रंगे हुए परदों का उपयोग नहीं होता था, इसलिए नाटकों में अनेक वर्णनात्मक अंशों का समावेश हुआ है। इन्हीं वर्णनों द्वारा स्थान, काल और परिस्थिति का संकेत होता था। नाटकों में स्वगत एवं स्वभाषित का निरंतर उपयोग इसीलिए संभव हो सका कि रंगमंच का अगला त्रिकोणाकार भाग प्रेक्षकों के बीच तक आगे बढ़ा रहता था। कई पुरुष और नारी पात्रों का सर्जन शेक्सपियर ने केवल इसलिए किया कि उनके उपयुक्त अभिनेता उपलब्ध थे। दर्शकों के मनोरंजनार्थ अनेक दृश्यों की अवतारणा हुई है जिनमे रंगमंच पर उत्तेजक एवं मनोरंजक परिस्थितियों का प्रदर्शन हुआ है। आज के यथार्थवादी रंगमंच की भाँति एलिजवेथ युगीन रंगमंच प्रचुर साधनों तथा निश्चित व्यवस्था द्वारा बँधा हुआ था। अभिनय और प्रदर्शन दोनों ही अपेक्षाकृत उन्मुक्त थे, इसलिए शेक्सपियर के नाटकों में पर्याप्त ऋजुता मिलती है।
प्राय: सभी प्रकार के नाटकों में महाकवि ने गेय मुक्तकों का सन्निवेश किया है जो अपने सौंदर्य और माधुर्य के लिए अनुपम हैं। इनके अतिरिक्त शेक्सपियर की विस्तृत कविताएँ हैं, जिनमें 'विनस ऐंड एडोनिस', 'दी रेप आव लुक्रीस' तथा सानेट्स का उल्लेख आवश्यक है। ये सभी कृतियाँ १६ वीं शताब्दी के अंतिम दशक की हैं जब शेक्सपियर का मन सौंदर्य एवं प्रणय के प्रभाव से आह्लादपर्ण हो गया था। 'विनस ऐंड एडोनिस' में एक प्राचीन प्रेमकथा को अत्यंत काव्यात्मक रीति से वर्णित किया गया है। 'दी रेप ऑव लुक्रीस' में एक परम सुंदरी रोमन महिला के दुर्भाग्य और मृत्यु की कथा है। सानेट्स में कुछ ऐसे हैं जो कवि के एक मित्र से संबंध रखते हैं जिसने विवाह न करने का निश्चय कर लिया था। शेक्सपियर ने उसके रूप और गुणों की चर्चा करते हुए उससे अपना निश्चय बदलने के लिए आग्रह किया है। सानेटों का दूसरा क्रम एक श्यामवर्ण महिला से संबंधित है जिसे प्रति कवि के मन में तीव्र आकर्षण उत्पन्न हुआ था किंतु जिसने उस स्नेह का आदर न करके कवि के उस मित्र को अपना प्रणय दिया, जिसको ध्यान में रखकर सानेटों का प्रथम क्रम लिखा गया था। शेक्सपियर ने इन सानेटों में अपनी आंतरिक भावनाओं का प्रकाशन किया है अथवा वे परंपरागत रचनाएँ मात्र हैं, यह प्रश्न अत्यंत विवादग्रस्त है।<ref>[[हिंदी विश्वकोश]], खंड-11, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1969, पृ०-295से298.[इस आलेख के मूल लेखक '''राम अवध द्विवेदी''' हैं। यहाँ दिया गया पूरा आलेख यथावत् उद्धृत है। मूल के संदर्भ-ग्रंथों की सूची नीचे दी गयी है।]</ref>
==सन्दर्भ==
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