"फुलेरेन": अवतरणों में अंतर
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[[Image:Kohlenstoffnanoroehre Animation.gif|frame|कार्बन नैनोट्यूब का त्रिआयामि मोडेल]]
'''फुलेरेन''' (या फुलेरीन,
:C<sub>60</sub> + 60O<sub>2</sub> = 60CO<sub>2</sub><ref>{{cite book |last=गुप्त |first=तारकनाथ |title= भौतिकी एवं रसायन शास्त्र |year=नवंबर २००४ |publisher=भारती पुस्तक मन्दिर, |location=कोलकाता |id= |page= 252-253 |accessday= १६|accessmonth= मई|accessyear= २००९}}</ref>
प्रारम्भ में लेसर किरणों द्वारा ग्रेफाइट के वाष्पीकरण से फुलेरेन प्राप्त किया गया। इस विधि में ग्रेफाइट को निष्क्रिय गैस [[हीलियम]] या [[आर्गन]] की उपस्थिति में विद्युत आर्क में गर्म किया जाता है। जिसके फलस्वरूप कार्बन के वाष्प संघनन से फुलेरेन के सूक्ष्म [[अणु]] कालिख पदार्थ के रूप में उत्पन्न होते हैं। ये कार्बनिक घोलकों में घुलनशील होते हैं। वैज्ञानिक इसके गुणों का बहुत गहराई से अध्ययन कर रहे हैं। इस अद्भुत् आणुविक संरचना वाले पदार्थ के भविष्य में विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग की भारी संभावने हैं। यह कई धातुओं के साथ अशुद्ध होकर निम्न [[तापमान]] पर [[अतिचालकता|अतिचालक]] बन जाता है। कार्बन के नैनोट्यूब वास्तव में बेलनाकार फुलेरेन हैं जिनेक इस्तेमाल से पेपेर बैटेरी बनाये गए हैं।<ref>{{cite news | url = http://www.eurekalert.org/pub_releases/2007-08/rpi-bbs080907.php | title = Beyond Batteries: Storing Power in a Sheet of Paper | author = | publisher = Eurekalert.org | date = [[१२ अगस्त]], [[२००७]] | accessdate = १६ मई |accessyear =२००९}}</ref> जिनका प्रयोग वायुयान, स्वचालित वाहनों एवं पेसमेकर में किए जाने की संभाना है। कार्बन नैनो टयूब व फुलेरीन केवल ग्रेफाइट से बनने के कारण इसकी कीमत भी काफी ज्यादा है, लेकिन [[भारतीय]] वैज्ञानिक इसे भारतीय कोयले से पूरी अकार्बनिक अशुद्धियों को दूर कर विकसित कर रहे हैं। इसके लिए राड कार्बोनाइजेशन पद्धति अपनाई गई है जिसके प्रारंभिक चरण के प्रयोगों में ही कई भित्तियों (मल्टीवाल्ड) वाली कार्बन नैनो टयूब बनाने में सफलता मिल गई है। हेट्रो फुलेरीन बनाने की दिशा में भी काम जारी है।<ref>{{cite web |url= http://in.jagran.yahoo.com/news/oddnews/general/15_35_1674.html
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