"नीतिशास्त्र": अवतरणों में अंतर
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== परम श्रेय अथवा शुभ-अशुभ के ज्ञान का साधन ==
हमारे परम श्रेय अथवा शुभ-अशुभ के ज्ञान का साधन या स्रोत क्या है, इस संबंध में भी विभिन्न मतवाद हैं। अधिकांश प्रत्ययवादियों के मत में भलाई-बुराई को बोध बुद्धि द्वारा होता है। हेगेल, ब्रैडले आदि का मत यही है और कांट का मंतव्य भी इसका विरोधी नहीं है। कांट मानते हैं कि अंतत: हमारी कृत्यबुद्धि (प्रैक्टिकल रीज़न) ही नैतिक आदर्शों का स्रोत है। अनुभववादियों के अनुसार हमारे शुभ अशुभ के ज्ञान का स्रोत अनुभव ही है। यह मत नैतिक सापेक्ष्यतावाद (एथिकल रिलेटिविटिज्म) को जन्म देता है। तीसरा मत प्रतिभानवाद अथवा
नैतिक शुभ-अशुभ के ज्ञान का स्रोत क्या है, इस संबंध में भारतीय विचारकों ने भी कई मत प्रकट किए हैं। मीमांसा दर्शन के अनुसार श्रुति द्वारा प्रेरित आचार ही धर्म है और श्रुति या वेद द्वारा निषिद्ध कर्म अधर्म। इस प्रकार धर्म एवं अधर्म श्रुतियों के विधि-निषेध-मूलक हैं। भगवद्गीता में निष्काम कर्मयोग की शिक्षा के साथ-साथ यह बतलाया गया है कि कर्तव्या-कर्तव्य की जानकारी के लिए शास्त्र ही प्रमाण है। शास्त्र के अंतर्गत श्रुति तथा स्मृति दोनों का परिगणन होता है। हिंदू धर्म के प्रत्येक वर्ण तथा आश्रम के लिए अलग-अलग कर्तव्यों का निर्देश किया गया है; इन कर्तव्यों का विशद विवेचन धर्मसूत्रों तथा स्मृतिग्रंथों में मिलता है। इस कोटि के कर्तव्यों के अतिरिक्त सामान्य धर्म अथवा सार्वभौम धर्मनियमों के बोध के लिए को भी प्रमाण माना गया है। सज्जनों के आचार को पथप्रदर्शक रूप में स्वीकार किया गया है।
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