"जनक": अवतरणों में अंतर

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==महाभारत में==
* स्यमंतक मणि के प्रसंग मे भी उल्लेख है कि बलराम कृष्ण से रुष्ट होकर मिथिला जनक के पास चले जाते हैं यहीं पर दुर्योधन ने उनसे गदायुद्ध की विघा बलराम से प्राप्त की थींं।
[[File:Balarama in Videha, an 18th century depiction.jpg |thumb| जनक द्वारा बलराम का मिथिला में स्वागत]]
* महाभारत के सभापर्व में नारद द्वारा यम के सभावर्णन में जनक का उल्लेख हैं।
* राजा जनक का उल्लेख महाभारत के सभापर्व में भीम की दिग्विजय यात्रा में हैं।
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* महाभारत के शांतिपर्व के अघ्याय २८ में जनक और अश्मा ऋषि का प्रारब्ध की प्रबलता पर संवाद हैं।
* महाभारत के शांतिपर्व के अघ्याय ९९ में शूरवीरोंको स्वर्ग और कायरों को नरककी प्राप्ति विषय में राजा जनक का इतिहास दिया गया है।
[[ File:King Janaka tells His soldiers about Hell and Heven.jpg |thumb| जनक द्वारा सैनिकों को स्वर्ग और नरक दिखाना ]]
* महाभारत के शांतिपर्व के अघ्याय १०६ में कालकवृक्षीय ऋषि जनक और असहाय कोशलकुमार क्षेमदर्शी से मेल करवाते हैं।
[[ File:Sage Kalakavruksheeya meets Kshemadarsi, son of King Janaka.jpg |thumb| कालकवृक्षीय ऋषि जनक और असहाय कोशलकुमार क्षेमदर्शी से मेल करवाते हैं ]]
* महाभारत के शांतिपर्व के अघ्याय १७४ में ब्रह्मज्ञानी जनक की उक्ति हैं कि मिथिला जलने पर भी मेरा कुछ नहीं जलता।
* महाभारत के शांतिपर्व के अघ्याय २१८ और २१९ में जनदेव नामक जनक का उल्लेख हैं जो पञ्चशिखा से ज्ञान लेते हैं यह जानकर भगवान विष्णु उनकी परीक्षा के लिए मिथिला नगरी जला दी परंतु राजा जनक को कोइ अंतर नहीं पड़ा यह देख भगवान विष्णु ने मिथिला को ठीक कर दिया।
[[ File:Sage Panchashika preaching King Janaka.jpg |thumb| जनदेव जनक और पंचशिख का संवाद]]
* महाभारत के शांतिपर्व के अघ्याय २७६ में जनक और माण्डव्य मुनि का तृष्णा पर संवाद हैं।
* महाभारत के शांतिपर्व के अघ्याय २९० से २९७ में जनक और पराशर के संवाद पर आधारित पराशरगीता दी गई हैं।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जनक" से प्राप्त