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[[चित्र:NorthIndiaCircuit 100.jpg||200px|thumb|[[फतेहपुर सीकरी]] का [[बुलन्द दरवाज़ा]]]]
{{main|दीन ए इलाही}}
दीन-ए-इलाही नाम से अकबर ने १५८२ में<ref>[http://www.indg.in/primary-education/childrenscorner/important-dates-in-indian-history/92d93e93092494092f-90792493f93993e938-914930-93593f93694d200d935-92e947902-92e93992494d200d93592a94293094d923-92493f92593f92f93e901/view?set_language=hiहिन्दी भारतीय इतिहास और विश्‍व में महत्‍वपूर्ण तिथियाँ]। भारत विकास द्वार</ref> एक नया धर्म बनाया जिसमें सभी धर्मो के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखतः हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे।<ref>[https://archive.is/20120707050810/arvindshuklakanpur.blogspot.com/2010/05/blog-post.html जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर]। सक्सेस मंत्रा। अरविन्द शुक्ला। १५ अक्तूबर</ref> इनके अलावा [[पारसी]], [[जैन]] एवं [[ईसाई धर्म]] के मूल विचारों को भी सम्मिलित किया। हालांकि इस धर्म के प्रचार के लिए उसने कुछ अधिक उद्योग नहीं किये केवल अपने विश्वस्त लोगो को ही इसमे सम्मिलित किया। कहा जाता हैं कि अकबर के अलावा केवल [[राजा बीरबल]] ही मृत्यु तक इस के अनुयायी थे। दबेस्तान-ए-मजहब के अनुसार अकबर के पश्चात केवल १९ लोगो ने इस धर्म को अपनाया।<ref>[http://www.britannica.com/eb/article-9030480/Din-i-Ilahi दीन-ए-इलाही ब्रितानिका ज्ञानकोश ]</ref><ref>[http://www.srijangatha.com/Alekh3_2k10 भारतीय परिप्रेक्ष्य में धर्मनिरपेक्षता]। कृ्ष्ण कुमार यादव। ३ मार्च २०१०। पोर्ट ब्लेयर</ref> कालांतर में अकबर ने एक नए [[पंचांग]] की रचना की जिसमे कि उसने एक ईश्वरीय संवत को आरम्भ किया जो उसके ही राज्याभिषेक के दिन से प्रारम्भ होता था। उसने तत्कालीन सिक्कों के पीछे ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ लिखवाया जो अनेकार्थी शब्द था।<ref>[http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%8F-%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%80 दीन-ए-इलाही]। ब्रज डिस्कवरी</ref> अकबर का शाब्दिक अर्थ है "महान" और ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ शब्द के दो अर्थ हो सकते थे "अल्लाह महान हैं " या "अकबर ही अल्लाह हैं"।<ref>[http://www.ucalgary.ca/applied_history/tutor/islam/empires/mughals/akbar.html महान इस्लामिक साम्राज्यों का उदय (मुग़ल साम्राज्य : अकबर)]</ref> दीन-ए-इलाही सही मायनो में धर्म न होकर एक आचार संहिता के समान था। इसमे भोग, घमंड, निंदा करना या दोष लगाना वर्जित थे एवं इन्हे पाप कहा गया। दया, विचारशीलता और संयम इसके आधार स्तम्भ थे।<ref>[http://pustak.org/bs/home.php?bookid=3982 अकबर महान]। धरमपाल बारिया। मनोज पब्लिकेशन। अप्रैल ०२, २००५।ISBN 81-8133-613-5|</ref>
 
यह तर्क दिया गया है कि दीन-ए-इलैही का एक नया धर्म होने का सिद्धांत गलत धारणा है, जो कि बाद में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अबुल फजल के कार्यों के गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ था। हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाता है कि सुलह-ए-कुल की नीति,<ref>{{cite web|url=https://scroll.in/article/855307/why-do-indians-celebrate-rulers-like-tipu-and-shivaji-but-not-the-greatest-of-them-all-akbar|title=Tipu Jayanti debate: Akbar is the hero India should really celebrate}}</ref> जिसमें दीन-ई-इलैही का सार था, अकबर ने केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति का एक भाग के रूप में अपनाया था। इसने अकबर की धार्मिक सहानुभूति की नीति का आधार बनाया। 1605 में अकबर की मौत के समय उनके मुस्लिम विषयों में असंतोष का कोई संकेत नहीं था, और अब्दुल हक जैसे एक धर्मशास्त्री की धारणा थी कि निकट संबंध बने रहे।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/अकबर" से प्राप्त