"गोरखा": अवतरणों में अंतर

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{{cquote|If a man says he is not afraid of dying, he is either lying or is a Gurkha.}}
 
अर्थात: '''"यदि कोई कहता है कि मुझे मौत से डर नहीनहीं लगता, वह या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है।"'''<ref name="nbt-1mar14">{{cite web | url= http://hindi.economictimes.indiatimes.com/thoughts-platform/viewpoint/How-Army-will-look-without-the-Gorkhas/articleshow/31181611.cms| title= गोरखों के बिना कैसी लगेगी फौज?| publisher = नवभारत टाईम्स| date= 1 मार्च 2014| accessdate= 1 मार्च 2014}}</ref>
[[File:4th Gurkha Rifles. Rearguard Action, 1909.jpg|thumb|4th Gurkha Rifles. Rearguard Action, 1909]]
अंग्रेजों ने अपनी फौज में 1857 से पहले ही गोरखा सैनिकों को रखना आरम्भ कर दिया था। 1857 के भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में इन्होंने ब्रिटिश सेना का साथ दिया था क्योंकि उस समय वे ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए अनुबंध पर काम करते थे। [[महाराजा रणजीत सिंह]] ने भी इन्हें अपनी सेना में स्थान दिया। अंग्रेजों के लिए गोरखों ने दोनों विश्वयुद्धों में अपने अप्रतिम साहस और युद्ध कौशल का परिचय दिया। पहले विश्व युद्ध में दो लाख गोरखा सैनिकों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से लगभग 20 हजार ने रणभूमि में वीरगति प्राप्त की। दूसरे विश्वयुद्ध में लगभग ढाई लाख गोरखा जवान सीरिया, उत्तर अफ्रीका, इटली, ग्रीस व बर्मा भी भेजे गए थे। उस विश्वयुद्ध में 32 हजार से अधिक गोरखों ने शहादत दी थी। भारत के लिए भी गोरखा जवानों ने पाकिस्तान और चीन के खिलाफ हुई सभी लड़ाइयों में शत्रु के सामने अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया था। गोरखा रेजिमेंट को इन युद्धों में अनेक पदको़ व सम्मानों से अलंकृत किया गया, जिनमें महावीर चक्र और परम वीर चक्र भी शामिल हैं।<ref name="nbt-1mar14"/>
"https://hi.wikipedia.org/wiki/गोरखा" से प्राप्त