"अश्वमेध यज्ञ": अवतरणों में अंतर
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[[File:Ashwamedha yagna of yudhisthira.jpg |thumb| युधिष्ठिर का अश्वमेध यज्ञ, बिरला रज्म़नामा से]]
'''अश्वमेध''' [[भारतवर्ष]] का एक प्रख्यात यज्ञ। सार्वभौम राजा अर्थात् चक्रवर्ती नरेश ही अश्वमेध का अधिकारी माना जाता था, परंतु [[ऐतरेय ब्राह्मण]] (8 पंचिका) के अनुसार अन्य महत्वशाली राजन्यों का भी इसके विधान में अधिकार था। आश्वलायन श्रौत सूत्र (10। 6। 1) का कथन है कि जो सब पदार्थो को प्राप्त करना चाहता है, सब विजयों का इच्छुक होता है और समस्त समृद्धि पाने की कामना करता है वह इस यज्ञ का अधिकारी है। इसलिए सार्वीभौम के अतिरिक्त भी मूर्धाभिषिक्त राजा अश्वमेध कर सकता था (आप.श्रौत. 20। 1। 1।; लाट्यायन 9। 10। 17)। यह अति प्राचीन यज्ञ प्रतीत होता है क्योंकि ऋग्वेद के दो सूक्तों में (1। 162; 1। 163) अश्वमेधीय अश्व तथा उसके हवन का विशेष विवरण दिया गया है। शतपथ (13। 1-5) तथा तैतिरीय ब्राह्मणों (3। 8-9) में इसका बड़ा ही विशद वर्णन उपलब्ध है जिसका अनुसरण श्रौत सूत्रों, वाल्मीकीय रामायण (1। 13), महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में तथा जैमिनीय अश्वमेध में किया गया है।
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