"जाँनिसारी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Battle of Vienna.SultanMurads with janissaries.jpg|right|thumb|250px|वियना युद्ध में जाँनिसारी सेना]]
 
'''जाँनिसारी''' या '''येनीचरी''' ({{lang-ota|يڭيچرى}} ''{{transl|ota|yeñiçeri}}'' {{IPA-tr|jeniˈt͡ʃeɾi|}}, मतलब "नया सिपाही") [[तुर्की]] की पैदल सेना का नाम था। [[औरख़ान प्रथम|सुल्तान ओरख़ान]] ने सर्वप्रथम इसका संगठन 1330 में किया था। [[मुराद प्रथम]] ने इसकी उन्नति की और 1362 में इसके सिपाहियों की संख्या 10,000 हो गई। यह सेना, अपने रणकौशल और वीरतापूर्ण दक्षता के लिये प्रसिद्ध है। सिपाहियों का यह दावा था कि वे युद्ध से कभी विचलित नहीं हुए। यह तुर्की की बहुत बड़ी शक्ति थी। वैतनिक स्थायी सिपाहियों की संख्या एक समय 60,000 के लगभग थी। बाद में यह संख्या घटाकर 25,000 कर दी गई। इनके रहने के लिये [[क़ुस्तुंतुनिया]] और अन्य शहरों में बैरक बने हुए थे। अस्थायी सिपाहियों की संख्या 3,00,000 से 4,00,000 तक रहती थी। ये सिपाही राज्य के सभी शह्ररों में बिखरे हुए थे और शांति के समय पुलिस का कार्य करते थे। सुल्तान की अंगरक्षता में रहनेवाले जाँनिसारी धीरे-धीरे इनते उग्र हो गए कि वे कभी कभी विद्रोह भी करने लगे। लेकिन इन विद्रोहों का दमन भी किया जाता रहा। 1826 में जाँनिसारी सिपाहियों ने नई राष्ट्रीय सेना की स्थापना के प्रस्ताव पर विद्रोह कर दिया। इसपर [[महमूद द्वितीय]] ने प्रधान जाँनिसारी सेनापति की सहायता लेकर इन्हें बुरी तरह पराजित किया और उनकी बैरकें जला दीं।<ref name=Kinross456>Kinross, pp. 456–457.</ref> उसी समय एक शाही घोषणा के अनुसार यह सेना समाप्त कर दी गई। उसके लगभग 15,000 सिपाहियों को [[मृत्युदंड]] दिया गया और 20,00 देश से निकाल दिए गए।
 
== संदर्भ ==
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