"कर्नाटक": अवतरणों में अंतर

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प्राचीन एवं मध्यकालीन [[भारत का इतिहास|इतिहास]] देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन साम्राज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, [[कर्नाटक संगीत]] और [[हिन्दुस्तानी संगीत]] को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक [[ज्ञानपीठ सम्मान]] मिले हैं।<ref>[http://www.dailynewsnetwork.in/news/tastenlife/26012011/republic-day/27328.html संस्कृति का समंदर दक्षिण भारत]। डेली न्यूज़। २६ जनवरी, २०११। अभिगमन तिथि: १८ फ़रवरी २०११</ref> राज्य की राजधानी [[बंगलुरु]] शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है।
 
== इतिहासहास ==
 
{{Main|कर्नाटक का इतिहास }}
[[चित्र:Mallikarjuna and Kasivisvanatha temples at Pattadakal.jpg|175px|thumb|left|[[पत्तदकल]] में मल्लिकार्जुन और काशी विश्वनाथ मंदिर [[चालुक्य]] एवं [[राष्ट्रकूट वंश]] द्वारा बनवाये गए थे, जो अब [[यूनेस्को विश्व धरोहर]] हैं]]
 
थ ही स्थानीय शासकों [[कदंब वंश]] एवं [[पश्चिम गंग वंश]] का उदय हुआ। इसके साथ ही नियां वर्तमान कर्नाटक में बनायीं। पश्चिमी चालुक्यों ने एक अनोखी चालुक्य स्थापत्य शैली भी विकसित की। इसके साथही उन्होंने कन्नड़ साहित्य का भी विकास किया जो आगे चलकर [[१२वीं शताब्दी]] में होयसाल वंश के कला व साहित्य योगदानों का आधार बना।<ref name="unique">कामत (२००१), पृ. ११५</ref><ref name="flow">फ़ोएकेमा (२००३), पृ.९</ref>
कर्नाटक का विस्तृत इतिहास है जिसने समय के साथ कई करवटें बदलीं हैं।<ref>[http://www.bharat.gov.in/knowindia/st_karnataka.php कर्नाटक]। भारत सरकार के पोर्टल पर</ref> राज्य का प्रागैतिहास [[पाषाण युग]] तक जाता है तथा इसने कई युगों का विकास देखा है। राज्य में मध्य एवं नव पाषाण युगों के साक्ष्य भी पाये गए हैं। [[हड़प्पा]] में खोजा गया [[स्वर्ण]] कर्नाटक की खानों से निकला था, जिसने इतिहासकारों को ३००० ई.पू के कर्नाटक और [[सिंधु घाटी सभ्यता]] के बीच संबंध खोजने पर विवश किया।<ref>{{cite web|url=http://metalrg.iisc.ernet.in/~wootz/heritage/K-hertage.htm|archiveurl=http://web.archive.org/web/20070121024542/http://metalrg.iisc.ernet.in/~wootz/heritage/K-hertage.htm|title= द गोल्डन हैरिटेज ऑफ कर्नाटक |author= एस रंगनाथन|work= खनन विभाग |publisher= भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु }}
 
</ref><ref>{{cite web |url=http://www.ancientindia.co.uk/staff/resources/background/bg16/home.html|title= ट्रेड |publisher=ब्रिटिश संग्रहालय}}</ref>
आधुनिक कर्नाटक के भागों पर ९९०-१२१० ई. के बीच [[चोल वंश]] ने अधिकार किया।<ref name="A History of South India">ए हिस्ट्री ऑफ साउथ इण्डिया, के ए नीलकांत शास्त्री (१९५५), पृ.१६४</ref> अधिकरण की प्रक्रिया का आरंभ [[राजराज चोल १]] (९८५-१०१४) ने आरंभ किया और ये काम उसके पुत्र [[राजेन्द्र चोल १|रा]]<nowiki/>ने ३५० ई में [[तालकाड़]] में राजधानी के साथ की।<ref name="gan">अडिग एवं शेख अली, अडिग (२००६), पृ.८९</ref><ref name="gan1">रमेश (१९८४), पृ.१-२</ref>
[[तृतीय शताब्दी]] ई.पू से पूर्व, अधिकांश कर्नाटक राज्य [[मौर्य वंश]] के [[सम्राट अशोक]] के अधीन आने से पहले [[नंद वंश]] के अधीन रहा था। [[सातवाहन वंश]] को शासन की चार शताब्दियां मिलीं जिनमें उन्होंने कर्नाटक के बड़े भूभाग पर शासन किया। सातवाहनों के शासन के पतन के साथ ही स्थानीय शासकों [[कदंब वंश]] एवं [[पश्चिम गंग वंश]] का उदय हुआ। इसके साथ ही क्षेत्र में स्वतंत्र राजनैतिक शक्तियां अस्तित्त्व में आयीं। [[कदंब वंश]] की स्थापना [[मयूर शर्मा]] ने ३४५ ई. में की और अपनी राजधानी [[बनवासी]] में बनायी;<ref name="origin">तालगुण्ड शिलालेख के अनुसार (डॉ॰ बी एल राइस, कामत (२००१), पृ.३०)</ref><ref name="origin1">मोअरेज़ (१९३१), पृ.१०</ref> एवं [[पश्चिम गंग वंश]] की स्थापना कोंगणिवर्मन माधव ने ३५० ई में [[तालकाड़]] में राजधानी के साथ की।<ref name="gan">अडिग एवं शेख अली, अडिग (२००६), पृ.८९</ref><ref name="gan1">रमेश (१९८४), पृ.१-२</ref>
[[चित्र:Belur4.jpg|thumb|right|175px|[[होयसाल साम्राज्य]] स्थापत्य, [[बेलूर]] में। ]]
 
[[:w:Halmidi inscription|हाल्मिदी शिलालेख]] एवं [[बनवसी]] में मिले एक [[५वीं शताब्दी]] की ताम्रता{{Main|कर्नाटक का इतिहास }}<div class="rellink relarticle mainarticle">{{Main|कर्नाटक का इतिहास }}</div>म्र मुद्रा के अनुसार ये राज्य प्रशासन में कन्नड़ भाषा प्रयोग करने वाले प्रथम दृष्टांत बने<ref name="first">फ़्रॉम द हाल्मिदी इन्स्क्रिप्शन (रमेश १९८४, पृ १०-११)</ref><ref name="hal">कामत (२००१), पृ.१०</ref> इन राजवंशों के उपरांत शाही कन्नड़ साम्राज्य [[बादामी चालुक्य]] वंशक्षेत्र में स्वतंत्र राजनैतिक शक्तियां अस्तित्त्व में आयीं। [[कदंब वंश]] की स्थापना [[मयूर शर्मा]] ने ३४५ ई. में की और अपनी राजधानी [[बनवासी]] में बनायी;<ref name="origin">तालगुण्ड शिलालेख के अनुसार (डॉ॰ बी एल राइस, कामत (२००१), पृ.३०)</ref><ref name="origin1">मोअरेज़ (१९३१), पृ.१०</ref> एवं [[पश्चिम गंग वंश]] की स्थापना कोंगणिवर्मन माधव ,<ref name="cha">द चालुक्याज़ हेल्ड फ़्रॉम द प्रेज़ेण्ट डे कर्नाटक (किएय (२०००), पृ. १६८)</ref><ref name="cha1">द चालुक्याज़ वर नेटिव ''कन्नड़िगाज़'' (एन लक्ष्मी नारायण राव एवं डॉ॰एस.सी नंदीनाथ, कामत (२००१), पृ.५७)</ref> [[राष्ट्रकूट वंश|मान्यखेत के राष्ट्रकूट]],<ref name="rash">आल्तेकर (१९३४), पृ.२१-२४।</ref><ref name="rash1">मेज़िका (१९९१), पृ.४५-४६</ref> और [[पश्चिमी चालुक्य वंश]]<ref name="west">बैलागांव इन मैसूर टेरिटरी वॉज़ ऍन अर्ली पावर सेन्टर (कॉज़ेन्स (१९२६), पृ.१० एवं १०५)</ref><ref name="west1">तैलप द्वितीय, द फ़ाउण्डर किंग वॉज़ द गवर्नर ऑफ तारावाड़ी इन मॉडर्न बीजापुर डिस्ट्रिक्ट, अण्डर द राष्ट्रकूटाज़ (कामत (२००१), पृ.१०१)</ref> आये जिन्होंने दक्खिन के बड़े भाग पर शासन किया और राजधानियांराजधाकर्नाटक वर्तमानका कर्नाटकविस्तृत मेंइतिहास बनायीं।है पश्चिमीजिसने चालुक्योंसमय नेके एकसाथ अनोखीकई चालुक्यकरवटें स्थापत्यबदलीं शैलीहैं।<ref>[http://www.bharat.gov.in/knowindia/st_karnataka.php भीकर्नाटक]। विकसितभारत की।सरकार इसकेके साथहीपोर्टल उन्होंनेपर</ref> कन्नड़ साहित्यराज्य का भीप्रागैतिहास [[पाषाण युग]] तक जाता है तथा इसने कई युगों का विकास कियादेखा जोहै। आगेराज्य चलकरमें मध्य एवं नव पाषाण युगों के साक्ष्य भी पाये गए हैं। [[१२वीं शताब्दीहड़प्पा]] में होयसालखोजा वंशगया के[[स्वर्ण]] कलाकर्नाटक की साहित्यखानों योगदानोंसे कानिकला आधारथा, बना।<refजिसने name="unique">कामतइतिहासकारों (२००१),को पृ३००० ई.पू ११५के कर्नाटक और [[सिंधु घाटी सभ्यता]] के बीच संबंध खोजने पर विवश किया।</ref><ref{{cite nameweb|url=http://metalrg.iisc.ernet.in/~wootz/heritage/K-hertage.htm|archiveurl=http://web.archive.org/web/20070121024542/http://metalrg.iisc.ernet.in/~wootz/heritage/K-hertage.htm|title="flow">फ़ोएकेमा (२००३)द गोल्डन हैरिटेज ऑफ कर्नाटक |author= एस रंगनाथन|work= खनन विभाग |publisher= भारतीय विज्ञान संस्थान, पृ.९</ref>बंगलुरु }}
</ref><ref>{{cite web |url=http://www.ancientindia.co.uk/staff/resources/background/bg16/home.html|title= ट्रेड |publisher=ब्रिटिश संग्रहालय}}</ref>
 
आधुनिक[[तृतीय कर्नाटकशताब्दी]] केई.पू भागोंसे परपूर्व, ९९०-१२१०अधिकांश ई.कर्नाटक के बीचराज्य [[चोलमौर्य वंश]] नेके अधिकार[[सम्राट किया।<refअशोक]] name="Aके Historyअधीन ofआने Southसे India">एपहले हिस्ट्री[[नंद ऑफवंश]] साउथके इण्डिया,अधीन केरहा था। नीलकांत[[सातवाहन शास्त्रीवंश]] (१९५५),को पृ.१६४</ref> अधिकरणशासन की प्रक्रियाचार काशताब्दियां आरंभमिलीं [[राजराजजिनमें चोलउन्होंने १]]कर्नाटक (९८५-१०१४)के नेबड़े आरंभभूभाग कियापर औरशासन येकिया। कामसातवाहनों उसकेके पुत्रशासन के पतन के सा[[राजेन्द्र चोल १|जेन्द्र चोल १]] (१०१४-१०४४) के शासन तक चला।<ref name="A History of South India" /> आरंभ में [[राजराज चोल १]] ने आधुनिक मैसूर के भाग "गंगापाड़ी, नोलंबपाड़ी एवं तड़िगैपाड़ी' पर अधिकार किया। उसने दोनूर तक चढ़ाई की और बनवसी सहित रायचूर दोआब के बड़े भाग तथा पश्चिमी चालुक्य राजधानी मान्यखेत तक हथिया ली।<ref name="A History of South India" /> चालुक्य शासक [[जयसिंह]] की राजेन्द्र चोल १ के द्वारा हार उपरांत, [[तुंगभद्रा नदी]] को दोनों राज्यों के बीच की सीमा तय किया गया था।<ref name="A History of South India" /> [[राजाधिराज चोल १]] (१०४२-१०५६) के शासन में दन्नड़, कुल्पाक, कोप्पम, काम्पिल्य दुर्ग, पुण्डूर, येतिगिरि एवं चालुक्य राजधानी कल्याणी भी छीन ली गईं।<ref name="A History of South India" /> १०५३ में, [[राजेन्द्र चोल २]] चालुक्यों को युद्ध में हराकर कोल्लापुरा पहुंचा और कालंतर में अपनी राजधानी गंगाकोंडचोलपुरम वापस पहुंचने से पूर्व वहां एक विजय स्मारक स्तंभ भी बनवाया।<ref name="ReferenceA">ए हिस्ट्री ऑफ साउथ इण्डिया, के ए नीलकांत शास्त्री (१९५५), पृ.१७२</ref> १०६६ में पश्चिमी चालुक्य सोमेश्वर की सेना अगले चोल शासक वीरराजेन्द्र से हार गयीं। इसके बाद उसी ने दोबारा पश्चिमी चालुक्य सेना को [[कुदालसंगम]] पर मात दी और [[तुंगभद्रा नदी]] के तट पर एक विजय स्मारक की स्थापनी की।<ref name="ReferenceA" /> १०७५ में [[कुलोत्तुंग चोल १]] ने कोलार जिले में नांगिली में विक्रमादित्य ६ को हराकर गंगवाड़ी पर अधिकार किया।<ref>ए हिस्ट्री ऑफ साउथ इण्डिया, के ए नीलकांत शास्त्री (१९५५), पृ.१७४</ref> चोल साम्राज्य से १११६ में गंगवाड़ी को विष्णुवर्धन के नेतृत्व में होयसालों ने छीन लिया।<ref name="A History of South India" />
 
[[चित्र:Ugranarasimha statue at Hampi dtv.JPG|175px|thumb|left|[[हम्पी]], [[विश्व धरोहर स्थल]] मं एक [[नृसिंह|उग्रनरसिंह]] की मूर्ति। यह [[विजयनगर साम्राज्य]] की पूर्व राजधानी [[विजयनगर]] के अवशेषों के निकट स्थित है।]]