"लिंगायत मत": अवतरणों में अंतर

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वीरशैववाद मूलत: अद्वैतवादी दर्शन है किंतु यत: परमात्मा क्रिया और ध्यान से परे है और हमारे वास्तविक अनुभव की दुनिया के अस्तित्व की व्याख्या इच्छा तथा क्रिया के बिना नहीं की जा सकती, इसलिए शिव के शक्ति सिद्धांत की कल्पना की गई। ईश्वर से एकता स्थापित करने के लिए आध्यात्मिक आकांक्षी अपनी एक या तीनों शक्तियों का प्रयोग करता है। प्रेमशक्ति के प्रयोग का नाम भक्तियोग, चिंतनशक्ति के प्रयोग का ज्ञानयोग तथा कर्म शक्ति के प्रयोग का नाम कर्मयोग है। इन्हीं के जरिए परमेश्वर के साथ अंतिम रूप से एकता स्थापित होती है।
 
====== इसमें संदेह नहीं कि वीरशैवों के भी मंदिर, तीर्थस्थान आदि वैसे ही होते हैं जैसे अन्य संप्रदायों के, अंतर केवल उन देवी देवताओं में होता है जिनकी पूजा की जाती है। जहाँ तक वीरशैवों का सबंध है, देवालयों या साधना के अन्य प्रकारों का उतना महत्व नहीं है जितना इष्ट लिंग का जिसकी प्रतिमा शरीर पर धारण की जाती है। आध्यात्मिक गुरु प्रत्येक वीरशैव को इष्ट लिंग अर्पित कर उसके कान में पवित्र षडक्षर मंत्र 'ओम्‌ नम: शिवाय' फूँक देता है। प्रत्येक वीरशैव स्नानादि कर हाथ की गदेली पर इष्ट लिंग की प्रतिमा रखकर चिंतन और ध्यान द्वारा आराधना करता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्येक वीरशैव में सत्यपरायणता, अहिंसा, बंधुत्वभाव जैसे उच्च नैतिक गुणों के होने की आशा की जाती है। वह निरामिष भोजी होता है और शराब आदि मादक वस्तुओं से परहेज करता है। बासव ने इस संबंध में जो निदेश जारी किए थे, उनका सारांश यह है - चोरी न करो, हत्या न करो और न झूठ बोलो, न अपनी प्रशंसा करो न दूसरों की निंदा, अपनी पत्नी के सिवा अन्यश् सब स्त्रियों को माता के समान समझो। <code><small><span lang="mi ligayet aahe" dir="rtl">Ravi Vilegave</span></small></code> ======
 
वेद, उपनिषद् और शैवागम तो सब संस्कृत में है अत: वीरशैव वचनकारों ने उनका सार और शाश्वत सत्वों का स्थूलांश कन्नड भाषा एवं साहित्य में समाविष्ट कर उसकी संबृद्धि की।
 
== सन्दर्भ ==
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* Narasimhacharya, R (1988) [1988]. ''History of Kannada Literature''. New Delhi: Penguin Books. ISBN 81-206-0303-6.