"ब्राह्मण-ग्रन्थ": अवतरणों में अंतर

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# '''विद्वासों हि देवा''' - शतपथ ब्राह्मण के इस वचन का अर्थ है, विद्वान ही देवता होते हैं ।
# '''यज्ञः हिवै विष्णु''' - यज्ञ ही विष्णु है ।
# '''अश्वं वेवै वीर्यम, ''' - अश्व वीर्य, शौर्य या बल को कहते हैं ।
# '''राष्ट्रम् अश्वमेधः''' - [[तैत्तिरीय संहिता]] और [[शतपथ ब्राह्मण]] के इन वचनों का अर्थ है - लोगों को एक करना ही अशवमेध है ।
# '''अग्नि वाक, इंद्रः मनः, बृहस्पति चक्षु ..''' ([[गोपथ ब्राह्मण]])। - अग्नि वाणी, इंद्र मन, बृहस्पति आँख, विष्णु कान हैं ।