"न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

छो 2405:204:A100:97C:98D5:F5CE:5FF5:D9AE (Talk) के संपादनों को हटाकर [[User:चक्रबोट|चक...
टैग: वापस लिया
No edit summary
पंक्ति 1:
कोई भी वस्तु ऊपर से गिरने पर सीधी [[पृथ्वी]] की ओर आती है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो कोई अलक्ष्य और अज्ञात शक्ति उसे [[पृथ्वी]] की ओर खींच रही है। [[इटली]] के वैज्ञानिक, [[गैलीलियो गैलिली|गैलिलीयो गैलिलीआई]] ने सर्वप्रथम इस तथ्य पर प्रकाश डाला था कि कोई भी पिंड जब ऊपर से गिरता है तब वह एक नियत [[त्वरण]] से पृथ्वी की ओर आता है। त्वरण का यह मान सभी वस्तुओं के लिए एक सा रहता है। अपने इस निष्कर्ष की पुष्टि उसने प्रयोगों और गणितीय विवेचनों द्वारा की है।
[[चित्र:NewtonsLawOfUniversalGravitation.svg|right|thumb|300px|न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण का नियम]]
इसके बाद सर [[आइज़क न्यूटन]] ने अपनी मौलिक खोजों के आधार पर बताया कि केवल पृथ्वी ही नहीं, अपितु विश्व का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। दो कणों के बीच कार्य करनेवाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है। कणों के बीच कार्य करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को '''गुरुत्वाकर्षण''' (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को '''गुरुत्वाकर्षण बल''' (Force of Gravitation) कहा जाता है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त नियम को "'''न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम"''' (Law of Gravitation) कहते हैं। कभी-कभी इस नियम को "गुरुत्वाकर्षण का प्रतिलोम वर्ग नियम" (Inverse Square Law) भी कहा जाता है।
 
उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : मान लिया m1m<sub>1</sub> और संहति वाले m2m<sub>2</sub> दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल fF का संबंधमान होगा :
 
; F =Good m1G m2m<sub>1</sub> m<sub>2</sub>/d‍^<sup>2</sup> .........................(१)
 
यहाँ '''G''' एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी पदार्थों के लिए एक जैसा रहता है। इसे गुरुत्व नियतांक (Gravitational Constant) कहते हैं। इस नियतांक की [[विमा]] (dimension) है और आंकिक मान प्रयुक्त इकाई पर निर्भर करता है। सूत्र (१) द्वारा किसी पिंड पर पृथ्वी के कारण लगनेवाले आकर्षण बल की गणना की जा सकती है। मान लीजिए पृथ्वी की संहति M है और इसके धरातल पर m संहतिवालासंहति वाला कोई पिंड पड़ा हुआ है। पृथ्वी की संहति यदि उसके केंद्र पर ही संघनित मानी जाए और पृथ्वी का अर्धव्यास r हो तो पृथ्वी द्वारा उस पिंड पर कार्य करनेवाला आकर्षण बल :
 
; F=G Mm/r‍^<sup>2</sup> ..........................(2)
 
F=G Mm/r‍^2..........................(2)
Gurutvakarshan gurutvakarshan
[[न्यूटन के गति का दूसरा नियम|न्यूटन के द्वितीय गतिनियम]] के अनुसार किसी पिंड पर लगनेवाला बल उस पिंड की संहति तथा त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है। अत: पृथ्वी के आकर्षण के प्रभाव में मुक्त रूप से गिरनेवाले पिंड पर कार्य करनेवाला गुरुत्वाकर्षण बल:
 
; F=m x g
 
जहाँ g उस पिंड का [[गुरुत्वजनित त्वरण]] (acceleration due to gravity) है, अत:
 
; F/m = g...........................(3)
 
अर्थात g= पिंड की इकाई संहति पर कार्य करनेवाला बल।
पंक्ति 23:
किंतु समीकरण (२) से
 
; F/m = G M/r^<sup>2</sup>..................(4)
 
अतएव गुरुत्वजनित त्वरण '''g''' को बहुधा ‘पृथ्वी’ के गुरुत्वाकर्षण की तीव्रता भी कहते हैं।
पंक्ति 32:
समीकरण (३) और (४) में तुलना करने पर
 
;g = G x M/r^<sup>2</sup>
 
किंतु पृथ्वी की मात्रा (पृथ्वी को पूर्णत: गोल मानने पर)
 
;M = (4/3) p r^<sup>3</sup> D
 
जहाँ '''D''' पृथ्वी का माध्य घनत्व (mean density) है।
 
g = G (4/3) p r^<sup>3</sup> D /r^<sup>2</sup>= (4/3) G p r D
 
अर्थात्‌ G. D. = 3 g / (4 p r)
पंक्ति 49:
 
* 1. पृथ्वी द्वारा किसी पिंड पर ठीक नीचे की ओर लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण बल की उस पिंड पर किसी भारी संहतिवाले प्राकृतिक पिंड, (जैसे पर्वत आदि) द्वारा लगनेवाले पार्श्विक (lateral) आकर्षण बल के साथ तुलना करके,
 
* 2. पृथ्वी द्वारा किसी पिंड पर लगनेवाले आकर्षण बल की किसी अन्य कृत्रिम पिंड द्वारा लगनेवाले ऊ र्ध्वाधर आर्कषण बल के साथ (किसी तुला द्वारा) तुलना करके और
 
* 3. दो कृत्रिम पिंडों के बीच कार्यरत पारस्परिक आकर्षण बल की गणना करके।
 
Line 57 ⟶ 59:
मान लीजिए m संहति का कोई पिंड पृथ्वी द्वारा आकर्षित हो रहा है। स्पष्ट है कि यह आकर्षण बल उस पिंड के भार w के बराबर होगा। अब यदि उस पिंड पर एक पार्श्विक बल भी, किसी अन्य बृहत्काय प्राकृतिक पिंड (जैसे पहाड़ इत्यादि) द्वारा लग रहा हो तो न्यूटन के नियमानुसार पार्श्विक बल
 
F = F m m’/ d‍^<sup>2</sup>.........................(6)
 
यहाँ m’ उस बृहत्काय प्राकृतिक पिंड की संहति तथा d उसके तथा छोटे पिंड के बीच की दूरी है। यदि पृथ्वी का अर्धव्यास r हो तो
 
W = G (4/3) µ r3r<sup>3</sup> Dm/r2r<sup>2</sup> = (4/3) mµ r (G.D.) ........... (7)
 
समीकरण (६) और (७) की तुलना करने पर
 
W/f = (4/3) r d2d<sup>2</sup> D/m’
 
अर्थात
 
D = 3m’/4p r d2d<sup>2</sup> D (W/f)। .................(८)
 
इस समीकरण में G नहीं आता। अत: अन्य राशियाँ ज्ञात रहने पर
 
इस समीकरण में G नहीं आता। अत: अन्य राशियाँ ज्ञात रहने पर पृथ्वी का माध्य घनत्व D ज्ञात हो जायगा। w/f का मान अलग कई प्रयोगों द्वारा ज्ञात कर लिया जाता है।
 
पुन: समीकरण (६) में m के स्थान पर mg/g अर्थात्‌ (w/g)
पंक्ति 81:
'''बूगर''' ने १७४० ई. में दो प्रकार के प्रयोग किए और विभिन्न ऊँचाइयों पर सेकेंड [[लोलक]] की लंबाई तथा g के मान ज्ञात करने के प्रयत्न किए। एक स्थान तो दक्षिणी अमरीका के पीरू नामक देश में क्विटो नामक पठार (लगभग ९,४०० फुट ऊँचा) पर चुना। इन दोनों स्थानों की ऊँचाइयों में अंतर के लिए उसने समुद्रतल पर प्राप्त g के मान में संशोधन किया : इस हेतु उसने मान लिया था कि दोनों ऊँचाइयों के बीच में केवल वायु व्याप्त थी। इस प्रकार गणना द्वारा पठार के लिए प्राप्त g के मान और प्रयोग द्वारा प्राप्त मान में १/६९८३ गुने का अंतर पाया। बूगर ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह अंतर ९४०० फुट ऊँचे पठार में निहित भूपदार्थ के आकर्षण के ही कारण आया। इस प्रयोग ने यह संकेत दिया कि संपूर्ण पृथ्वी का आकर्षण उस पठार के आकर्षण का ६९८३ गुना है। पठार के आकर्षण की गणना करके बूगर ने अनुमान किया कि पृथ्वी का घनत्व पठार के घनत्व का ४.७ गुना है।
 
'''मैस्केलीन''' ने १७७४ ई. में एक दूसरा प्रयोग किया। स्कॉटलैंड के पर्थशायर प्रांत में स्थित शीहैलियन (Schiehallian) पर्वत के उत्तर और दक्षिण की ओर की खड़ी ढालों के अत्यंत निकट उसने दो केंद्र स्थापित किए, जो एक ही याम्योत्तर (meridian) पर पड़ते हैं। दोनों के अक्षांशों ४२.९४ सेकंड का अंतर था। उसने एक [[दूरदर्शी]] में एक साहुल (plumb bob) लगाया और दोनों स्थानों से कई नक्षत्रों की याम्योत्तरीय शिरोबिंदु (meridian zenith) दूरियाँ नापीं। यदि पर्वत न होता तो साहुलसूत्र (plumb line) ऊर्ध्वाधर रहता, जिसके परिणामस्वरूप दोनों केंद्रों से नापी गई शिरोबिंदु दूरियों का अंतर ४२.९४ सें० के बराबर आता। किंतु प्रयोग करने पर यह अंतर ५४.२ सें. आया। इससे स्पष्ट था कि पर्वत के आकर्षण के कारण साहुलसूत्र दोनों केंद्रों पर पर्वत की ओर झुक गया। कालांतर में चार्ल्स हटन ने इस परिणाम की सहायता से पर्वत तथा पृथ्वी के घनत्वों में ५ और ९ की निष्पत्ति प्राप्त की। अन्य प्रयोगों द्वारा पर्वत का माध्य घनत्व (mean density) २.५ ज्ञात हुआ, अत: पृथ्वी का माध्य घनत्व ४.५ तथा इसके अनुसार G का मान ७.४ x १०E१०<sup>-८</sup> स्थिर हुआ।
 
'''सर जी. बी. एयरी''' ने १८५४ ई. में [[इंग्लैंड]] के [[साउथशील्डस]] प्रांत में स्थित हार्टन खान में एक अन्य प्रयोग किया था जो वस्तुत: बूगर के प्रयोग का ही संशोधित रूप था। एक ही लोलक को एक खान के ऊ पर तथा तली में दोलन कराकर उसके आवर्त कालों (periods) की परस्पर तुलना की और इस प्रकार खान की गहराई के बराबर भूतत्व के आकर्षण की तुलना संपूर्ण पृथ्वी के आकर्षण से की। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है : मान लीजिए पृथ्वी के केंद्र से खान की तली तक भूतत्व का घनत्व D तथा वहाँ से खान के ऊपर तक के भूतत्व का घनत्व d है। यदि खान के ऊ परऊपर तथा तली में गुरुत्वाकर्षण की तीव्रता का मान क्रमश: ga और gb हो तो
 
gb = G (4/3) r‍^<sup>3</sup> D/r^<sup>2</sup> = G (4/3) r D ----......... (९)
 
तथा g = G (4/3) p r^<sup>3</sup> D/(r+h)^<sup>2</sup> + G 4 r^<sup>2</sup> hd/r^<sup>2</sup> ....... (10)
 
= G 4/3 p r^<sup>3</sup> D/(r+h)^<sup>2</sup> + G 4 p h d
 
\ ga/gb = r2/(r+h) 2 + 3hd/rD = 1- 2h/r + 3hd/rD (11)
पंक्ति 102:
मान लीजिए m संहति का कोई पिंड किसी अत्यंत सुग्राही तुला (जैसे रासायनिक तुला) की एक भुजा से किसी तार द्वारा लटकाया गया है। यदि पृथ्वी की संहति M तथा अर्धव्यास r हो तो उस पिंड पर कार्य करने वाला गुरुत्वाकर्षण बल (अर्थात पिंड का भार)
 
w = G M m/ r^<sup>2................................................</sup> ............(12)
 
अब इस पिंड के नीचे यदि m संहति का कोई अन्य भारी पिंड लाकर रखा जाय और दोनों पिंडों के केंद्रों के बीच की दूरी d हो तो दोनों के पारस्परिक आकर्षण के कारण पहला पिंड अधिक नीचे की ओर झुक जायगा अर्थात्‌ उसका भार बढ़ जायगा। मान लीजिए भार में यह dवृद्धि wdw वृद्धि हो तो
 
w’ = G m m’/d^<sup>2........................</sup>............(13)
 
w’/w = m’/M r^2/d^<sup>2......................</sup>..............(14)
 
पृथ्वी की संहति
 
M m’ (w’/w, r2/d2) ......................................................(15)
 
इस समीकरण से पृथ्वी की संहति M ज्ञात हो जायगी और इस मान को समीकरण (१२) में रखने पर G का मान ज्ञात किया जा सकता है। G का मान दूसरी विधि से भी ज्ञात किया जा सकता है। हम जानते हैं कि
 
m g = G M m/ r^<sup>2</sup>
 
या g = G M/r^<sup>2</sup>
 
G = g r^<sup>2</sup>/M
 
यहाँ '''g''' का मान सेकंड लोलक (Second’s Pendulum) द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
पंक्ति 128:
पॉयटिंग ने इतने सूक्ष्म भारांतर को ठीक-ठीक नापने के लिए एक विशेष प्रकार की तुला बनाई जिसकी डंडी चार फुट लंबी थी। दोनों पलड़ों को हटाकर डंडियों के सिरों से २०-२० कि. ग्रा. के दो गोले १२० सें. मी.लंबे तांगों से लटकाए गए थे। एक बड़ा गोला जिसकी संहति १५० कि.ग्रा. थी, एक क्षैतिज घूमनेवाले टेबुल (turn table) पर रखागया जिसकी धुरी तुला के केंद्रीय क्षुरधार (knife-edge) के ठीक नीचे पड़ती थी। घूमनेवाले टेबुल को इस प्रकार घुमाया जा सकता था कि एक बार बड़े गोले का केंद्र लटकते हुए एक गोले के केंद्र के ठीक नीचे पड़े और दूसरी बार दूसरे के केंद्र के नीचे पड़े। इन स्थितियों में बड़े और छोटे गोलों के केंद्रों में परस्पर ३० सें. मी. की दूरी रह जाती थी। समस्त उपकरण को एक भूगर्भ प्रकोष्ठ में रख दिया गया था और उसे चारों ओर इस प्रकार आवृत्त कर दिया गया था कि पवनधाराओं के कारण कोई व्यवधान न हो सकें। बड़े और छोटे गोलों के पारस्परिक आकर्षण के कारण तुला की डंडी में उत्पन्न होनेवाला झुकाव प्रकोष्ठ के बारह से एक प्रकाशीय युक्ति द्वारा नापा जा सकता था। इस व्यवस्था में एक विशेष प्रकार का दर्पण प्रयुक्त किया गया जो डंडी के झुकाव को १५० गुना संवर्धित कर देता था। यह पहले ही अलग प्रयोगों के द्वारा ज्ञात कर लिया गया था कि डंडी कितने भार के लिये कितनी झुकती है। इससे यह गणना कर ली गई कि दोनों गोलों में पारस्परिक आकर्षण के कारण डंडी में झुकाव कितने बल द्वारा उत्पन्न हुआ था। इस बल के परिमाण को गुरुत्वाकर्षण समीकरण
 
F = G m1m<sub>1</sub> m2m<sub>2</sub>/d^<sup>2</sup>
 
में प्रयुक्त कर G का मान ज्ञात कर लिया गया।