"राज्य": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:World borders geo hsi.png|right|thumb|300px|विश्व के वर्तमान राज्य (विश्व राजनीतिक)]]
[[चित्र:Pyramid of Capitalist System.jpg|right|thumb|300px|पूँजीवादी राज्य व्यवस्था का पिरामिड]]
'''राज्य''' उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी 'राज्य' कहते हैं, जैसे [[भारत]] के [[प्रदेश|प्रदेशों]] को भी 'राज्य' कहते
राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है। वास्तव में, 'राज्य' शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है।
वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है।
यूरोपीय चिंतन में राज्य के चार अंग बताये जाते हैं -
निश्चित भूभाग , जनसँख्या , सरकार और संप्रभुता ।
भारतीय राजनीतिक चिन्तन में 'राज्य' के सात अंग गिनाये जाते हैं-
: [[राजा]] या स्वामी, [[मंत्री]] या [[अमात्य]], सुहृद, [[देश]], [[कोष]], [[दुर्ग]] और [[सेना]]। ('''[[राज्य की भारतीय अवधारण]]''' देखें।)▼
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'''कौटिल्य ने''' राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "'''सप्तांग''' '''सिद्धांत "''' कहलाता है -
[[राजा]] , आमात्य या [[मंत्री]] , पुर या [[दुर्ग]] , [[कोष]] , [[दण्ड]], मित्र ।
==परिचय==
==मैकियावेली की राज्य की अवधारणा==
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