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जॉन मिल्टन का जन्म लंदन की चीपसाइड बस्ती ब्रेडस्ट्रीट में 9 दिसंबर 1608 ई० को हुआ था। उसके पिता कठोर प्यूरिटन होते हुए भी साहित्य एवं कला के प्रेमी थे, जिस कारण बालक मिल्टन को एक सुसंस्कृत परिवार के सभी लाभ प्राप्त हुए। मिल्टन की शिक्षा सेंट पॉल स्कूल तथा [[केंब्रिज विश्वविद्यालय]] के क्राइस्ट कॉलेज में हुई। क्राइस्ट कॉलेज में वह 7 वर्ष रहा। 1629 ई० में उसने बी०ए० पास किया और 1632 में एम०ए०। परंतु कॉलेज की पढ़ाई समाप्त होने के बाद भी उसका नियमित एवं सुनियोजित अध्ययन जारी रहा। उसके पिता की इच्छा थी कि वह चर्च में नौकरी करे अर्थात् पादरी बने, परंतु अपने अंतर्मन से मिल्टन कभी यह बात स्वीकार नहीं कर पाया। किसी अन्य व्यवसाय में जाने की भी उसकी रुचि नहीं थी। स्वाभाविक रूप से वह आत्मिक उन्नति की बात सोचते हुए काव्यरचना में लग गया। पिता की अच्छी आर्थिक स्थिति होने के कारण ऐसा करने में उसको कठिनाई की अनुभूति भी नहीं हुई। कैम्ब्रिज छोड़ने के बाद वह अपने ग्रामीण निवास पर रहने लगा, जो लंदन से करीब 17 मील दूर [[बकिंघमशायर]] में हॉर्टन में था। मिल्टन बाल्यावस्था से ही अध्ययन में इस कदर निमग्न रहता था कि प्रायः आधी रात तक पढ़ते ही रह जाता था। विश्वविद्यालय में भी उसकी यह अध्ययन-निष्ठा बनी रही और ग्रामीण निवास के एकांतवास में स्वाभाविक रूप से उसका अध्ययन अबाध गति से चलता रहा। ''इस प्रकार पहले से ही रखी हुई दृढ़ नींव पर अपने पाण्डित्य में अनवरत वृद्धि करके मिल्टन बड़ा भारी विद्वान् बन गया। यह बात सावधानीपूर्वक ध्यान में रखना आवश्यक है, न केवल इसलिए कि अपने पांडित्य की विशालता एवं विशुद्धता में वह हमारे अन्य सभी कवियों से कहीं ज्यादा बढ़ चढ़ कर है, बल्कि इसलिए भी कि उसके पाण्डित्य ने सर्वत्र उसके साहित्य का पोषण किया है जिसके फलस्वरूप उसका साहित्य उसके पाण्डित्य से ओतप्रोत है।''<ref>अंग्रेजी साहित्य का इतिहास, विलियम हेनरी हडसन, अनुवादक- जगदीश बिहारी मिश्र, हिंदी समिति, सूचना विभाग, उत्तर प्रदेश, संस्करण-1963, पृ०-92.</ref>
 
== राजनीतिराजनीतिक सक्रियता एवं विवाह : तनावपूर्ण जीवन ==
 
30 वर्ष की आयु में यात्रा का निश्चय करके मिल्टन [[लंदन]] से [[पेरिस]] होते हुए [[इटली]] तक गया। परंतु स्वदेश में संकटपूर्ण स्थिति के समाचार प्राप्त होने के बाद उसे यात्रा करना अनैतिक जान पड़ा। अगस्त 1639 में वह लंदन लौट आया और 1640 के बाद वह सत्ता के विरुद्ध प्यूरिटनों के सहायक के रूप में क्रियाशील रहा। [[कॉमनवेल्थ]] की स्थापना होने पर वह विदेशी मामलों की समिति के लिए लैटिन सेक्रेटरी नियुक्त हुआ। 1643 में उसने राजपक्ष के एक सदस्य ''रिचर्ड पावेल'' की युवती कन्या ''मेरी पाॅवेल'' से विवाह किया, परंतु यह विवाह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध हुआ। इस युवती को लगा कि मिल्टन के साथ जीवन-यात्रा अंधकारमय है और इसलिए वह महीने भर बाद ही अपने पिता से मिलने गयी और वहाँ से लौटने से इन्कार कर दिया। इसी के बाद मिल्टन ने 'तलाक के सिद्धांत तथा अनुशासन' पर एक पुस्तिका (1643 ई०) लिखी थी। 1645 ई० में पुनः उनकी पत्नी लौट आयी और तीन पुत्रियों की माँ बनने के बाद 1652 में उसका निधन हो गया।<ref>[[हिंदी विश्वकोश]], नवम खंड, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1967, पृ०-281.</ref> 1653 के आरंभ में ही अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रूप से वह बिल्कुल अंधा हो गया। अत्यधिक परिश्रम के कारण पहले ही उसकी दृष्टि काफी कमजोर हो चुकी थी। 3 वर्ष बाद उसने पुनः विवाह किया परंतु उसकी पत्नी ''कैथरीन वुडकॉक'' 15 महीने के अंदर ही मर गयी। राजसत्ता के पुनः संस्थापन (1660) के बाद मिल्टन को कैद कर लिया गया और उसकी दो पुस्तकों को राजकीय आज्ञा से जला दिया गया। परंतु शीघ्र ही वह मुक्त हुआ और धीरे-धीरे उसकी राजनीतिक प्रसिद्धि समाप्त हो गयी। अब वह अंधा तो था ही, साथ ही निर्धन और अकेला भी था। जिस निमित्त उसने इतना परिश्रम और बलिदान किया था उसकी असफलता से उसे महान् क्लेश हो रहा था। उसने तीसरा विवाह (1663 में) ''एलिजाबेथ मिन्शल'' से किया था, जिससे वृद्धावस्था में उसे आराम मिल रहा था, तथापि पहली पत्नी की पुत्रियों के कृतघ्नतापूर्ण व्यवहार के कारण उसे महान कष्ट भी झेलना पड़ रहा था। ऐसी अंधकारमय एवं दुखपूर्ण परिस्थिति में उसने महान् काव्यात्मक योजनाओं को अपनाया और इसी क्षेत्र में जीवन की चरम सफलता प्राप्त करके 8 नवंबर 1674 को मिल्टन का देहांत हो गया।