"दशकुमारचरित": अवतरणों में अंतर

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== कथा ==
मूल दशकुमारचरित के प्रथम उच्छ्वास का आरंभ एकाएक मुख्य नायक राजकुमार राजवाहन को एक बन्दी के रूप में प्रस्तुत करते हुए होती है। बाद में चम्पा के अभियान में राजवाहन को उसके भूले भटके सभी साथी मिल जाते हैं जो शेष सात उच्छवासों में अपनी-अपनी रोमांचकारी एवं कुतूहलजनक घटनाओं को राजवाहन से कहते हैं। दूसरे उचछ्वास में उपहार वर्मा की कथा आती है जो अत्यंत विस्तृत एव विनोदपूर्ण हैं। मारीचि नाम के ऋषि तथा वास्तु-पाल नाम के श्रेष्ठी का प्रवञ्चना बहुत रोचक है। नायक के द्युतशाला में अनुभव तथा घरों में सेंध लगाना आदि हास्यपूर्ण घटनाएँ हैं। तृतीय उच्छ्वास से लेकर षष्ठ उच्छ्वास तक क्रमश: उपहार वर्मा, अर्थपाल, प्रमति तथा मित्रगुप्त की कथाएँ हैं। तीसरे उच्छवास में उपहार वर्मा की कथा है। उसने राज्यापहारी के मन पर अधिकार करके अपनी अदभुत सौन्दर्य देने की शक्ति के विषय में सुझाया। इस प्रकार सौन्दर्यशक्ति के बहाने से उनकी हत्या कर दी तथा अपने पिता के खोए हुए राज्य को वापस लिया। चतुर्थ उच्छवास में बतलाया गया है कि अर्थपाल ने अपने पिता के खोए मन्त्रिपद तथा मणिकार्णिका नामक राजकुमारी को प्राप्त किया। पंचम उच्छवास में प्रमति श्रावस्ती की राजकुमारी का पाणिग्रहण करता है। युवराज की यात्रा के वर्णन में ग्राम्य तथा नागरिक जीवन का अनेक प्रकार का उल्लेख प्राप्त होता है। पष्ठ उच्छवास में मित्रगुप्त के द्वारा खुँह देश की राजकुमारी की प्राप्ति का वर्णन है। इसमें दण्डी ने समुद्र पर किये गये साहसों का वर्णन किया है। सप्तम उच्छृवासउच्छवास में मंत्रगुप्त की कथा है। इस उच्छ्वास की यह विशेषता उल्लेखनीय है कि इसमें कथावक्ता का ओष्ठ उसकी प्रेयसी द्वारा काटे जाने के कारण ओष्ठ से उच्चार्यमाण [[पवर्ग]] के वर्णों का प्रयोग नहीं हुआ है। अष्टम उच्छवास में विश्रुत के साहसिक कार्यो का वर्णन है जो विदर्भ देश के राजकुमार को उसका खोया हुआ राज्य दिलाता है। इसमें राजनीतिशास्त्र पर परिष्कृत व्यंग है। आनन्द एवं सुगम जीवन का सशक्त प्रतिपादन त्रुटिपूर्ण हेतु पर आधरित है। एकाएक प्रारम्भ के समान यहाँ कृति एकाएक समाप्त हो जाती है।
 
== महत्व ==