"लोक प्रशासन की प्रकृति": अवतरणों में अंतर
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*'''(८) प्रशासकीय उत्तरदायित्व''' - लोक प्रशासन की परिधि में हम सरकार के विभिन्न उत्तरदायित्व का विवेचन करते हैं। न्यायालयों के प्रति उत्तरदायित्व, जनता तथा विधान-मंडल आदि के प्रति प्रशासन के उत्तरदायित्व का अध्ययन किया जाता है।
*'''(९) मानव-तत्व का अध्ययन''' - लोक प्रशासन एक मानव शास्त्र है। मानवीय तत्त्व के अभाव में वह अपूर्ण है। अमेरिकी लेखक साइमन तथा मार्क्स ने लोक प्रशासन के अध्ययन में मानवीय तत्त्व के अध्ययन को विशेष महत्त्व दिया है। व्यक्ति ही समस्त प्रशासकीय व्यवस्था का संचालक, स्रोत, आधार तथा मार्गनिर्देशक होता है। मानव-मनोविज्ञान के अध्ययन के बिना लोक प्रशासन की विविध समस्याओं को नहीं समझाया जा सकता। प्रशासन पर परम्पराओं, सभ्यता, संस्कृति एवं बाह्य वातावरण का प्रभाव पड़ता है। लोक प्रशासन की विविध समस्याओं को हमें मानवीय व्यवहार की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए। लोक प्रशासन एक सामूहिक मानवीय क्रिया है।
सामूहिक संबंधों का आधार क्या है तथा व्यक्ति उन आवश्यकताओं की पूर्ति किस प्रकार कर पाता है, यह विचारणीय विषय लोक प्रशासन का है। प्रशासकीय निर्णयों पर किन-किन तत्वों का व्यापक रूप से प्रभाव होता है, इसका अध्ययन हम लोक प्रशासन में करते हैं।
लोक प्रशासन के अध्ययन-क्षेत्र के बारे में विचारकों में बड़ा भेद है। मूलतः मतभेद इन प्रश्नों को लेकर है कि क्या लोक प्रशासन शासकीय कामकाज का केवल प्रबन्धकीय अंश है अथवा सरकार के समस्त अंगों का समग्र अध्ययन? क्या लोक प्रशासन सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन है अथवा यह नीति-निर्धारण में भी प्रभावी भूमिका अदा करता है।
==लोक-प्रशासन : कला अथवा विज्ञान==
लोक प्रशासन [[कला]] है या [[विज्ञान]] - इस विषय पर विद्वानों में मतभेद है।
लोकप्रशासन को [[विज्ञान]] मानने वालो विचारकों में लूथर, गुलिक, उर्विक, वुडरो विल्सन आदि प्रमुख हैं। इनके अनुसार लोकप्रशासन का अध्ययन क्रमबद्ध तरीके से किया जाता है जिसमे परिकल्पना, तथ्यों का संग्रह, तथ्यों की पुष्टि, तथ्यों का वर्गीकरण, तुलनात्मक अध्ययन, विश्लेषण आदि वैज्ञानिक तरीको का उपयोग कर एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। इस प्रकार लोक प्रशासन में इन वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग करके ही सामान्य नियम स्थापित किया जाता है। विज्ञान की भाँति ही लोक प्रशासन में कुछ सर्वमान्य सिद्धान्त भी है जैसे- आदेश की एकता, नियंत्रण क्षेत्र, टेलर का वैज्ञानिक प्रबन्ध का सिद्धान्त आदि। लोक प्रशासन में विद्धमान दोषो को दूर करने व प्रशासनिक तकनीक के विकास हेतु विज्ञान की तरह ही लोकप्रशासन में भी नवीन प्रयोग किये जाते है। इसी के साथ लोक प्रशासन में तकनीकी ज्ञान की भी प्रधानता है। एक वैज्ञानिक की भाँति एक कुशल प्रशासक को भी तकनीकी ज्ञान से युक्त होना आवश्यक है ताकि वह अपने दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वाह कर सके। इन अर्थो में लोकप्रशासन को विज्ञान माना जा सकता है।
दूसरी और प्रो व्हाइट, डॉ एम् पी शर्मा, आर्टवे टिड जैसे विचारक लोकप्रशासन को कला की श्रेणी में रखते हैं। उनके अनुसार लोकप्रशासन का विकास भी कला की भांति धीरे-धीरे क्रमिक रूप से हुआ है। इस दृष्टि से लोक प्रशासन भी एक कला है जिसमे विभिन्न युगों का व्यवस्थित अध्ययन करते हुए सामान्य नियम स्थापित किये गए है। एक कलाकार के समान ही प्रशासक भी अनुभव एंव अभ्यास के आधार पर ही सफल और सिद्ध हो सकता है। जिस प्रकार कला की सफलता कुछ निश्चित नियमो पर आधारित होती है उसी प्रकार लोकप्रशासन में भी नियमो के आभाव में प्रशासको के स्वेच्छाचारिता एंव प्रशासन के स्वरूप विकृत होने की सम्भावना बनी रहती है। विकासशील होने के कारण जिस प्रकार कला के सिद्धान्तों में परिवर्तन होता रहता है ठीक उसी प्रकार लोकप्रशासन में भी विकास की प्रक्रिया निरतंर चलती रहती है और नए नियम बनते रहते है। कला के उपर्युक्त सभी लक्षणों की उपस्थिति के कारण लोकप्रशासन को एक कला के रूप में स्वीकार किया जाता है।
[[श्रेणी:लोक प्रशासन]]
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