"चोल राजवंश": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Content deleted Content added
राजाओं को कहना था कि वह गुर्जरों के वंशज है टैग: यथादृश्य संपादिका: बदला मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
छो 42.111.110.192 (Talk) के संपादनों को हटाकर अजीत कुमार तिवारी... टैग: वापस लिया |
||
पंक्ति 46:
== चोलों का उदय ==
[[चित्र:Raraja detail.png|अंगूठाकार|तंजावुर के [[बृहदेश्वर मंदिर]] में '''राजराज चोल''' की प्रतिमा]]
इसके पश्चात् '''राजराज प्रथम''' (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर [[पश्चिमी चालुक्य|पश्चिमी चालुक्यों]] से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया।
|