"जैन ग्रंथ": अवतरणों में अंतर

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मथुरा के सम्मेलन को 'माथुरी-वाचना' की संज्ञा दी गयी है। तत्पश्चात लगभग 150 वर्ष बाद, महावीर निर्वाण के 980 या 993 वर्ष बाद ( ईसवी सन् 453-466 में) वलभी में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में साधुओं का चौथा सम्मेलन हुआ, जिसमें सुव्यवस्थित रूप से आगमों का अन्तिम बार संकलन किया गया। से 'वलभी-वाचना' के नाम से कहा जाता है। वर्तमान आगम इसी संकलना का रूप है।
 
जैन आगमों की उक्त तीन संकलनाओं के इतिहास से पता लगता है कि समय-समय पर आगम साहित्य को काफी क्षति उठानी पड़ी, और यह साहित्य अपने मौलिक रूप में सुरक्षित नहीं रह सका। यही कारण मालूम होता है कि बौद्धों के विपुल साहित्य के मुकाबले यह साहित्य बहुत न्यून है, तथा इस साहित्य में विकार आ जाने से ही सम्भवतः दिगम्बर सम्प्रदाय ने इसे मानना अस्वीकार कर दिया।
 
==महत्व==