"जवाहरलाल नेहरू": अवतरणों में अंतर

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समस्त राजनीतिक विवादों से दूर नेहरू जी निःसंदेह एक उत्तम लेखक थे। राजनीतिक क्षेत्र में [[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य तिलक]] के बाद जम कर लिखने वाले नेताओं में वे अलग से पहचाने जाते हैं। दोनों के क्षेत्र अलग हैं, परंतु दोनों के लेखन में सुसंबद्धता पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है।
 
नेहरू जी स्वभाव से ही स्वाध्यायी थे। उन्होंने ''महान् ग्रंथों का अध्ययन किया था। सभी राजनैतिक उत्तेजनाओं के बावजूद वे स्वाध्याय के लिए रोज ही समय निकाल लिया करते थे।''<ref>हमारी विरासत, डॉ० राधाकृष्णन, हिन्द पॉकेट बुक्स प्रा०लि०, दिल्ली, संस्करण-1989, पृष्ठ-107.</ref> परिणामस्वरूप उनके द्वारा रचित पुस्तकें भी एक अध्ययन-पुष्ट व्यक्ति की रचना होने की सहज प्रतीति कराती हैं।
 
नेहरू जी ने व्यवस्थित रूप से अनेक पुस्तकों की रचना की है। राजनीतिक जीवन के व्यस्ततम संघर्षपूर्ण दिनों में लेखन हेतु समय के नितांत अभाव का हल उन्होंने यह निकाला कि जेल के लंबे नीरस दिनों को सर्जनात्मक बना लिया जाय। इसलिए उनकी अधिकांश पुस्तकें जेल में ही लिखी गयी हैं। उनके लेखन में एक साहित्यकार के भावप्रवण तथा एक इतिहासकार के खोजी हृदय का मिला-जुला रूप सामने आया है।
 
[[इंदिरा गांधी]] को काल्पनिक पत्र लिखने के बहाने उन्होंने विश्व इतिहास का अध्याय-दर-अध्याय लिख डाला। ये पत्र वास्तव में कभी भेजे नहीं गये, परंतु इससे '''विश्व इतिहास की झलक''' जैसा सहज संप्रेष्य तथा सुसंबद्ध ग्रंथ सहज ही तैयार हो गया। '''भारत की खोज''' (डिस्कवरी ऑफ इंडिया) ने लोकप्रियता के अलग प्रतिमान रचे हैं, जिस पर केन्द्रित [[भारत एक खोज]] नाम से एक उत्तम धारावाहिक का निर्माण भी हुआ है।<ref>श्याम बेनेगल निर्मित इस धारावाहिक के बारे में '''प्रगतिशील वसुधा''' के सुप्रसिद्ध 'सिनेमा विशेषांक' में कहा गया है कि '' 'भारत एक खोज' (1988) धारावाहिक टेलीविजन पर एक ऐसी कृति के रूप में सामने आया जिसका आज बीस साल बाद भी कोई मुकाबला नहीं है।'' द्रष्टव्य- प्रगतिशील वसुधा, अंक-81 (अप्रैल-जून, 2009), ''हिंदी सिनेमा : बीसवीं से इक्कीसवीं सदी तक'', अतिथि संपादक- प्रहलाद अग्रवाल, पृष्ठ-383.</ref> उनकी आत्मकथा '''मेरी कहानी''' ( ऐन ऑटो बायोग्राफी) के बारे में सुप्रसिद्ध मनीषिमनीषी [[सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] का मानना है कि ''उनकी आत्मकथा, जिसमें आत्मकरुणा या नैतिक श्रेष्ठता को जरा भी प्रमाणित करने की चेष्टा किए बिना उनके जीवन और संघर्ष की कहानी बयान की गयी है, हमारे युग की सबसे अधिक उल्लेखनीय पुस्तकों में से एक है।''<ref>हमारी विरासत, डॉ० राधाकृष्णन, हिन्द पॉकेट बुक्स प्रा०लि०, दिल्ली, संस्करण-1989, पृष्ठ-96.</ref>
 
इन पुस्तकों के अतिरिक्त नेहरू जी ने अगणित व्याख्यान दिये, लेख लिखे तथा पत्र लिखे। इनके प्रकाशन हेतु 'जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि' ने एक ग्रंथ-माला के प्रकाशन का निश्चय किया। इसमें सरकारी चिट्ठियों, विज्ञप्तियों आदि को छोड़कर स्थायी महत्त्व की सामग्रियों को<ref>जवाहरलाल नेहरू वाङ्मय, खंड-5, सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1976, पृष्ठ-'चार'।</ref> चुनकर प्रकाशित किया गया। '''जवाहरलाल नेहरू वाङ्मय''' नामक इस ग्रंथ माला का प्रकाशन अंग्रेजी में 15 खंडों में हुआ तथा हिंदी में सस्ता साहित्य मंडल ने इसे 11 खंडों में प्रकाशित किया है।