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'''पुनर्जन्म''' एक भारतीय सिद्धांत है जिसमें जीवात्मा के [[जन्म]] और [[मृत्यु]] के बाद पुनर्जन्म की मान्यता को स्थापित किया गया है। विश्व के सब से प्राचीन ग्रंथ [[ऋग्वेद]] से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण, गीता, योग आदि ग्रंथों में पूर्वजन्म की मान्यता का प्रतिपादन किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार शरीर का मृत्यु ही जीवन का अंत नहीं है परंतु जन्म जन्मांतर की श्रृंखला है। ८४ लाख या ८४ प्रकार की योनियों में जीवात्मा जन्म लेता है और अपने कर्मों को भुगतता है। आत्मज्ञान होने के बाद जन्म की श्रृंखला रुकती है; फिर भी आत्मा स्वयं के निर्णय, लोकसेवा, संसारी जीवों को मुक्त कराने की उदात्त भावना से भी जन्म धारण करता है। ईश्वर के अवतारों का भी वर्णन किया गया है। पुराण से लेकर आधुनिक समय में भी पुनर्जन्म के विविध प्रसंगों का उल्लेख मिलता है।
'''पुनर्जन्म''' यह धारणा है कि व्यक्ति [[मृत्यु]] के पश्चात पुनः [[जन्म]] लेता है। हम ये कहें कि कर्म आदि के अनुसार कोई मनुष्य मरने के बाद कहीं अन्यत्र जन्म लेता है।
==पुनर्जन्म का सिद्धांत==
भारतीय दर्शनशास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में ऋषियों ने स्वयं की खोज की और पाया कि स्वयं शरीर नहीं है परंतु शरीर के अंदर स्थित आत्मा-जो निराकार है-उनका मूल स्वरूप है। आत्मा को जानने की इस प्रक्रिया को आत्मसाक्षात्कार के नाम से जाना जाता है। आत्मा के साक्षात्कार हेतु [[योग]], [[ज्ञान]], [[भक्ति]] आदि पद्धतियाँ प्रचलित हैं जिसका आविर्भाव प्राचीन काल में हुआ है। ऋषियों ने स्वयं को जानकर अपने जन्मांतर के ज्ञान की भी प्राप्ति की और पाया कि उनके कई जन्म थे। स्वयं का मूल स्वरूप आत्मा जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती; ये पहले था, आज है और कल भी रहेगा। शरीर के मृत्यु के बाद जीवात्मा पुनः जन्म धारण करता है और ये चक्र चलता ही रहता है। पुनर्जन्म का कारण सांसारिक पदार्थों में आसक्ति आदि है। जब व्यक्ति साधना के बल पर सांसारिक दुविधाओं से मुक्त होकर स्वयं को जान लेता है तब जन्म की प्रक्रिया से भी मुक्ति पा लेता है। फिर भी अपनी स्वेच्छा से जन्म धारण कर सकता है। मूल रूप से सभी को अपने पूर्व के जन्मों की विस्मृति हो जाती है। योग आदि क्रियाओं से आत्मा को जानकर ध्यान में पूर्व के जन्मों के ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। ज्ञानी पुरुष दूसरों के जन्मांतर के विषय में भी बता सकते हैं अतः ऐसे सदगुरु से भी पूर्वजन्म के ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। पुराण आदि में भी जन्म और पुनर्जन्मों का उल्लेख है जिससे अमुक व्यक्तियों के पूर्वजन्म के विषय में जानकारी मिलती है। कभी बाल्यकाल मदन किसी बालक को पूर्वजन्म का ज्ञान होने के प्रसंग भी सामने आए हैं।
==प्राचीन ग्रंथों में पुनर्जन्म==
पुनर्जन्म की प्रक्रिया के विषय में श्रीमद्भगवद्गीता में स्पष्ट जानकारी दी गई है जो अत्यंत लोकप्रिय भी है। कर्मयोग का ज्ञान देते समय भगवान श्री[[कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] से कहाँ कि, 'सृष्टि के आरंभ में मैंने ये ज्ञान [[सूर्य]] को दिया था। आज तुम्हें दे रहा हूँ।' अर्जुन ने आश्वर्यचकित होकर प्रश्न पूछा कि, 'आपका जन्म तो अभी कुछ साल पूर्व हुआ और सूर्य तो कई सालों से है। सृष्टि के आरंभ में आपने सूर्य को ये (कर्मयोग का) ज्ञान कब दिया?' कृष्ण ने कहाँ कि:-
 
{{उक्ति|'''बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।'''
पाश्चात्य मत में सामान्यतः पुनर्जन्म स्वीकृत नहीं है क्योंकि वहाँ ईश्वरेच्छा और यदृच्छा को ही सब कुछ मानते हैं। कहा जाता है, यदि व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है तो उसे अपने पहले जन्म की याद क्यों नहीं होती? भारतीय मत इसका उत्तर देता है कि अज्ञान से आवृत्त होने के कारण आत्मा अपना वर्तमान देखती है और भविष्य बनाने का प्रयत्न करती है, पर भूत को एकदम भूल जाती है। यदि अज्ञान का नाश हो जाए तो पूर्वजन्म का ज्ञान असंभव नहीं है। भारत की पौराणिक कथाओं में इस तरह के अनेक उदाहरण हैं और योगशास्त्र में पूर्वजन्म का ज्ञान प्राप्त करने के उपाय वर्णित हैं।
'''तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ॥ ५ ॥'''}}
 
'''अर्थात'''-श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन ! मेरे और तेरे अनेक जन्म हो चुके हैं; उन सबको मैं जानता हूँ, किंतु हे परंतप ! तू (उन्हें) नहीं जानता।
== इतिहास एवं विकास ==
[[आत्मा]] के अमरत्व तथा शरीर और आत्मा के द्वैत की स्थापना से यह शंका होती है कि मरण के बाद आत्मा की गति क्या है। अमर होने से वह शरीर के साथ ही नष्ट हो तो नहीं सकती। तब निश्चय ही अशरीर होकर वह कहीं रहती होगी। पर आत्माएँ एक ही अवस्था में रहती होंगी, यह नहीं स्थापित किया जा सकता, क्योंकि सबके कर्म एक से नहीं होते। अतएव [[ऋग्वेद]]कालीन भारतीय चिंतन में आत्मा के अमरत्व, शरीरात्मक द्वैत तया कर्मसिद्धांत की उपर्युक्त प्रेरणा से यह निर्णय हुआ कि मनुष्य के मरण के बाद, कर्मों के शुभाशुभ के अनुसार, स्वर्ग या नरक प्राप्त होता है।
 
इसमें श्रीकृष्ण ने पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है और स्वयं (कृष्ण) को अपने पिछले कई जन्मों की जानकारी होने की बात भी रखी है।<ref>{{cite book|first1=महर्षि वेद|last1=व्यास|title=श्रीमद्भगवद्गीता|date=पौराणिक काल|location=भारत|page=अध्याय ४, श्लोक संख्या ५|url=http://www.aboutdays.com/geeta/bhagavad-gita-chapter-4-34.html#gsc.tab=0|language=संस्कृत}}</ref>
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]