"लक्ष्मीमल्ल सिंघवी": अवतरणों में अंतर

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{{आज का आलेख}}
{{Infobox Officeholder
|name = लक्ष्मीमल्ल सिंघवी
|image = Dr. L.M. Singhvi (1931-2007).jpg
|office = लोकसभा के सदस्य
|term_start = 1962
|term_end = 1967
|constituency = [[जोधपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र|जोधपुर]]
|office1 = [[राज्यसभा]] के सदस्य
|term1 = 1998–2004
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|birth_place = [[जोधपुर]], राजस्थान, भारत
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|death_place = नई दिल्ली
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|occupation = [[न्यायविद]], लेखक, राजनयिक
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[[चित्र:LMSinghvi.jpg|thumb|right|200px|लक्ष्मीमल सिंघवी]]
[[चित्र:Stamp LMSinghvi.jpg|thumb|right|200px|लक्ष्मीमल्ल सिंघवी - डाकटिकट]] '''लक्ष्मीमल्ल सिंघवी''' (या लक्ष्मीमल सिंघवी) ([[९ नवंबर]] [[१९३१]]- [[६ अक्टूबर]] [[२००७]]) ख्यातिलब्ध न्यायविद, संविधान विशेषज्ञ, कवि, भाषाविद एवं लेखक थे। उनका जन्म [[भारत]] के [[राजस्थान]] प्रांत में स्थित [[जोधपुर जिला|जोधपुर]] नगर में हुआ। १९६२ से १९६७ तक तीसरी लोक सभा के सदस्य श्री सिंघवी ने १९७२ से ७७ तक राजस्थान के एडवोकेट जनरल तथा अनेक वर्षों तक यूके में भारत के राजदूत पद पर कार्य किया। उन्हें [[१९९८]] में [[पद्म भूषण]] से अलंकृत किया गया तथा १९९९ में वे राज्य सभा के सदस्य भी चुने गए। डॉ॰ लक्ष्मीमल सिंघवी ने [[नेपाल]], [[बांग्लादेश]] और [[दक्षिण अफ्रीका]] के संविधान रचे। उन्हें भारत में अनेक लोकपाल, लोकायुक्त संस्थाओं का जनक माना जाता है। डॉ॰ सिंघवी संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार अधिवेशन और राष्ट्रकुल (कॉमनवेल्थ) विधिक सहायता महासम्मेलन के अध्यक्ष, विशेषज्ञ रहे। वे ब्रिटेन के सफलतम उच्चायुक्त माने जाते हैं। वे [[सर्वोच्च न्यायालय]] बार एसोसिएशन के चार बार अध्यक्ष रहे। उन्होंने विधि दिवस का शुभारंभ किया।<ref>{{cite web |url= http://www.bhaskar.com/2007/10/07/0710070406_singhvi_jodhpur.html |title= लक्ष्मीमल्ल सिंघवी का निधन
|accessmonthday=[[२ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएमएल|publisher=दैनिक भास्कर|language=}}</ref>
 
डॉ॰ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने [[हिंदी]] के वैश्वीकरण और हिंदी के उन्नयन की दिशा में सजग, सक्रिय और ईमानदार प्रयास किए। भारतीय राजदूत के रूप में उन्होंने ब्रिटेन में भारतीयता को पुष्पित करने का प्रयास तो किया ही, अपने देश की भाषा के माध्यम से न केवल प्रवासियों अपितु विदेशियों को भी भारतीयता से जोड़ने की कोशिश की। वे संस्कृतियों के मध्य सेतु की तरह अडिग और सदा सक्रिय रहे। वे भारतीय संस्कृति के राजदूत, ब्रिटेन में हिन्दी के प्रणेता और हिंदी-भाषियों के लिए प्रेरणा स्रोत थे। विश्व भर में फैले भारत वंशियों के लिए [[प्रवासी भारतीय दिवस]] मनाने की संकल्पना डॉ॰ सिंघवी की ही थी। वे साहित्य अमृत के संपादक रहे और अपने संपादन काल में उन्होने श्री विद्यानिवास मिश्र की स्वस्थ साहित्यिक परंपरा को गति प्रदान की। [[भारतीय ज्ञानपीठ]] को भी श्री सिंघवी की सेवाएँ सदैव स्मरण रहेंगी।<ref>{{cite web |url= http://www.srijangatha.com/2007-08/November07/apnibaat-jayprakash%20manas.htm|title= अपनी बात
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