"जैन धर्म": अवतरणों में अंतर

छो "जैन धर्म" सुरक्षित किया गया।: अत्यधिक बर्बरता एवं उत्पात ([संपादन=केवल प्रबन्धकों को अनुमति दे...
Removed unnecessary thing
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 2:
[[Image:Om jaïn black.svg|right|thumb|250px|जैन ओंकार]]
[[चित्र:In-jain.gif|right|thumb|[[जैन ध्वज]]]]
'''जैन धर्म''' [[भारत]] का सबसेएक प्राचीन धर्म है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। [[अहिंसा]] जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है।{{sfn|शास्त्री|२००७|p=८७}}
[[जैन ग्रंथों]] के अनुसार इस काल के प्रथम [[तीर्थंकर]] [[ऋषभदेव]] [[आदिनाथ]] द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर [[वैदिक साहित्य]] में प्रचुर मात्रा में हैं।