"मुत्तुस्वामी दीक्षित": अवतरणों में अंतर

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मुत्तु स्वामि ने कई तीर्थों व मन्दिरों का भ्रमण किया व देवी - देवताओं के दर्शन किए । उन्होंने भगवान मुरुगन या मुरुगा या कार्त्तिकेय, जो तिरुत्तणी के अधिपति हैं का सैर भी किया था और कई गीत उनकी प्रशंसा में रच डाले । तिरुत्तणी मे उन्होंने पहली कृति, "श्री नाथादि गुरुगुहो जयति" को रचा । यह गीत मायामालवगौलम् राग व आदि ताल में रचा गया है। उसके बाद उन्होंने सारे प्रसिद्ध मन्दिरों का सैर किया। भारत, सिय्लोन ( Ceylon ) और नेपाल के कई मन्दिरों में भी तीर्थाटन किया। उन्होंने वहां सभी मन्दिरों में स्थित अधिष्ठिता देवी व देवताओं की प्रशंसा में कई कृतियां रची । मुत्तु स्वामि दीक्षितर ने ३००० से भी अधिक ऐसे गीतों की रचना की , जो देव-प्रशंसा पर आधारित थी या किसी नेक भावना पर आधारित थीं । उन्होंने कई कृतियां रची जैसे नवग्रह कृति, कमलाम्बा नवावरणम् कृति, अभयाम्बा नवावरणम् कृति , शिव नवावरणम् कृति, पञ्चलिङ्ग स्थल कृति, मणिपर्वल कृति आदि-आदि। मुत्तु स्वामि ने अपनी सभी रचनाओं में भाव , राग व ताल आदि का विशेष उल्लेखन किया है। मुत्तु स्वामि दीक्षितर् को उनके हस्ताक्षर ( pen name ) 'गुरुगुह' के नाम से भी जाना जाता है। उसकि सारी रचनऐं चौक् काल मे रची गई है । उनकि कृति "बालगोपल" में वह वैणिक गायक नाम से प्रसिद्ध हैं ।
==शिष्य==
[[तंजौर]] के चार नृतक गुरु भाइयों चिन्नया, पोन्नेय, वडिवलु और शिवानंदम ने मुथुस्वामी दीक्षित से संपर्क किया, और उनसे संगीत सीखने की इच्छा व्यक्त की और उनसे तंजौर में उनके साथ आने के लिए आग्रह किया। वहाँ, दीक्षित ने उन्हें वेंकट वैद्यनाथ दीक्षित द्वारा वितरित 72 मेला परंपरा की शिक्षा प्रदान की। छात्रों ने अपने गुरु को महिमा करते हुए नवरत्न माला नामक नौ गीतों की एक
संग्रह बनाकर उन्हैं समर्पित किया। ये चार शिष्यों को तंजौर चौकड़ी के रूप में जाना जाता है और उन्हैं [[भरतनाट्यम]] के लिए मुख्य संगीतकार के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनके शिष्यों में, पोनन्या (जिसे पोंन्या पिल्लई भी कहा जाता है) और चिनन्या (जिसे चिन्न्याय पिल्लई भी कहा जाता है) ने [[तिरुवनंतपुरम]] (त्रिवेन्द्रम, केरल) के श्री स्वाती तिरुनाल के राज-दरबार कलाकारों के रूप में भी काम किया।
 
युवा उम्र में, दीक्षित को फोर्ट सेंट जॉर्ज में पश्चिमी बैंड के संगीत से अवगत कराया गया था। बाद के चरण में, दीक्षित ने कुछ चालीस गीतों को कई (अधिकतर पश्चिमी लोक) धुनों में बनाया, जैसे कि संकरभाराना। यह काय अब नोत्तुस्वरा साहित्य (नोत्तुस्वारा = "नोट्स" स्वर) के रूप में जाना जाता है। इन रचनाओं में [[केल्टी भाषाएँ|सेल्टिक]] और बैरोक शैलियों का प्रभाव काफी स्पष्ट है (उदाहरण के लिए, वाउलेज़-वाउ नर्तक<ref>http://archives.chennaionline.com/columns/ethnomusic/durga16.asp</ref> की धुन पर शक्ति सहिंता गणपति,<ref>{{YouTube|N6bsfLBzshU}}</ref> वरसीव बालम)। एक गलत धारणा है कि ये सीपी ब्राउन, कुड्डप्पा के कलेक्टर के आज्ञा पर लिखे गए थे। यह संभव नहीं है क्योंकि दोनों कभी नहीं मिले। मुत्तुस्वामी दीक्षित ने 1799 तक मद्रास छोड़ दिया था।<ref>एनसीपीए द्वारा प्रकाशित राघवन के मोनोग्राफ.</ref> ब्राउन, 1817 में [[मद्रास]] आये, 1820 में उन्होंने [[तेलुगु]] सीखी और उसी वर्ष कुड्डप्पा में चले गए।
 
== मृत्यु ==
सन् १८३५ , दीपावली की अद्भुत , दिव्य व पावन वेला थी , मुत्तु स्वामि दीक्षितर् ने हर रोज की तरह जैसा पूजा-प्रार्थना किया व तत्पश्चात उन्होंने अपने विद्यार्थियों को "मीनाक्षी मे मुदम् देहि" गीत गाने के लिए कहा था। यह गीत पूर्वी कल्याणी राग मे रचा गया था। वे आगे भी कई गीत गाते रहे , जैसे ही उन्होंने "मीन लोचनि पाश मोचनि" गान शुरु किया तभी मुत्तु स्वामि ने अपने हाथों को उठाते हुए "शिवे पाहि" ( इसका अर्थ हे भगवान ! माफ़ करना मुझे ! ) कहकर दिवंगत हो गए। उनकी समाधि एट्टैय्यापुरम ( यह महाकवि सुब्रह्मण्यम भारति का जन्म स्थल भी है ) मे है । यह स्थल कोइल्पट्टी और टुटीकोरिन के पास है।<ref>Suresh Narayanan, "Carnatic Music" (2012), Part -1, p 18, Suvarnaragam Publications</ref>