"प्राच्यवाद": अवतरणों में अंतर
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'''प्राच्यवाद''' ({{lang-en|Orientalism}} '''ऑरि'एन्ट्लिज़म्''') पश्चिम से लेखकों, डिजाइनरों और कलाकारों द्वारा पूर्वी संस्कृنخزجمزحنخنهخزهتههتخهن7ز7ن7ن7तियों के लिए काम में लिया जाने वाला शब्द है।<ref>{{cite book|title=समाजविज्ञान विश्वकोश |url=http://books.google.co.in/books?id=SjVCpxYBSUwC&pg=PA441|page=441|author=जे॰ पी॰ सिंह|publisher=फ़ाई पब्लिकेशन|isbn=9788120336995}}</ref>
हिंदी में प्राच्यवाद के विवेचन का गंभीर प्रयास विनोद शाही की पुस्तक 'प्राच्यवाद और प्राच्य भारत' के रूप में सामने आया। यह किताब एडवर्ड सइद से ले कर एजाज़ अहमद तक के प्राच्यवादी विमर्श को भारत के संदर्भ में पुनः खंगालती है। भारत में औपनिवेशिक दौर में प्रकट हुए उन प्राच्यवादी अध्ययनों को बेनकाब करती है जो फोर्ट विलियम कालेज और एशियैटिक सोसायटी से ले कर मैकाले तक आते हैं और भारत को हमेशा के लिये प्राच्यवादी ज्ञान परंपरा वाली अकादमिक संस्थाओं के नियंत्रण में घेरने का प्रयास करते हैं। इस के बावजूद 'प्राच्य भारत' अपने आप को एक हद तक बचाने में भी कामयाब होता है। यह एक तरह से प्राच्यवाद को 'भारतीय प्राच्यवाद'( संदर्भ 2) के मौलिक विमर्श तक ले जाने का प्रयास है।
== सन्दर्भ ==
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