"अमरकोश": अवतरणों में अंतर

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== संरचना ==
अमरकोश श्लोकरूप में रचित है। इसमें तीन काण्ड (अध्याय) हैं। स्वर्गादिकाण्डं, भूवर्गादिकाण्डं और सामान्यादिकाण्डम्। प्रत्येक काण्ड में अनेक वर्ग हैं। विषयानुगुणं शब्दाः अत्र वर्गीकृताः सन्ति। शब्दों के साथ-साथ इसमें लिङ्गनिर्देशलिंगनिर्देश भी किया हुआ है।
{| class="wikitable"
|-
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=== तृतीयकाण्डम्/सामान्यादिकाण्डम् ===
इस काण्ड में छः वर्ग हैं:
: १ विशेष्यनिघ्नवर्गः २ सङ्कीर्णवर्गःसंकीर्णवर्गः ३ नानार्थवर्गः
: ४ नानार्थाव्ययवर्गः ५ अव्ययवर्गः ६ लिङ्गादिसङ्ग्रहवर्गःलिंगादिसंग्रहवर्गः
|}
अन्य [[संस्कृत]] कोशों की भांति अमरकोश भी [[छन्द|छंदोबद्ध]] रचना है। इसका कारण यह है कि भारत के प्राचीन पंडित "पुस्तकस्था' विद्या को कम महत्व देते थे। उनके लिए कोश का उचित उपयोग वही विद्वान् कर पाता है जिसे वह कंठस्थ हो। श्लोक शीघ्र कंठस्थ हो जाते हैं। इसलिए संस्कृत के सभी मध्यकालीन कोश पद्य में हैं। इतालीय पडित पावोलीनी ने सत्तर वर्ष पहले यह सिद्ध किया था कि संस्कृत के ये कोश कवियों के लिए महत्त्वपूर्ण तथा काम में कम आनेवाले शब्दों के संग्रह हैं। अमरकोश ऐसा ही एक कोश है।
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::: समाहृत्यान्यतन्त्राणि संक्षिप्त्यैः प्रतिसंस्कृतैः।
::: सम्पूर्णमुच्यते वर्गैर्नामलिङ्गानुशासनम्॥वर्गैर्नामलिंगानुशासनम्॥
 
::: प्रायशो रूपभेदेन साहचर्याच्च कुत्रचित्।
::: स्त्रीनपुंसकं ज्ञेयं तद्विशेषविधेः क्वचित्॥
 
::: भेदाख्यानाय न द्वन्द्वो नैकशेषो न सङ्करः।संकरः।
::: कृतोत्र भिन्नलिङ्गानामनुक्तानांभिन्नलिंगानामनुक्तानां क्रमादृते॥
 
::: त्रिलिङ्ग्यांत्रिलिंग्यां त्रिष्विति पदं मिथुने तु द्वयोरिति।
::: निषिद्धलिङ्गंनिषिद्धलिंगं शेषार्थं त्वन्ताथादि न पूर्वभाक्॥
 
'''स्वर्गः'''