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== इतिहास ==
प्राचीन भारतीय किलाबंदी का प्रारंभ '''वप्र''' से होता है। '''वप्र भू''' की परिकल्पना के लिए पुर के चारों ओर परिखाएँ (खाई) (1, 2 या 3) खोदी जाती थीं। [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र]] तथा [[समराङ्गणसूत्रधारसमरांगणसूत्रधार]] में चारों ओर तीन-तीन परिखाओं के खनन का निर्देश है। पारिखेयी भूमि की व्यवस्था नगर मापन का प्रथम अंग रहा है। परिखाओं के खनन से निकली हुई मिट्टी के द्वारा ही वप्र भू की रचना की जाती थी।
 
किंतु मध्यकाल में [[राजपूत]] लोग किलाबंदी को अधिक महत्व नहीं देते थे। आमने-सामने तलवारें चलाकर प्राण त्याग देना ही वे अपने लिए गर्व का विषय समझते थे। तुर्कों की युद्धविद्या में स्थायी तथा अस्थायी दोनों ही प्रकार की किलाबंदी का उल्लेख मिलता है। [[फ्ख्रा मदब्बिर]] ने [[आदाबुल हर्ब हवुजाअत]] में दो प्रकार की किलाबंदियों को उल्लेख किया है : एक में ऐसे किलों की चर्चा मिलती है जो भूमि के नीचे सुरंग बनाकर तैयार किए जायँ तथा सुरंग में मार्ग बना लिया जाए। उन सुरंगों से किसी जंगल अथवा नदी के बाहर निकलने में सुविधा होती थी। [[इस्माइली]] इस प्रकार की किलाबंदी को बड़ा ही महत्वपूर्ण बताते हैं। दूसरे प्रकार की किलाबंदी के प्रंसग में उसने ऐसे किलों का उल्लेख किया है जो जमीन के ऊपर ऐसे स्थल पर बने हों जहाँ सुरंग न बन सकती हों। किलाबंदी के संबंध में उसने ऐसे नगरों का उल्लेख किया है जो किले के समान हों और जिनमें वे समस्त वस्तुएँ उपलब्ध हों जो किले में होती हैं।