"खंड-३": अवतरणों में अंतर

छो हलान्त शब्द की पारम्परिक वर्तनी को आधुनिक वर्तनी से बदला।
छो बॉट: आंशिक वर्तनी सुधार।
 
पंक्ति 114:
हाँ-हाँ, वही, कर्ण की जाँघों पर अपना मस्तक धरकर,
 
सोये हैं तरुवर के नीचे, आश्रम से किञ्चित्किंचित् हटकर।
 
पत्तों से छन-छन कर मीठी धूप माघ की आती है,
पंक्ति 132:
 
 
'वृद्ध देह, तप से कृश काया, उस पर आयुध-सञ्चालनसंचालन,
 
हाथ, पड़ा श्रम-भार देव पर असमय यह मेरे कारण।
पंक्ति 182:
'ब्राह्मण का है धर्म त्याग, पर, क्या बालक भी त्यागी हों?
 
जन्म साथ, शिलोञ्छवृत्तिशिलोंछवृत्ति के ही क्या वे अनुरागी हों?
 
क्या विचित्र रचना समाज की? गिरा ज्ञान ब्राह्मण-घर में,
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