"खेल द्वारा शिक्षा": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: आंशिक वर्तनी सुधार।
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'''पहला चरण''', जिसे वे अभ्यास या कार्यात्मक खेल कहते हैं, संवेदन-प्रेरित क्रिया के दौर का एक लक्षण है। कार्यात्मक खेल में बच्चा वस्तुओं के इस्तेमाल की परिचित पद्धतियों को दोहराता है। उदाहरण के लिए, खाली प्याले से पीता है, हाथों के इस्तेमाल से बालों में कंघी करने का नाटक करता है।
 
'''दूसरा चरण''', प्रतीकात्मक खेल है जिसका उभार क्रियापूर्व/परिचालनपूर्व ( pre-operational) दौर में होता है। यह मानसिक प्रतीकों के इस्तेमाल का दौर है। वस्तुएँ अपने से अलग किसी वस्तु का प्रतीक होती हैं। प्रतीकात्मक खेल में एक लकड़ी के गुटके (ब्लाक) को टेलीफोन, नाव, कुŸा, केला या हवाईजहाज बनाया जा सकता है। पियाजे ने संरचनात्मक और नाटकीय खेल में अन्तर किया है। संरचनात्मक खेल में दूसरी वस्तुओं को बनाने या रचने के लिए ठोस वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए कार और टंक वाले खिलौने के लिए, एक शहर बनाने में लकड़ी के ब्लॉकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। नाटकीय खेल में बच्चे शब्दों और मुद्राओं के द्वारा कल्पित स्थितियाँ और भूमिकाएं गढ़ते हैं। वे भूमिकाएं रचते और तय करते हैं कि कौन सा बच्चा किस भूमिका को निभाएगा और एक कल्पित दृश्य के लिए विषयवस्तु और उसके विकास की दिशा की सूझ लेते हैंहैं। नाटकीय खेल का उभार प्रायः संरचनात्मक खेल के कुछ बाहर सतह पर आता है। पियाजे ने इस दौर के कल्पित स्वभाव के खेल को बच्चे के आत्म केन्द्रित विचार के प्रतिबिम्ब के रूप में देखा। पियाजे के अनुसार सात वर्ष की आयु के आसपास '''ठोस-क्रियात्मक दौर''' ( concrete operational period ) के आरंभ में यह समाप्त हो जाता है।
 
'''अन्तिम चरण''' में खेल नियमबद्ध क्रीड़ा (अंग्रेजी में play) को game में बदलने की बात कही गयी है। यहाँ हिंदी में ‘खेल‘ और ‘क्रीड़ा‘ में वही भेद किया जा रहा है। क्रीड़ा नियमबद्ध एवं संरचित खेल (structured play ) हैं, में बदल जाता है जो ठोस क्रियात्मक दौर में अपनी बुलन्दी पर पहुँचता है। इस दौर की विशेषता यह है कि सामाजिक आदान-प्रदान को आरंभ करने, नियंत्रित करने और जारी रखने तथा समाप्त करने के लिए बाह्य रूप से प्रत्यक्ष नियमों का प्रयोग किया जाता है।
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===निकट विकास क्षेत्र का निर्माण===
वाइगोत्स्की के अनुसार खेल बच्चे के लिए निकट-विकास-क्षेत्र का निर्माण भी करता है। खेल में बच्चा हमेशा अपनी आयु से अधिक और अपने दैनिक व्यवहार के स्तर से ऊपर उठकर बर्ताव करता है, मानो खेल के दौरान वह खुद अपने कद से हाथ भर ऊँचा हो गया हो। खेल के भीतर विकास की सारी प्रवृŸायां, मानो आतशी शीशे के फोकस में, सारभूत रूप से मौजूद रहती हैं ; मानो बच्चा अपने सामान्य स्तर से ऊपर छलांग लगाने को तत्पर हो। खेल और विकास के संबंध की तुलना शिक्षा और विकास के संबंध से की जा सकती है। खेल विकास का स्त्रोतस्रोत है और निविक्षे की रचना करता है।
 
खेल की केवल विषयवस्तु ही निकट विकास क्षेत्र को परिभाषित नहीं करती है। खेलने के लिए बच्चा जिस मानसिक प्रक्रिया में संलग्न होता है वह निविक्षे की रचना करती है। बच्चा निकट विकास क्षेत्र के उच्चतर स्तर पर काम कर सके इसके लिए कल्पित स्थितियों से प्राप्त भूमिकाएं, नियम तथा प्रेरणा सहायक सिद्ध होते हैं।
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==== गुँथी हुई जटिल विषयवस्तु ====
उच्चतर खेल में अनेक विषयवस्तु हो सकती हैं, जो आपस में गुँथ कर एक संपूर्ण इकाई बन जाती हैंहैं। खेल के प्रवाह में बच्चे बिना किसी रुकावट के दूसरे लोगों, खिलौनों और विचारों को शामिल कर लेते हैं। असम्बद्ध सी दिखने वाली विषयवस्तुओं का एकीकरण भी वे अपनी कल्पित स्थिति में कर लेते हैं। उदाहरण के लिए एम्बुलेंस की मरम्मत का खेल खेलते समय वे अचानक किसी मिस्त्री की तबियत बिगड़ जाने का खयाल भी उसमें जोड़ सकते हैं। अब डाक्टर को बुलाना होगा या मिस्त्री को अस्पताल ले जाना होगा। इस तरह वे गैरेज की विषयवस्तु को अस्पताल की विषयवस्तु के साथ गूँथ देते हैं।
 
==== गुँथी हुई जटिल भूमिकाएँ ====
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किण्डरगार्टन और पहली दूसरी कक्षा में लिए खेल एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। किण्डरगार्टन के बच्चों को आम तौर से स्कूल में खेल के लिए समय नहीं दिया जाता है अतः खेल के लिए मिश्रित आयु समूहों का एक यह नकारात्मक परिणाम हो सकता है कि खेल के भीतर आदान-प्रदान के लिए किण्डरगार्टन के बच्चों का समय कम रह जाएगा। आरंभिक प्राथमिक कक्षाओं में खेल प्रतिदिन के कार्यक्रम का हिस्सा नहीं हुआ करता। अपेक्षा की जाती है कि बच्चे मध्यावकाश में खेलेंगे। हमारा विश्वास है कि स्कूल के आरंभिक वर्षों में खेल अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। खेल के लिए समय मध्यावकाश के अलावा निश्चित किया जाना चाहिए अथवा मध्यावकाश की अवधि को बढ़ा देना चाहिए।
 
*२. '''खेल की योजना बनाने में बच्चों की मदद कीजिए।''' खेल आरंभ होने के पहले बच्चों से पूछिए कि वे क्या करने जा रहे हैं। बच्चों को किसी विशेष योजना के अनुसार चलने की जरूरत नहीं है लेकिन विचारों को मुखर कर लेने से समझ बेहतर होती है और साझे की गतिविधि के लिए परिस्थिति की रचना को प्रोत्साहन मिलता है। खेल के आरंभ से ठीक पहले का समय योजना बनाने के लिए सबसे अच्छा समय है। कहीं-कहीं दिन शुरू करते समय योजनाकाल में दिनभर का कार्यक्रम वर्णित किया जाता है लेकिन चिं क प्रीस्कूल के अधिकांश बच्चों के पास सुविचारित (deliberate ) स्मृति नहीं होती, उनके लिए कई घण्टे पहले का तयशुदा कार्यक्रम याद रखना कठिन होता है। यदि उन्हें शुरू करने के ठीक पहले योजना की याद न दिलाई जाए तो वह योजना और कार्यन्वयन के बीच संब ध् ां नहीं जोड़ पाएंगपाएंग। ।े कहीं-कहीं दिन के अंत में बच्चों से दिन भर के अनुभवों का लेखा-जोखा लिखाया जाता है किन्तु यह अन्तराल भी योजना और कार्य के बीच संब ध् ां जोड न ़े के लिए पर्याप्त नहीं है। दिन के अन्त में दिनभर के कार्य अनकी स्मृति में शायद न बचे हों। यदि आपके कार्यक्रम में योजनाकाल सुबह के समय पर है तो भी खेल के ठीक पहले आपको योजना की याद बच्चों को दिलानी होगी।
 
खेल समाप्त होने के बाद बच्चों से पूछिये कि क्या कल भी वे इसे चलाएंगे और उन्हें यह सोचने को प्रेरित कीजिए कि कल के लिए क्या बचाकर रखें। अगले दिन खेल की शुरूआत के पहले पिछले दिन की योजना और गतिविधियों पर नज़र डालिये। याद रहे, योजना से चिपके रहना अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है। यह केवल एक साधन है जो अपने काम में लगे रहने में बच्चों की मदद करता है।