"नरेन्द्र देव": अवतरणों में अंतर

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== लेखन एवं रचनाएँ ==
राजनीति के अलावा, दूसरी प्रवृत्ति, उन्हीं के शब्दों में, "लिखने पढ़ने की ओर" रही है। इस दिशा में आचार्य नरेंद्रदेव जी का योगदान अत्यंत महत्व का है। विद्यापीठ के द्वारा पिछले वर्षों में राष्ट्रीय शिक्षा के क्षेत्र में जो महत्व का काम हुआ है, उसकी आज भी, जबकि राष्ट्रीय शिक्षाप्रणाली की खोज ही चल रही है, विशेष उपयोगिता है। [[काशी विद्यापीठ]] के अध्यापक, आचार्य और कुलपति की हैसियत से आपने अपनी विद्वत्ता, उदारता और चरित्र के द्वारा अध्यापन और प्रशासन का जो उच्च आदर्श् कायम किया है, वह अनुकरणीय है। अपने सहयोगी श्री [[संपूर्णानंद]] जी के आग्रह पर आचार्य जी ने संयुक्त प्रांत के फिर नाम बदल जाने पर, उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा समिति की अध्यक्षता की थी। इस समिति के जरिए कई एक महत्वपूर्ण सुझाव आपने दिए थे। इसके अलावा, [[संस्कृत]] वाङ्मयवांमय के अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ाने पर आप बराबर जोर देते थे।
 
बौद्धदर्शन के अध्ययन में आचार्य जी की विशेष रुचि और गति रही है। आजीवन वे बौद्धदर्शन का अध्ययन करते रहे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में "बौद्ध-धर्म-दर्शन" उन्होंने पूरा किया। "अभिधर्मकोश" भी प्रकाशित कराया था। "अभिधम्मत्थसंहहो" का भी हिंदी अनुवाद किया था। [[प्राकृत]] तथा [[पालि]] व्याकरण हिंदी में तैयार किया था। किंतु वह मिल नहीं रहा है। संभव है, उनकी किताबों वगैरह के साथ कहीं मिले। बौद्ध दर्शन के पारिभाषिक शब्दों के कोश का निर्माणकार्य भी उन्होंने प्रांरभ किया था। पेरुंदुराई के विश्रामकाल में आपने 400 शब्दों को व्याख्यात्मक कोश बनाया था, किंतु आकस्मिक निधन से यह काम पूरा न हो सका।