"नेति नेति": अवतरणों में अंतर
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यह वाक्य उपनिषदों एवं [[अवधूत गीता]] में इस तरह आया है-
: ''तत्त्वमस्यादिवाक्येन स्वात्मा हि
: ''नेति नेति श्रुतिर्ब्रूयाद अनृतं
: अर्थ : 'तत्वमसि' वाक्य के द्वारा अपनी [[आत्मा]] का ही प्रतिपादन किया गया है। असत्य, जो पांच अवयवों से बना है, उसके बारे में श्रुति कहती है- नेति नेति (यह नहीं, यह नहीं)।
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