"पटिसंभिदामग्ग": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
अनुभूति को दृष्टि से सभी धर्मों का विभाजन पाँच प्रकार से किया गया है -
* अभिञ्ञय्याअभिंञय्या धम्मा (अभिज्ञेय धर्म),
* परिञ्ञय्यापरिंञय्या धम्मा (परिज्ञेय धर्म),
* महातव्या धम्मा (प्रहातव्य धर्म),
* भावतब्बा धम्मा (भवितव्य धर्म) और
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तत्वावबोध के लिये सभी धर्मपर्यायों का ज्ञान आवश्यक है। इसकी प्राप्ति धम्म पटिसंभिदा से होती है। धर्मों के अर्थ की गहराई में प्रवेश करते है। और उनका यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं: यह अत्थ पटिसंभिदा कहलाता है। धर्म और अर्थ दोनों भाषा पर आश्रित हैं। इसलिये धर्मज्ञान और अर्थज्ञान की प्राप्ति के लिये भाषा का ज्ञान भी अपेक्षित है। यह निरुत्ति पटिसंभिदा से संभव है। उक्त तीनों पटिसंभिदाओं का एकमात्र उद्देश्य तत्वदर्शन हैं, जिसकी, प्राप्ति पटिभान पटिसंभिदा कहलाती है। सभी आर्य पुद्गलों को अपनी अपनी अवस्था के अनुसार प्रतिसंविद् ज्ञान होता है। लेकिन अर्हत्व की अवस्था में ही वह पूर्णता को प्राप्त होता है।
 
पटिसंभिदामग्ग के तीन वग्ग (वर्ग) हैं, जिनका नामकरण परिमाण के अनुसार हुआ है। महावग्ग, मज्झिमवग्ग और चुल्लवग्ग। दूसरा और तीसरा क्रमश: युगनद्धवग्ग और महापञ्ञावग्गमहापंञावग्ग भी कहलाते हैं। प्रत्येक वग्ग के दस दस विभाग हैं, जो कथाएँ कहलाते हैं, वे निम्न प्रकार हैं-
 
'''1. महावग्ग''' : ञाणकथा, विट्ठिकथा, आनापानसतिकथा, इंद्रियकथा, विमोक्खकथा, गतिकथा, कम्मकथा, विपल्लासकथा, मग्गकथा और मंडपेय्यकथा।
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'''2. मज्झिम वग्ग''' : युगनद्धकथा, सच्चकथा, बोज्झंगकथा, मेत्तकथा, विरागकथा, पटिसंभिदाकथा, धम्मचक्ककथा, लोकुत्तरकथा बलकथा और सुम्मकथा।
 
'''3. चुल्लवग्ग''' : महापञ्ञाकथामहापंञाकथा, इद्धिकथा, अभिसमयकथा, विवेककथा, चरियाकथा, पाटिहारियकथा, समसीसकथा सतिपट्ठानकथा विपस्सनाकथा और मातिकाकथा।
 
कथाएँ क्रमबद्ध हैं। [[अट्ठकथा]] के अनुसार 30 कथाओं में ञाणकथा को पहला स्थान इसलिये दिया गया है, क्योंकि सम्यक् दृष्टि ही बुद्धदेशित मार्ग का प्रथम अंग है। ज्ञान से मिथ्यादृष्टि दूर हो जाती है। इसलिये ञाणकथा के बाद ही विट्टिकथा दी गई है। मिथ्यादृष्टि के दूर होने से चित्त समाधिस्थ होता है। समाधिभावना में सतिपट्ठान (स्मृत्युपस्थान) का प्रमुख स्थान है। इसलिये दिट्टिकथा के बाद ही आनापानसतिकथा दी गई है। श्रद्धादि पाँच इंद्रियों के अभ्यास से आनापान स्मृति पुष्ट हो जाती है। इसलिये आनापानसतिकथा के बाद ही इंद्रियकथा दी गई है। इंद्रियों के अभ्यास से चित्त बंधनमुक्त हो जाता है। इसलिये इंद्रियकथा के बाद ही विमोक्खकथा दी गई हैं। सभी योनियों के जीव मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते। जो सुगतियों में जन्म लेते हैं, ये ही उसे प्राप्त कर सकते हैं। इसलिये विमोक्खकथा के बाद ही गतिकथा दी गई है। किसी जीव की गति उसके कर्मानुसार होती है। इसलिये गतिकथा के बाद ही कम्मकथा दी गई है। चार प्रकार के विपर्यसों (अथवा ज्ञान) के कारण जीव कर्मसंचय करते हैं। इसजिये कम्मकथा के बाद दी विपल्लास कथा और मग्ग कथाएँ दी गई हैं। इस वग्ग की अंतिम कथा मंडपेय्य कथा है। मंड का अर्थ है सार। इसका प्रोग सारभूत आर्यमार्ग के लिये हुआ है। इसी प्रकार अन्य कथाओं की भी क्रमबद्धता दिखाई गई है।