"पाञ्चजन्य (पत्र)": अवतरणों में अंतर

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'''पांञ्चजन्यपांंचजन्य''' भारतीय राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रणयन करने वाला [[हिन्दी]] का साप्ताहित [[समाचार पत्र]] है। यह [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है।
 
== परिचय एवं इतिहास ==
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[[अटल बिहारी वाजपेयी|अटल जी]] के बाद ‘पांचजन्य‘ के सम्पादक पद को सुशोभित करने वालों की सूची में राजीव लोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, [[केवल रतन मलकानी]], [[देवेन्द्र स्वरुप]], दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, [[तरुण विजय]] जैसे नाम आते हैं। नाम बदले होंगे पर ‘पाचजन्य‘ की निष्ठा और स्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया। वे अविचल रहे।
 
किन्तु एक ऐसा नाम है जो इस सूची में कहीं नहीं है। परन्तु वह इस सूची के प्रत्येक नाम का प्रेरणा स्रोत कहा जा सकता है जिसने सम्पादक के रूप में अपना नाम कभी नहीं छपवाया, किन्तु जिसकी कल्पना में से ‘पाचजन्य‘ का जन्म हुआ, वह नाम है पं० [[दीनदयाल उपाध्याय]]। वस्तुत: जिस [[राष्ट्रधर्म प्रकाशन]] के तत्वावधान में लखनऊ से ‘पाचजन्य‘ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ उसका बीजारोपण पं० दीनदयाल उपाध्याय की पहल पर हो चुका था, जिन्होंने ‘पाचजन्य‘ के शैशव काल में सम्पादक से लेकर प्रूफ रीडर, कम्पोजिटर, मुद्रक और कभी-कभी बंडल बांधने, उन्हें ले जाने के सब दायित्वों का निर्वाह करते हुए ‘पाचजन्य‘ का पालन पोषण किया। उन्होंने ‘पाचजन्य‘ के सम्पादक पद पर अपना नाम नहीं दिया पर वे सही अर्थों में ‘पाचजन्य‘ के जन्मदाता और पालकर्ता थे। वे महान मौलिक चिन्तक और कलम के धनी थे। पर वे स्वयं सम्पादक नहीं बने बल्कि उन्होंने सम्पादकों की निर्मिति की। १९६८ में अपनी असामयिक मृत्यु तक वे ‘पाचजन्य‘ के वास्तविक मार्गदर्शक थे। वे सम्पादक नहीं, सम्पादकों के गुरु थे। १९६८ तक ‘पाचजन्य‘ के वास्तविक मार्गदर्शक थे। वे सम्पादक नहीं, सम्पादकों के गुरु थे। १९६८ तक ‘पाचजन्य‘ में उन्होंने बहुत लिखा। अनेक नाम से लिखा। उन्होंने स्वातंत्रयोतर पत्रकारिता में प्रसिद्धि पराङ्मुखपरांमुख, ध्येय समर्पित पत्रकारिता का एक दुलर्भ उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी पावन स्मृति ही ‘पाचजन्य‘ की कठिन ध्येय यात्रा का पाथेय है। एक प्रकार से ‘पाचजन्य‘ उनके चिन्तन तंत्र का अखंड प्रवाह है, उनकी पावन स्मृति का अक्षय केन्द्र है।
 
पं० दीनदयाल जी जैसे प्रसिद्धि पराङ्मुखपरांमुख ध्येयनिष्ठ व्यक्तित्व की भावभूमि पर टिका होने के कारण ही ‘पाचजन्य‘ साधनविहीन होने पर भी सत्ता की ओर से आने वाले अनेक विपरीत प्रवाहों को झेलकर भी अपने ध्येय पथ पर बढ़ता रहा। उसके जन्म का एक माह भी पूरा नहीं हुआ था कि गांधी हत्या सेप्रक्षाभित वातावरण का लाभ उठाकर सरकार ने फरवरी, १९४८ में ‘पाचजन्य‘ का गला घोंटने की कोशिश की। उसके सम्पादक, प्रकाशक और मुद्रक को जेल में बंद कर दिया, उसके कार्यालय पर ताला ठोक दिया। साढ़े चार माह बाद न्यायालय की कृपा से ‘पाचजन्य‘ का पुन: प्रकाशन संभव हो पाया। छ: महीने निकलने के बाद दिसम्बर, १९४८ में ‘पाचजन्य‘ पर फिर हमला करके सात माह के लिए उसके मुंह पर ताला ठोंक दिया गया। जुलाई, १९४९ में यह ताला हटते ही ‘पाचजन्य‘ का शंखनाद पूर्ववत्‌ गूंज उठा। राष्ट्र हित में ‘पाचजन्य‘ का निर्भीक स्वर सरकारों के लिए हमेशा सरदर्द बना रहा। १९५९ में कम्युनिस्ट चीन द्वारा तिब्बत की स्वाधीनता के अपहरण और दलाई लामा के निष्कासन के समय ‘पाचजन्य‘ ने नेहरु जी की अदूरदर्शिता और चीन की नीति की निर्भय होकर आलोचना की। १९६२ में भारत पर चीन के हमले के लिए ‘पाचजन्य‘ ने नेहरु जी की असफल विदेश नीति एवं रक्षा नीति को दोषी ठहराया, जिससे तिल मिलाकर नेहरु सरकार ने ‘पाचजन्य‘ को धमकी भरा नोटिस दिया। १९७२ में भारतीय सेनाओं की विजय को शिमला समझौते की मेज पर गंवा देने के विरूद्ध ‘पाचजन्य‘ के आक्रोश से तिलमिलाकर इंदिरा सरकार ने ‘पाचजन्य‘ के सम्पादकों एवं प्रकाशकों को लम्बे समय तक कानूनी कार्यवाही में फंसाए रखा। जून, १९७५ में इंदिरा गांधी ने आपात स्थिति की घोषणा करके भारतीय लोकतंत्र का गला घोंटने की कोशिश की गई और मार्च, १९७७ में आपातकाल की समाप्ति पर ही ‘पाचजन्य‘ पुन: अपनी ध्येययात्रा आरंभ कर सका। ‘पाचजन्य‘ के निर्भीक स्वर से तिलमिलाकर लोगों एवं सरकार द्वारा दायर किए गए मुकदमों की सूची बहुत लम्बी है। ‘पाचजन्य‘ के सम्पादकों एवं प्रकाशकों का एक पैर हमेशा न्यायालय में रहा है।
 
‘पाचजन्य‘ की यात्रा साधनों के अभाव एवं सरकारी प्रकोपों के विरूद्ध राष्ट्रीय चेतना की जिजीविषा और संघर्ष की प्रेरणादायी गाथा है। ‘पाचजन्य‘ द्वारा समय-समय पर घोषित ध्येय वाक्यों जैसे ‘राष्ट्रीयता का प्रहरी‘, ‘सांस्कृतिक चेना का अग्रदूत‘ या ‘राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं शौर्य का स्वर‘ से स्पष्ट है कि ‘पाचजन्य‘ राष्ट्रीय पुननिर्माण के पथ पर स्वाधीन भारत की यात्रा को स्वाधीनता आंदोलन की मूल प्रेरणाओं से जोड़े रखने के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली प्रवृत्तियों एवं शक्तियों को चेतावनी का स्वर निर्भीकता के साथ बार-बार गुंजाता रहा। समय-समय पर प्रारंभ किए गए स्तम्भों से स्पष्ट होता है कि राष्ट्र जीवन का कोई भी क्षेत्र या पहलू उसकी दृष्टि से ओझल नहीं रहा। अन्तर्राष्ट्रीय घटनाचक्र हो या राष्ट्रीय घटना चक्र, अर्थ जगत, शिक्षा जगत, नारी जगत, युवा जगत, राष्ट्र चिन्तन, सामयिकी, इतिहास के झरोके से, फिल्म समीक्षा, साहित्य समीक्षा, संस्कृति-सत्य जैसे आदि अनेक स्तंभ ‘पाचजन्य‘ की सर्वांगीण रचनात्मक दृष्टि के परिचायक है।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.panchjanya.com '''पाञ्चजन्यपांचजन्य''' का जालघर]
 
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