"पुनर्जन्म": अवतरणों में अंतर

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{{उक्ति|श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌प्रोक्तवानहमव्ययम्‌।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥ (१)}}
 
भावार्थ : श्री भगवान ने कहा - मैंने इस अविनाशी योग-विधा का उपदेश सृष्टि के आरम्भ में विवस्वान (सूर्य देव) को दिया था, विवस्वान ने यह उपदेश अपने पुत्र मनुष्यों के जन्म-दाता मनु को दिया और मनु ने यह उपदेश अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु को दिया। (१)
 
{{उक्ति|एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुःविदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ (२)}}
 
भावार्थ : हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा से प्राप्त इस विज्ञान सहित ज्ञान को राज-ऋषियों ने बिधि-पूर्वक समझा, किन्तु समय के प्रभाव से वह परम-श्रेष्ठ विज्ञान सहित ज्ञान इस संसार से प्राय: छिन्न-भिन्न होकर नष्ट हो गया। (२)
 
{{उक्ति|स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनःपुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्‌ ॥ (३)}}
 
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{{उक्ति|अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतःविवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ॥ (४)}}