"वड़ोदरा": अवतरणों में अंतर
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भारतीय रियासतों के ब्रिटिश रेजिडेंट का कर्तव्य होता था की वे इस रियासतों में ब्रिटिश हितों की रक्षा सुनिश्चित करें, इसके लिए स्थानीय शासकों को अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने से बेहतर रास्ता क्या हो सकता था। सयाजीराव के अंग्रेज़ जीवनी लेखक स्टेनली राइस और एडवर्ड सेंट क्लेयर वीडेन (Stanley Rice and Edward St. Clair Weeden) ने इस बात की पुष्टि की है कि यह युवा राजकुमार किताबों और नये विचारों का भूखा था। इनके भारतीय शिक्षक दीवान सर टी माधव और दादाभाई नैरोजी, जो बाद में ब्रिटिश संसद के लिए चुने जाने वाले पहले भारतीय थे और 3 बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, और और इनके अंग्रेजी शिक्षक एफ. ए. एच. इलियट (F. A. H. Elliot) ने इस युवा भारतीय राजकुमार की साहित्य और कला के लिए प्यार की प्रशंशा की है। सयाजीराव पर मैसूर के राजा महाराजा चमराजेंद्र वाड्यार का भी काफी प्रभाव था। वाड्यार ने यूरोपीय आर्किटेक्ट और योजनाकारों की मदद से मैसूर का बड़े पैमाने पर शहरीकरण किया था, जिन्होंने बाद में वड़ोदरा के विकास में भी योगदान किया।
शिक्षा और वास्तुकला के क्षेत्र में सयाजीराव की गहरी रूचि होने के कारण इन्होने 1906 में और 1910 में अमेरिका और यूरोप की यात्रायें की। 1906 में अपनी पहली अमेरिका यात्रा के दौरान वह एक अफ़्रीकी-अमेरिकी समाज सुधारक बुकर टी वाशिंगटन (Booker T. Washington) से मिले, जिन्होंने दस्ता से निकलकर हैम्पटन संस्थान, वर्जीनिया (Hampton Institute, Virginia) से अपनी शिक्षा पूरी की थी और वे टस्केगी संस्थान, अलबामा (Tuskegee Institute, Alabama) के संस्थापक भी थे। अपनी अमेरिका की दोनों यात्राओं के दौरान सयाजी राव ने वाशिंगटन, डीसी, फिलाडेल्फिया, शिकागो, डेन्वर, और सैन फ्रांसिस्को का मुख्य
सयाजीराव ने अपनी वस्तु दृष्टि को लागु करने के लिए ब्रिटिश इंजीनियरों आर.एफ. चिसॅाम और मेजर आर.एन मंट (R. F. Chisolm and Major R. N. Mant) को राज्य आर्किटेक्ट के रूप में भर्ती किया, और अपनी राजधानी के सार्वजनिक भवनों के रखरखाव के लिए एक संरक्षक नियुक्त भी नियुक्त किया। उनके प्रमुख कामों में लक्ष्मी विला पैलेस, कमति (समिति) बाग, और रेजीडेंसी शामिल हैं, जिन पर अरबी शैली (Saracenic) का प्रभाव देखा जा सकता है। चिसॅाम और मंट के कामो का प्रभाव बाद में एडवर्ड लुटियन (Edward Lutyens ) के दिल्ली के वास्तुकला के कामों पर देखा जा सकता है। इस विश्वास के साथ कि, भारत के औद्योगिक विकास के बिना प्रगति नहीं कर सकता है सयाजीराव ने पुराने ईंट और मोर्टार के उद्योग के स्थान पर, स्टील और कांच के नये उद्योगों को मंजूरी दी।
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